चंद्रशेखर आजाद ! पुण्यतिथि विशेष :

चन्दू से पंडित जी, पंडित जी से चंद्रशेखर आजाद, बनने तक का सफ़र महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद !!
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“पुण्यतिथि विशेष” :
बचपन से ही वह बहुत स्वाभिमानी था, आजाद खयाल आजादी का दिवाना था वह, उसे मल्हयुद्ध मे महारत हासिल थी, मौत को अपनी दासी समझता था वह, जीवन मे एक बार केवल एक बार प्रेम किया था उसने बहुत आदर्श प्रेम अपनी मातृभूमि से प्रेम, और अपने उसी प्रेम के चलते खुद को दुनियाँ से आजाद कर गया ! उसकी शहादत के बाद ही इस दुनियाँ ने सही तरह से पहचाना उसे ! राष्ट्र के लिए वह कितना समर्पित था यह तो उसके बलिदान का लहू ही बयान कर देता है !
महान माता जगरानी देवी एवम पुण्य आत्मा पिता पंडित सीताराम के घर मध्य प्रदेश मे स्थित झाबुआ जिले के भाबरा नामक गाँव (वर्तमान मे आजाद नगर ) मे 23 जुलाई 1906 को इस बालक चन्दू का जन्म हुआ था ! जी हाँ मित्रो मै बात कर रही हूँ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक एवं लोकप्रिय स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद जी की ! पण्डित जी ( चंद्रशेखर ) स्वाभिमानी  बहुत थे उन्हे जिल्लत की जिन्दगी बसर करने से कही बेहतर लगता था अपने हाथो स्वाभिमान पूर्वक आत्महत्या कर लेना जिसे 27 फरवरी 1931 मे आज ही के दिन अलफ्रेड पार्क इलाहाबाद मे चंद्रशेखर आजाद ने सच कर के दिखाया था ! माना जाता है कि बच्चो मे नेकी, स्वाभिमान व साहस के गुण अपने माता-पिता से ही आते है चंद्रशेखर के पिता एक ईमानदार, स्वाभिमानी, साहसी और वचन के पक्के व्यक्ति थे यही गुण चंद्रशेखर को अपने पिता से विरासत में मिल गए थे। मा दयालूता की मूरत थी और कहना तर्कपूर्ण होगा कि : चंद्रशेखर आजाद के भीतर जितनी राष्ट्र प्रेम की प्रचण्डता थी उतनी ही दबे कुचले असहायो के प्रति दयालुता एवम विनम्रता भी भरी पडी थी, यह गुण उन्हे माँ से मिले थे !
चंद्रशेखर आजाद झबुआ जिला भाबरा से 14 वर्ष की आयु में बनारस आए तो थे विद्या अध्ययन के लिए एवम बनारस मे एक संस्कृत पाठशाला में पढ़ाई भी शुरू कर दिया पर मन रम नही रहा था उन्हे हर रोज सपना आता कि बेडियो मे जकडी हुई एक स्त्री उनके सामने खडी है बेजार रो रही है और उनके द्वारा तुम कौन हो पूछे जाने पर खुद को भारत माता बताती है रोज के इस सपने से वह 14 वर्ष का बालक असहज हो रहा था, एक दिन अपने गुरू को अपना यह सपना बताता है और गुरू के मुँह से शब्द फूटता है बालक तुम्हे राष्ट्र माता बुला रही है तुम राष्ट्र माता के अन्नय पुत्र को तुमसे जुडकर एक दिन भारत का नाम चमकेगा तुम साधारण नही हो क्योकि तुम्हारी जरूरत राष्ट्र माता को है ! गुरू के शब्द एवम आस - पास के परिवेश ने आखिर उस बालक आजाद को एक दिन देश सेवा से जोड ही दिया और प्रथम बार उन्होंने ( बालक आजाद ) ने कानून भंग आंदोलन में योगदान दिया ! 1920 - 21के वर्षों में आजाद 15 वर्ष की उम्र मे गाँधीजी के असहयोग आंदोलन से भी जुड़े, भारत माता की जय बोलते हुए गिरफ्तार हुए, जज के समक्ष प्रस्तुत किए गए एवम परिचय पूछे जाने पर जज को उन्होंने अपना नाम 'आजाद', पिता का नाम 'स्वतंत्रता' और 'जेल' को अपना निवास स्थान बताया था। जी हाँ मित्रो यह वही घटना है जिसे चौथी क्लास मे हम सब ने पढ़ा है ! मुझे याद है गुरू जी जब बता रहे थे कि “15 वर्ष के मासूम मगर जीवट बालक आजाद की पीठ पर बेत से 15 बेत की मार पडी थी तो मैने देखा मेरे गुरु जी की आँख डबडबा गयी थी ” पर वह गर्व से कहे जा रहे थे बच्चो आजाद 15 कोड़ों की सजा के साथ - साथ भी 'वन्दे मातरम्‌' और भारत माता की जय का स्वर बुलंद किए जा रहे थे । यही वह घटना इी जिसके बाद वह चंद्रशेखर से आजाद बने याने के चंद्रशेखर आजाद !
भारत के इतिहास मे सार्वजनिक रूप से आजाद कहलाने वह प्रथम क्रांतिकारी है ! जब देश मे क्रांतिकारी आंदोलन उग्र हुआ तब आजाद का गाँधी से मोह भँग हो गया ! और वह क्रांतिकारी आंदोलन की तरफ खिंचे चले गए 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट आर्मी' से जुड़े और रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में काकोरी षड्यंत्र (1925) में सक्रिय भाग लिया प्रथम बार यही पर आजाद पुलिस की आंखों में धूल झोंककर फरार हुए थे !आप सबको एक राज की बात बताती चलूँ वह यह कि क्रांतिकारी आंदोलन मे सक्रिय होने ले पहले भगत सिंह पण्डित जी से मिलने कानपुर आए, यहाँ पर आजाद द्वारा भगत सिंह की राष्ट्र भक्ति के कई इम्तेहान लिए गए जिसमे पास होने के बाद ही आजाद ने भगत सिंह को देश के क्रांतिकारी आंदोलन मे सक्रिय होने का न्योता दिया और मेरा भगता कह कर भगत सिंह को गले से लगाया ! इस घटना का जिक्र विस्तार से मै अपनी आने वाली किताब मे भी कर रही हूँ।
प्रथम बार जब आजाद एवम भगत सिंह एक साथ हथियार उठाए वह दिन था 17 दिसंबर, 1928 का ! हथियार उठाने की एक वजह थी वह थी “लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेना” चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और राजगुरु ने शाम के समय लाहौर में पुलिस अधीक्षक के दफ्तर को घेर लिया और ज्यों ही जे.पी. साण्डर्स अपने अंगरक्षक के साथ मोटर साइकिल पर बैठकर निकले तो राजगुरु ने पहली गोली दाग दी, जो साण्डर्स के माथे पर लग गई वह मोटरसाइकिल से नीचे गिर पड़ा इसके तुरन्त बाद भगत सिंह ने आगे बढ़कर 4 - 6 गोलियां दाग कर साण्डर्स को बिल्कुल ठंडा कर दिया। जब साण्डर्स के अंगरक्षक ने इन लोगो का पीछा किया, तो चंद्रशेखर आजाद रूक कर अपनी गोली से अंगरक्षक की भी हत्या कर के वहाँ से हटे। इतना ही नहीं लाहौर में जगह - जगह उनकी निगरानी मे परचे चिपकाए गए यह लिख कर कि : लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला ले लिया गया है। उनके इस कदम ने रातों रात ब्रितानी हुकूमत की नीद उडा दिया था ! और उस एक दिन की इस एक क्रांतिकारी घटना ने हजारो क्रांतिकारियो को देश पर मर मिटने के लिए तैयार कर दिया था ! भारत मे यह वह घटना थी जिसके बाद भारत की हर माँ चाहती थी मेरा भी एक पुत्र ऐसा हो जो आजाद की तरह निडर हो, राष्ट्र माता की सेवा मे लगे, देश की आजादी मे अपना योगदान दे, !
अलफ्रेड पार्क, इलाहाबाद में 1931 में आजाद ने पूर्ण क्रांति का आह्वान किया। उन्होंने यही पर संकल्प लिया था कि वे न कभी पकड़े गए है ना ही कभी पकडे जाएंगे जिससे कि ब्रिटिश सरकार उन्हें फांसी दे सके ! अपने इस संकल्प को उन्होने पूरा भी किया ! 27 फरवरी, 1931 को इलाहाबाद के इसी अलफ्रेड पार्क में ब्रिटिश सैनिको के हाथो पकडे जाने से खुद को बचाते हुए अपनी पिस्टल की आखिरी गोली स्वयं की कनपटी पर दागकर मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की आहुति देते हुए आजाद हो गए । मातृभूमि की आजादी के लिए माँ भारती के श्री चरणो मे अर्पित होने वाले वह अनमोल पुष्प है चंद्रशेखर आजाद जो आजादी से पहले ही भारत के गुलिसिता का सबसे अनमोल आजाद पुष्प हो गए थे ! ऐसे पुष्प जिसके आजाद शहीदी की सुगन्ध आज भी हम सब अपने आस - पास महसूस करते है और हमारी आने वाली हज़ारों हज़ार पीढ़ियाँ भी महसूस करती रहेंगी !
देश की आजादी के खातिर देश पर मर मिटने वाले आजाद को आज उनकी पुण्यतिथि पर मेरा कोटि - कोटि प्रणाम !
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कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
स्तम्भकार/पत्रकार/लेखिका/
समीक्षक/स्वतंत्र टिप्पणीकार

