भारत की प्रथम महिला डॉक्टर आनंदीबाई जोशी 31 मार्च 1865 से 26 फरवरी 1887
आनंदीबाई जोशी जिन्हें दुनिया डॉक्टर आनंदी गोपाल जोशी के नाम से भी जानती है, इन्हे भारत की प्रथम महिला डॉक्टर होने का गौरव प्राप्त है ! इनकी जन्म की तारीख 31 मार्च 1865 बयान करती है अर्चिता कि उस समय जब हमारे देश मे विदेशी हुकूमत थी समाज की जटिल व्यवस्था कही से भी यह अनुमति नही देती थी कि : महिलाएँ चहार दिवारी की वर्जनाएँ तोड कर बाहर निकले,महिलाओं का शिक्षित होना तो बहुत दूर की बात थी उनके लिए तो प्रारंभिक शिक्षा पाना भी सम्भव न था ! ऐसी मुश्किल सामाजिक व्यवस्था एवम विपरित समय मे आनंदी बाई जोशी का डॉक्टर की पढाई करना एक बहुत ही बड़ी उपलब्धि थी इस देश की महिलाओ के लिए । आनंदी बाई जोशी प्रथम भारतीय महिला थी जिन्होंने अपना ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद यूनाइटेड स्टेट से 2 साल की अपनी मेडिकल की डिग्री हासिल किया था, बडी उपलब्धि तो यह थी कि :आनंदी बाई जोशी अमेरिका की धरती पर जाने वाली प्रथम भारतीय महिला भी थी !
भारत की इस प्रथम महिला डॉक्टर का जन्म साल 1865 में ब्रिटिश काल में ठाणे जिला के कल्याण में हुआ था जो वर्तमान में महाराष्ट्र का हिस्सा है ! इनका जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ था और मा बाप द्वारा इनका प्रथम नामकरण यमुना के रूप मे किया गया था ! इनकी शादी मात्र 9 वर्ष की उम्र में अपने से 20 वर्ष बड़े व्यक्ति के साथ कर दी गई थी ! जिस व्यक्ति से इनकी शादी हुई उनका नाम गोपाल राव जोशी था, यह वही गोपाल राव जोशी थे जिन्होने शादी के बाद यमुना का नाम बदलकर आनंदी बाई रखा था ! गोपाल राव जोशी कल्याण मे एक पोस्ट ऑफिस में क्लर्क थे,
कुछ समय बाद जब पति का तबादला अलीबाग और कलकत्ता में हो गया वही से आरम्भ हुआ आनंदी बाई के जीवन मे परिवर्तन ! गोपालराव जी उच्च विचारों वाले और नारी शिक्षा को बढ़ावा देने वाले व्यक्ति थे, उस समय के ब्राह्मण परिवार तो संस्कृत को ही अधिक बढ़ावा देते थे और संस्कृत का ही अध्यन भी करते थे, परंतु गोपालराव जी ने अपने जीवन में संस्कृत की अपेक्षा हिंदी एवम अन्य भाषा को अधिक महत्व दिया ! गोपालराव जी ने जब पत्नी आनंदी बाई का पढ़ाई की तरफ रुझान देखा तो उन्होंने इसका पूरे मन से समर्थन करते हुए आनंदी बाई को सहयोग करना आरम्भ कर दिया उन्हें शिक्षा प्राप्त करने एवम अंग्रेजी सिखने में मदत करने लगे ! इसी बीच अपनी शादी के 5 वर्ष बाद आनंदी बाई ने एक संतान को जन्म दिया जो की लड़का था, इस वक्त आनंदी बाई की कुल उम्र केवल चौदह वर्ष ही थी, उनका बच्चा 10 दिन तक ही जीवित रहा वजह जरुरी स्वास्थ सुविधाओं के आभाव मे बच्चे की मृत्यु हो गई ! आनंदीबाई के जीवन में यह एक ऐसी घटना साबित हुई जो उनकी सोच परिवर्तन का विषय बनी और पति के सहयोग से उन्होंने मेडिकल की शिक्षा प्राप्त कर डॉक्टर बनने की ठान ली !
आनंदीबाई के पुत्र की मृत्यु के बाद जब उनके पति ने उन्हें फिर से शिक्षा के लिए प्रोत्साहित किया, सहयोग किया एवम अपनी पत्नी की रूचि मेडिकल में देखते हुए उन्होनें अमेरिका के रॉयल विल्डर कॉलेज को खत लिखा,अपनी पत्नी की पढ़ाई के लिए विदेश के किसी कॉलेज को खत लिखकर आवेदन करने वाले उस समय के वह पहले भारतीय पति थे !
