पुलगाँव
आखिर क्या है यह अदृश्य अनुच्छेद 35-A ???
और कैसे सहयोगी हो जाता है यह अनुच्छेद 370 लिए ?
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पुलगाँव मे हुई कल की आतंकवादी घटना के परिप्रेक्ष्य में भारद्वाज अर्चिता का एक लेख स्थानीय क़ानूनी पंडितो के साथ गहन परिचर्चा एवम बात - चीत के बाद :
आईए लिए चलती हूँ आज आप सभी पाठकों को भारतीय संविधान के उस अदृश्य हिस्से की तरफ जिसे अदृश्य अनुच्छेद 35-A के नाम से जाना जाता है, एक ऐसा अनुच्छेद जिसने धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले हमारे जम्मू कश्मीर को लाखों लोगों के लिए नर्क बना दिया है ! संविधान की किताबों में न मिलने वाला अनुच्छेद 35-A जम्मू-कश्मीर की विधान सभा को यह अधिकार देता है अर्चिता कि : वह 'स्थायी नागरिक' की परिभाषा तय कर सके !
जून 1975 में लगे आपातकाल को भारतीय गणतंत्र का सबसे बुरा दौर माना जाता है ! इस दौरान नागरिक अधिकारों को ही नहीं बल्कि भारतीय न्यायपालिका और संविधान तक को राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की भेंट चढ़ा दिया गया था ! ऐसे कई संशोधन इस दौर में किये गए जिन्हें आज तक संविधान के साथ हुए सबसे बड़े खिलवाड़ के रूप में देखा जाता है ! लेकिन क्या इस आपातकाल से लगभग बीस साल पहले भी संविधान के साथ क्या ऐसा ही एक खिलवाड़ नही हुआ था?
मित्रो 'जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र' की मानें तो 1954 में हमारे देश एवम जम्मू - कश्मीर के साथ एक ऐसा 'संवैधानिक धोखा' किया गया था जिसकी कीमत इस देश मे आज तक लाखों निर्दोष लोगों को चुकानी पड़ रही है !
1947 में भारत पाकिस्तान के मध्य हुए बंटवारे के दौरान वह लाखों लोग जो शरणार्थी बनकर भारत आए थे वह लोग देश के कई हिस्सों में जाकर बस गए थे और आज उन्हीं हिस्सो का एक अहम हिस्सा भी बन चुके हैं ! दिल्ली, मुंबई, सूरत या भारत के उस हर प्रान्त मे जहां कहीं भी ये लोग जाकर बसे आज वहाँ के स्थायी निवासी हो चुके है ! लेकिन जम्मू-कश्मीर में आज तक स्थिति ऐसी नहीं है बन पायी है, यहां आज भी कई दशक पहले बसे लोगों की चौथी - पांचवी पीढ़ी शरणार्थी ही कहलाती है और तमाम मौलिक अधिकारों से आज तक वंचित है !
एक आंकड़े के अनुसार, 1947 में 5764 हिन्दू परिवार पश्चिमी पकिस्तान से आकर जम्मू कश्मीर में बसे थे, इन हिंदू परिवारों में लगभग 80 प्रतिशत दलित हिन्दू परिवार थे ! यशपाल भारती भी ऐसे ही एक परिवार से हैं वह बताते हैं, 'हमारे दादा बंटवारे के दौरान यहां आए थे, आज हमारी चौथी पीढी यहां रह रही है, पर आज भी हमें न तो यहां होने वाले चुनावों में वोट डालने का अधिकार है, न ही किसी तरह की कोई सरकारी नौकरी पाने का ही, न ही सरकारी कॉलेजों में दाखिला लेने का ही !
यह स्थिति सिर्फ पश्चिमी पकिस्तान से आए इन हजारों दलित / हिन्दू परिवारों की ही नहीं है बल्कि यहाँ पर रहने वाले लाखों अन्य परिवारो की भी है ! इनमें गोरखा समुदाय के वे लोग भी शामिल हैं जो बीते कई सालों से जम्मू-कश्मीर में रह तो रहे हैं पर इनकी स्थिति बेहद नारकिय बनी हुई है ! इनसे भी बुरी स्थिति तो यहाँ रहने वाले वाल्मीकि समुदाय के उन लोगों की है जो 1957 में यहां आकर बस गए थे ! उस समय इस समुदाय के करीब 200 परिवारों को पंजाब से जम्मू कश्मीर बुलाया गया था ! कैबिनेट के एक फैसले के अनुसार इन्हें विशेष तौर से सफाई कर्मचारी के तौर पर नियुक्त करने के लिए यहां लाया गया था ! बीते 62 सालों से यह लोग यहां सफाई का काम कर रहे हैं, लेकिन इन्हें आज भी जम्मू-कश्मीर का स्थायी निवासी नहीं माना जाता !