उपरोक्त यह सम्पूर्ण लेख मेरी अपनी भावना है ! मेरे अपने शब्द है, इसे किसी भी विवाद से न जोडा जाए केवल चन्द्रशेखर आजाद जी के प्रति मेरी अगाध श्रद्धा के रूप मे देखा जाए इसे !
Bhardwaj@rchita
27/02/2019

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“ सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय । सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय ।” भावार्थ :- यदि सारी धरती को कागज़ मान लिया जाए , सारे जंगल - वनों की लकड़ी की कलम बना ली जाए तथा सातों समुद्र स्याही हो जाएँ तो भी हमारे द्वारा कभी हमारे गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते है ।हमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है अर्ची, गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है । इस जगत मे बहुत कम ऐसे गुरू हुए है जिनको उनकी अपनी सफलता के साथ साथ ही उनके अपने शिष्य की सफलता से पहचान मिली हो ऐसे ही भाग्यशाली गुरू रहे है “रमाकान्त आचरेकर” जिन्हे पूरी दुनिया सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट कोच “ क्रिकेट गुरू ” के रूप मे जानती है और इसी रूप मे ही सदैव याद भी रखना चाहती है ! ईश्वर के साम्राज्य मे पहुँचने पर आज गुरू आचरेकर का स्वागत नाराण ने निश्चित तौर पर यही कह कर किया होगा “ क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के गुरू रमाकान्त आचरेकर जी आईए आपका स्वागत है !!” दिवंगत आचरेकर जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !! ================================ Bhardwaj@rchita 03/01/2019

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