उनका खत विल्डर कॉलेज तक पहुँच तो गया पर कॉलेज की तरफ से उनके सामने एक प्रस्ताव रखा गया कि : इसाई धर्म अपनाने के बाद ही कॉलेज आनंदी बाई की मेडिकल की पढ़ाई मे अपना सहयोग देगा ! परंतु आनंदी बाई ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया ! इसके पश्चात् न्यू जर्सी के निवासी ठोडीसिया कारपेंटर नामक व्यक्ति को जब इस घटना के बारे में पता चला, तो उन्होंने आनंदी बाई को पत्र लिखकर अमेरिका के आवास के लिए मदत का आश्वासन दिया ! इसी दौरान साल 1883 में गोपाल राव का तबादला श्रीरामपुर हो गया और उन्होंने इस समय आनंदीबाई को मेडिकल की पढ़ाई के लिए विदेश भेजने का अपना फैसला पूरी तरह पक्का कर लिया था ! एक English डॉक्टर कपल ने आनंदीबाई को महिला मेडिकल कॉलेज ऑफ़ पेन्सिल्वेनिया में पढ़ने का सुझाव दिया, परंतु आनंदी बाई के इस कदम के प्रति उस समय के हमारे समाज में विरोध होना आरम्भ हो गया था ! उनके परिवार समाज के लोग नहीं चाहतें थे की उनके घर - परिवार - देश - की कोई महिला विदेश जाकर पढ़े ! कुछ इसाई institute ने उन्हे सपोर्ट तो किया परंतु उनकी इच्छा भी आनंदी बाई का धर्म परिवर्तित करवाने के बाद ही मदद करने की थी !
विदेश जाकर मेडिकल की पढ़ाई करने के अपने फैसले को लेकर अपने समाज में हो रहे विरोध को देखते हुए आनंदी बाई ने श्रीरामपुर कॉलेज में अपना पक्ष समाज के प्रबुद्ध लोगों के समक्ष रखा । उन्होनें अपने अमेरिका जाने और मेडिकल की डिग्री प्राप्त करने के लक्ष को लोगो के मध्य खुलकर विस्तार के साथ बताया, उन्होने लोगो को बताया की उनके भारतीय समाज मे एक महिला डॉक्टर की कितनी जरुरत है ! अपने इस संबोधन में उन्होंने लोगों के सामने यह भी स्पष्ट किया की वह स्वयम अथवा उनका परिवार भविष्य में कभी भी इसाई धर्म स्वीकार नहीं करेगा और मेडिकल की अपनी पढ़ायी पूरी करके वह वापस भारत आएँगी एवम देश में महिलाओं के लिए मेडिकल कॉलेज खोलेगी अपनी सेवा जीवन पर्यन्त अपने देश को देती रहेगी ! परिणाम यह हुआ कि उनके इस प्रयास से समाज के लोग प्रभावित हुए और देश भर से लोगो ने उन्हें सपोर्ट किया ! उनके विदेश मे रहकर मेडिकल की पढ़ाई करने के लिए लोगो ने पैसो का सहयोग भी किया ! इस प्रकार
पढ़ाई की राह में आने वाली पैसो की समस्या का रोडा हटा और आरम्भ हुआ आनंदीबाई का मेड्कल की पढ़ाई हेतु अमेरिका का सफर, जून माह वर्ष 1883 में वे भारत की प्रथम महिला के रूप मे अमेरिका की धरती पर पहुँची और उन्हें लेने के लिए उनके अमेरिकी मददगार सर ठोडीसिया कारपेंटर खुद पहुचे !
जिसके बाद मेडिकल की शिक्षा के लिए मेडिकल कॉलेज ऑफ़ पेनसिलवेनिया को उन्होने आवेदन किया, और उनकी इस आवेदन का सम्मान करते कॉलेज द्वारा उनका Admission स्वीकार कर लिया गया !
मात्र 19 वर्ष की कम उम्र में आनंदी बाई ने मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया और 11 मार्च 1886 में अपनी शिक्षा पूर्ण कर एम०डी० (डॉक्टर ऑफ़ मेडिसिन) की उपाधि हासिल करने वाली प्रथम भारतीय महिला बनी उनकी इस सफलता का अन्दाजा इसा से लगाया जा सकता है कि स्वयम क्वीन विक्टोरिया ने भी अपनी बधाई उन्हे भेजा था !
वर्ष 1886 में आनंदीबाई के साथ विमेंस मेडिकल कॉलेज ऑफ़ पेनसिलवेनिया से अन्य दो महिलाओं ने भी इस उपाधि को प्राप्त किया था उन महिलाओं के नाम है “कि ओकामी” और “ताबत इस्लाम्बूली” ये वह महिलाएं थी जिन्होंने असंभव को संभव कर दिखाया था एवम अपने अपने देश के लिए इस उपाधि को प्राप्त करने वाली पहली महिला होने का गौरव प्राप्त किया था !