यशपाल भारती जैसे जम्मू कश्मीर में रहने वाले लाखों लोग भारत के नागरिक तो हैं लेकिन बिडम्बना यह है कि : जम्मू - कश्मीर राज्य इन्हें अपना नागरिक नहीं मानता इसलिए ये लोग लोकसभा के चुनावों में तो वोट डाल सकते हैं लेकिन जम्मू कश्मीर में पंचायत से लेकर विधान सभा तक किसी भी चुनाव में इन्हें वोट डालने का अधिकार नहीं, यह लोग भारत के प्रधानमंत्री तो बन सकते हैं लेकिन जिस राज्य में यह कई सालों से रह रहे हैं वहां के ग्राम प्रधान भी नहीं बन सकते यह, सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता जगदीप धनकड़ बताते हैं, 'इनकी यह स्थिति एक संवैधानिक धोखे के कारण हुई है.'
जगदीप धनकड़ उसी 'संवैधानिक धोखे' की बात करते आ रहे हैं जिसका जिक्र इस लेख की शुरुआत में मेरे द्वारा कर दिया गया है ! 14 मई 1954 को तत्कालीन उस समय के राष्ट्रपति द्वारा एक आदेश पारित किया गया था ! इस आदेश के जरिये भारत के संविधान में एक नया अनुच्छेद 35-A जोड़ दिया गया ! यही 35-A आज लाखों निर्दोष लोगों के लिए अभिशाप बना हुआ है !
'अनुच्छेद 35-A जम्मू-कश्मीर की विधान सभा को यह अधिकार देता है कि वह 'स्थायी नागरिक' की परिभाषा तय कर सके और उन्हें चिन्हित कर विभिन्न विशेषाधिकार भी दे सके, “यह अनुच्छेद परोक्ष रूप से जम्मू और कश्मीर की विधान सभा को, एवम लाखों लोगों को शरणार्थी मानकर हाशिये पर धकेल देने का अधिकार भी देता आ रहा है !
उपर मैने जिस अनुच्छेद 35-A (कैपिटल ए) का जिक्र मैने किया हैं, वह हमारे देश के संविधान की किसी भी किताब में नही मिलता ! हालांकि संविधान में अनुच्छेद 35-a ( स्माल ए ) जरूर है, लेकिन इसका जम्मू-कश्मीर से कोई सीधा संबंध नहीं है !
हमारे कुछ वानून वेत्ता बताते है 'भारतीय संविधान में आज तक जितने भी संशोधन हुए हैं, सबका जिक्र संविधान की किताबों में होता है, लेकिन 35-A कहीं भी नज़र नहीं आता ! दरअसल इसे संविधान के मुख्य भाग में नहीं बल्कि परिशिष्ट (अपेंडिक्स) में शामिल किया गया है ! यह चालाकी इसलिए की गई ताकि लोगों को इसकी कम से कम जानकारी हो.' एक जाने माने कानून वेत्ता बताते है 'मुझसे जब किसी ने पहली बार अनुच्छेद 35-A के बारे में पूछा तो मैंने कहा कि ऐसा कोई अनुच्छेद भारतीय संविधान में मौजूद ही नहीं है !
सच कहता हूँ कई साल की वकालत के बावजूद भी मुझे इसकी जानकारी नहीं रही !
भारतीय संविधान की बहुचर्चित धारा 370 जम्मू-कश्मीर को कुछ विशेष अधिकार देती है! 1954 के जिस आदेश से अनुच्छेद 35-A को संविधान में जोड़ा गया था, वह आदेश भी अनुच्छेद 370 की उपधारा (1) के अंतर्गत ही राष्ट्रपति द्वारा पारित किया गया था ! कानून विदो की माने तो भारतीय संविधान में एक नया अनुच्छेद जोड़ देना सीधे-सीधे संविधान को संशोधित करना है, और संशोधन का यह अधिकार केवल भारतीय संसद को ही है !
उपरोक्त उल्लेख के बाद यह प्रश्न खडा होना लाजमी है कि :
: अनुच्छेद 35-A की संवैधानिक स्थिति क्या है?
: यह अनुच्छेद भारतीय संविधान का हिस्सा है या नहीं?
: क्या राष्ट्रपति के एक आदेश से इस अनुच्छेद को संविधान में जोड़ देना अनुच्छेद 370 का दुरूपयोग करना है?
