“अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो” कविता !! कलम से : भारद्वाज अर्चिता
{{ अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो }}
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अपनी भावनावों के दोनो कंधो पर
सपनों से भरे दो बड़े-बड़े
झोले लेकर सदियों पहले
तमाम नसीह़तों के साथ
परम्पराओं की दहलीज़ पार करके
“मै” घर से निकली थी अर्ची
एक मुठ्ठी - खुशी मां के लिए
एक मुठ्ठी खुशी बाबा के लिए
एक मुठ्ठी खुशी दीदीया के लिए
एक मुठ्ठी खुशी भईया के लिए
एक मुठ्ठी खुशी खानदान के लिए
एक मुठ्ठी खुशी अपने गांव की पुरवाई के लिए
एक मुठ्ठी खुशी चंहचहाती
घर के मुंडेर की गौरैया के लिए
एक मुठ्ठी खुशी घर के मंदिर में
बिराजे अपने ठाकुर के लिए
एक मुठ्ठी खुशी अपने गांव/शहर की
हर एक बेटी के लिए लेकर लौटूंगी
बहुत जल्दी लौटूंगी
अभी कामयाबी के चौक तक
पहुंची भी नही थी “मै” कि :
हालात नामक डाकूं ने
मेरी भावनावों के दोनो कंधों से
मेरे सपनो के दोनो झोले झटक लिए
मै सदियों से सदियों तक
अपने उन सपनो वाले झोलों के लिए
घुट रही हूं ,
सहम रही हूं ,
चीख रही हूं ,
चिल्ला रही हूं ,
उफना रही हूं,
उतरा रही हूं ,
गुमनाम खौफ़ में अपनी परछाईयों के
कंधे पर सिर टिका कर
अपने आपसे फुसफुसा रही हूं
अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो ....???
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कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
स्तम्भकार/पत्रकार/लेखिका/
समीक्षक/स्वतंत्र टिप्पणीकार/
मोबाईल नम्बर : 09919353106
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अपने पाठकों से निवेदन है प्लीज कॉपी पेस्ट नही करना यह मेरी कविता साहित्यिक पत्रिका मे पब्लिश्ड हो चुकी कविता है !
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