जब संसद में उड़ा था शत्रुघ्न सिन्हा का मजाकः साल 2002 में जब केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार सत्ता में थी, उस दौरान शत्रुघ्न सिन्हा स्वास्थ्य मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। उस वक्त संसद के शीतकालीन सत्र के एक दिन शत्रुघ्न सिन्हा को संसद में अपने मंत्रालय से संबंधित सवालों का जवाब देना था। लेकिन स्थिति ये रही कि अपने ही मंत्रालय से संबंधित सवालों से अनभिज्ञ रहने पर शत्रुघ्न सिन्हा को संसद में उपहास का पात्र बनना पड़ा था। स्थिति ये थी कि सिन्हा कभी अधिकारियों द्वारा भेजी गई पर्ची पढ़ते, कभी सवाल और इसी में कन्फ्यूज होकर रह जाते। एक सवाल के जवाब में शत्रुघ्न सिन्हा देश में प्रतिबंधित दवाओं के नाम का उच्चारण भी ठीक से नहीं कर पाए थे और जो भी हैं…कहकर अपना पीछा छुड़ाया था। सिन्हा के इस जवाब पर सदन में खूब ठहाके लगे थे। आखिरकार सिन्हा ने यह कहकर अपना पीछा छुड़ाया कि वह क्यों उनका इम्तिहान ले रहे हैं। वह कोई डॉक्टर नहीं और अभी मेहनत करके सीख रहे हैं। बहरहाल इस दौरान सदन में खूब ठहाके लगे और सिन्हा को लेकर काफी चुहलबाजी होती रही।
बिहार में पटना साहिब लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रेस कॉन्फ्रेंस करने की खुली चुनौती दे डाली। उन्होंने नए साल पर पीएम के समाचार एजेंसी एएनआई को दिए गए साक्षात्कार को प्रायोजित करार दिया। कहा कि पूर्व के सभी पीएम ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कीं, पर आपने अभी तक के साढ़े चार साल के कार्यकाल में एक भी कॉन्फ्रेंस नहीं की, ऐसा क्यों सर?
दरअसल, शत्रुघ्न ने गुरुवार को कुछ सिलसिलेवार ट्वीट्स में पीएम मोदी पर ताबड़तोड़ जुबानी वार किए थे। उन्होंने लिखा, “पूर्व में सभी पीएम ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कीं, पर सर आपने अभी तक एक भी ऐसे सम्मेलन को संबोधित नहीं किया। ऐसा क्यों? ‘सरकारी’ विचारधारा के बजाए आप असल पत्रकारों का सामना करिए।”
इस पर मुझे शत्रुघ्न साहब का वर्ष 2002 वाला पसीने से तर वह चेहरा याद आ गया जो पत्रकारो के सवालो ۔से कतराते हुए बाहर निकलने की जुगत मे लगे थे !

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“ सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय । सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय ।” भावार्थ :- यदि सारी धरती को कागज़ मान लिया जाए , सारे जंगल - वनों की लकड़ी की कलम बना ली जाए तथा सातों समुद्र स्याही हो जाएँ तो भी हमारे द्वारा कभी हमारे गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते है ।हमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है अर्ची, गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है । इस जगत मे बहुत कम ऐसे गुरू हुए है जिनको उनकी अपनी सफलता के साथ साथ ही उनके अपने शिष्य की सफलता से पहचान मिली हो ऐसे ही भाग्यशाली गुरू रहे है “रमाकान्त आचरेकर” जिन्हे पूरी दुनिया सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट कोच “ क्रिकेट गुरू ” के रूप मे जानती है और इसी रूप मे ही सदैव याद भी रखना चाहती है ! ईश्वर के साम्राज्य मे पहुँचने पर आज गुरू आचरेकर का स्वागत नाराण ने निश्चित तौर पर यही कह कर किया होगा “ क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के गुरू रमाकान्त आचरेकर जी आईए आपका स्वागत है !!” दिवंगत आचरेकर जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !! ================================ Bhardwaj@rchita 03/01/2019

माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति अयोध्याकाण्ड जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठा] जानि गौरि अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।

गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं. गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं. गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं. सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष सर्वोच्च ब्रह्म है अपने उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करती हूँ, कोटि-कोटि प्रणाम करती हूं !! साभार : भारद्वाज अर्चिता