इन तमाम उपरोक्त सवालों के जवाब तलाशने के लिए जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र वर्ष 2017 से अनुच्छेद 35-A को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने की बात कर रहा करता आ रहा है ! वैसे अनुच्छेद 35-A से जुड़े कुछ सवाल और भी हैं जैसे :
यदि अनुच्छेद 35-A असंवैधानिक है तो सर्वोच्च न्यायालय ने 1954 के बाद से आज तक कभी भी इसे असंवैधानिक घोषित क्यों नहीं किया?
यदि यह भी मान लिया जाए कि 1954 में नेहरु सरकार ने राजनीतिक कारणों से इस अनुच्छेद को संविधान में शामिल किया था तो फिर यह सवाल भी लाजमी हो जाता है कि - किसी भी गैर-कांग्रेसी सरकार ने भी इसे समाप्त क्यों नहीं किया?
इसके जवाब में इस मामले को उठाने वाले लोग यही मानते हैं कि ज्यादातर सरकारों को इसके बारे में पता ही नहीं था शायद इसलिए ऐसा नहीं किया गया होगा !
गोरखपुर विश्वविद्यालय के विधि विभाग का कहना है कि : अनुच्छेद 35-A की सही-सही जानकारी आज भी कई दिग्गज अधिवक्ताओं तक को नहीं है !
हाल के वर्षो मे इसकी स्थिति शायद कुछ ज्यादा साफ़ हुई है ! लेकिन यशपाल भारती और मंगत राम जैसे लाखों लोगों की स्थिति पिछले कई सालों से अनवरत बनी हुई है ! आज तक इन्हें इनके अधिकारों से वंचित रखा गया है ! यहाँ तक की कश्मीर में अलगाववादियों को भी इनसे ज्यादा अधिकार मिले हुए हैं, इस अनुच्छेद 35-A की ही देन है कि आज भी वहां हमारी फौज द्वारा आतंकवादियों को मारने पर भी मानवाधिकार हनन की बातें उठने लगती हैं जबकि वहीं पर लाखों लोगों के मानवाधिकारों का हनन पिछले कई दशकों से हो रहा है
लेकिन देश को या तो इसकी जानकारी ही नहीं है या सबकुछ जानकर भी इनके अधिकारों की बात कोई नहीं करना चाहता !
कुछ कानून विदो का तो यहाँ तक कहना है कि : अनुच्छेद 35-A दरअसल अनुच्छेद 370 से ही जुड़ा हुआ है, और भारत मे अनुच्छेद 370 एक ऐसा विषय है जिससे न्यायालय तक बचने की कोशिश करता आ रहा है ! यही कारण है कि इस पर आज तक स्थिति साफ़ नहीं हो सकी है ! माना की अनुच्छेद 370 जम्मू कश्मीर को कुछ विशेषाधिकार देता है ! लेकिन कुछ लोगों को विशेषाधिकार देने वाला यह अनुच्छेद क्या कुछ अन्य लोगों के मानवाधिकार का हनन नही करता आ रहा है? आज यशपाल भारती और मंगत राम जैसे लाखों लोगों की स्थिति तो यही बताती है कि : चाहे उरी अटैक हो चाहे आज चन्द घण्टे पूर्व की पुलगाँव मे हुई घटना चाहे इससे भी पूर्व मे और 1955 के बाद से अब तक की हुई हुई तमाम घटनाएँ सबके केन्द्र मे अनुच्छेद 370 और अदृश्य अनुच्छेद 35-A जनित लाचारी ही है अर्चिता !
जब जक अनुच्छेद 370 समाप्त नही होगा जम्मू कश्मीर मे आतंकवादियों एवम आतंकवादी घटानाओ पर रोक लगा पाना असम्भव है ! अनुच्छेद 370 की समाप्ती के लिए देश की कार्यपालिका एवम न्यायपालिका के साथ साथ देश के विपक्षी दलों को भी सत्ता का छल दम्भ भूलकर केवल अपने राष्ट्र के लिए एक स्वस्थ सोच के साथ एक दूसरे को सहयोग करना होगा जब तक ऐसा नही होगा जम्मू कश्मीर से राष्ट्रीय ध्वज मे लिपट कर अनवरत हमारे जवानो की पार्थिव देह आती रहेगी,
हम एक दिनी शोग मना कर चुप होते रहेगे अर्चिता,
और आतंकी मसूद अजहर जैसे आतंकवादियो को आतंकी हमले करवाने के लिए सह एवम जगह मिलती रहेगी !
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कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
स्तम्भकार/पत्रकार/लेखिका/
समीक्षक/स्वतंत्र टिप्पणीकार
15/02/2019
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