अपनी डिग्री हासिल करने के बाद आनंदीबाई अपने वादे और लक्ष्य के अनुसार भारत वापस आई ! उन्होनें वापस आने के बाद सर्वप्रथम कोलाहपुर में अपनीं सेवाएँ देनी आरम्भ किया ! यहाँ उन्होनें अल्बर्ट एडवर्ड हॉस्पिटल में महिला विभाग का काम संभाला, यह भारत में महिलाओं के लिए प्रथम अवसर था जब उनकें इलाज़ के लिए उनके बीच कोई महिला चिकित्सक उपलब्ध थी, मेरे हिसाब से तो अर्चिता आज से एक शताब्दी पूर्व यह बहुत बड़ी बात थी इस देश के लिए । आनंदी बाई जोशी ने बहुत दूरूह बहुत कठिन परिस्थियों में एक क्रान्तिकारी पहल कर दिखाया था इस देश की बेटियो के लिए !
भारत के लिए यह अत्यन्त दुखद घटना थी कि अपनी डॉक्टर की उपाधि हासिल करने के मात्र एक वर्ष बाद ही 26 फरवरी 1887 को आनंदीबाई का निधन हो गया ! इनकी मृत्यु का कारण टीबी की बीमारी थी !
एक मजबूत डॉक्टर अपनी बीमारी के आगे हार गई, मात्र 22 वर्ष की उम्र में आनंदी बाई का निधन हमारे देश के लिए बहुत बड़ी क्षति थी,उस वक्त इस क्षति की भरपाई कर पाना मुश्किल था !
अपनी छोटी सी जिन्दगी में डा०आनंदी बाई जोशी ने परिवेश,परिस्थिति, समाज, सबकी जटिल वर्जनाएँ तोडते हुए वह कर दिखाया था जो उनके निधन के 131 वर्ष बाद आज भी हमारे समाज मे असम्भव लगता है ! सच कहूँ अर्चिता तो भारत की बेटियो के लिए लिए प्रथम बार डा०आनंदी बाई जोशी जी ने ही सफलता एवम उच्च शिक्षा के द्वार खोले थे !
दुनिया ने भारत की इस निडर कामयाब बेटी को कितना सम्मान दिया था इसका उद्दाहरण स्वयम न्यू जर्सी का वह कब्रिस्तान है जहाँ आज भी डा०आनन्दी बाई की कब्र मौजूद है ! उनकी मृत्यु के पश्चात उनकी अस्थियाँ
ठोडीसिया कारपेंटर को भेजी गयी थी, जिससे वहाँ के कब्रिस्तान में उनकी कब्र बनाई गयी !
इतनी कम उम्र में इतना सब कुछ कर दिखाना बहुत ही बड़ी बात है, ऐसे व्यक्तियों की जानकारी अगली पीढ़ी को दी जानी बहुत जरूरी होती है ! डा०आनन्दी बाई को उनकी मृत्यु के पश्चात देश भर से अनेक सम्मान दिये गए जिनमे प्रमुख है :
इंस्टिट्यूट फॉर रिसर्च एंड डॉक्यूमेंटेशन इन सोशल साइंस,
लखनऊ उत्तर प्रदेश के एक गैर सरकारी संस्थान ने मेडिसिन के क्षेत्र में आनंदीबाई जोशी सम्मान देने की शुरुआत किया यह सम्मान मेडिकल के लिए एक बहुत बड़ा सम्मान है !
महाराष्ट्र सरकार ने भी डा०आनन्दी बाई के नाम पर देश की युवा बेटियो के लिए एक फेलोशिप प्रोग्राम की शुरुआत किया है !
डा० आनंदी बाई होने का मतलब है वह भारतीय बेटी जिसने हर मुश्किलों का सामना डटकर किया हो और अपना एवम अपने देश समाज परिवार का भविष्य रौशन करने के साथ - साथ एक सदी पूर्व केवल भारत ही नही बल्कि सभी एशियायी देशो मे लडकियो के लिए मेडिकल के फिल्ड मे जाने की राह तैयार किया हो !
देश की बेटियो के लिए उन्होनो जो रास्तें खोले और जिस तरह समाज की जटिल व्यवस्था को आसान बनाया वह सदैव हमारे देश की बेटियो के लिए प्रेरणा का केन्द्र बना रहेगा !
हमारे देश की बेटियो, महिलाओं के सुनहरे भविष्य की प्रथम निर्माता डा० आनन्दी बाई जोशी जी को उनकी 131वी पुण्यतिथि पर मेरी विनम्र श्रद्धांजलि, मेरा कोटि - कोटि प्रणाम् !
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कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
स्तम्भकार/पत्रकार/लेखिका/
समीक्षक/स्वतंत्र टिप्पणीकार/
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