निराला पर चर्चा !!!
वसंत पंचमी के अवसर पर मेरे अनन्य कवि एवम वसंत के अग्रदूत “महाप्राण निराला” की सार्थकता पर एक चर्चा !
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भारत की असतो मा सद्गमय की अमृतमयी उद्घोषणा ही भारत की पहचान है। यही अमृतमयी मन्त्र मेरे अनन्य महाकवि सूर्य कान्त त्रिपाठी "निराला जी" की जीवन दृष्टि भी है, यही उनका अंतर्मन भी है,और उनकी रचना धर्मिता का चेतना केन्द्र भी है !
जो सभी प्रकार के संत्रास, दुःख, व्यथा और न जाने कौन-कौन से इसी तरह के अंत:स्थलों से गुजरता हुआ गुह्य गह्वरों को चीरता हुआ हर कलुष और तमस को हटाता हुआ अपनी आत्मा को "हरि चरणों" में अर्पित कर डालने के साथ ही अपने राष्ट्र भारत के लिए, अपनी राष्ट्र माता भारती के लिए, विवेक बुद्धि की देवी माता वीणावादिनि से अनुनय विनय करते हुए मनमोहक ऋतु बसंत ऋतु के अवसर पर हृदय की अनंत गीरह खोलकर गा उठा है :
वर दे, वीणावादिनि वर दे !
प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव भारत में भर दे !!
काट अंध-उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर;
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर जगमग जग कर दे !!
नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव;
नव नभ के नव विहग-वृंद को नव पर, नव स्वर दे !
वर दे, वीणावादिनि वर दे।
जीवन का अकाट्य सत्य मृत्यु है। निराला प्रथम ऐसे कवि हुए जिन्होने स्वयं पग - पग पर मृत्यु को चुनौती देने के साथ प्रमाणिकता भी दिया है तथा उदार भाव से अपनी बाँहे फैलाकर मृत्यु का हँस-हँस कर आलिंगन भी किया है। जब जब मैने कविवर निराला पर चिन्तन मनन किया है साफ तौर पर पाया है जीवन का कोई पहलू निराला के रचना संसार से अछूता नही रहा है ! दुःख-सुख, राग-विराग, अंधकार-प्रकाश, शोक-अशोक, बिरह वेदना, प्रेम, सौन्दर्य, दार्शनिक चिन्तन और अनुभूत सत्य या आत्म प्रकाश सभी कुछ है निराला की रचना धर्मिता के मानक पर साथ ही उनके रचना के केन्द्र मे प्रथमतया अन्दर बाहर उनका राष्ट्र ही भरा पडा और यह इतना भरा पडा है कि हमारा हिंदी साहित्य प्रलयांत तक महाकवि, महाप्राण का ऋणी रहेगा। निराला ने 1961 अपनी मृत्यु से पूर्व एक कविता लिखी थी “पत्रोत्कंठित जीवन का विस बुझा हुआ” नाम से जिसमे उन्होने साफ लिख दिया है कि
वास्तव मे वही मर सकता है या मरना जानता है जो अपना शीश हाथ धर कर जीता है। निराला होने का मतलब ही है मृत्यु को अपने सम्मुख बैठा मृत्यु से ही अपने अमरत्व के लिए हुँकारी भरवाना फिर जीवित रहते रहते सम्मुख बैठी इस मृत्यु से पूर्ण आलिंगनबद्ध होकर जीवन के विविध पहलू पर बेबाक कलम चलाना ! यथा :
मरण को जिस ने वरा है
उसी ने जीवन भरा है !!
उपरोक्त पक्ति को कहना अथवाँ लिखना आज के दोहरे मानदंडों पर आधारित हमारे जीवन में बेशक सरल लगता हो परन्तु निराला ने इसे यूं ही नही लिखा है क्योंकि निराला का जीवन-वृत्त इस बात का साक्षी है। भारतीय वांग्मय के अनुसार तो शिव ने जीवन में एक बार विष-पान किया था परन्तु निराला के जीवन में तो ऐसा पता नहीं कितनी बार हुआ है जब निराला ने अपने समय के साहित्य मुर्धन्य लोगो के द्वारा, अपने समय के सामाजिक व्यवस्था एवम परिवेश के द्वारा स्वयम को अपमानित किए जाने का हजारो बार विषपान किया है और झल्ला कर खीझ कर लिखा है यथा :
लख कर अनर्थ आर्थिक पथ पर
हारता रहा मै स्वार्थ समर !!
××××××××××××××××××××××
इस विषम बेलि में विष ही फल
यह दग्ध मरुस्थल नहीं सुफल !!
जीवन का निरंतर विषम विषपान ही निराला के जीवन धारा को औरो से अलग करती है यथा :
दुःख ही जीवन कि कथा रही
क्या कहूँ आज जो नहीं कही ||
एक तथ्य जिसके लिए मेरे मन मे महाप्राण के लिए अनन्य आदर भाव जगा वह तथ्य है दुनिया के इस मायावी छल प्रपंच के आगे यह विषपायी कंठ कभी हारा नही बल्कि मृत्यु से बेखौफ कदमताल करते हुए अमरत्व प्राप्त किया है, और विश्व की एक मात्र प्रथम सोकगीत अपनी कालजयी रचना “सरोज स्मृति” के आखिर की पक्तियो मे इस अमरता का प्रमाण देते हुए स्वयम लिखा है :
गीते मेरी तज रूप नाम
वर लिया अमर साश्वत विराम,
तू गयी स्वर्ग क्या यह विचार
जब पिता करेगे मार्ग पार
वह अच्छम अति ! तब मै सच्छम
तारूँगी “गह” “कर” “दुस्तर तम” !!
यह अमरत्व की जीत साधारण जीत नहीं है अर्चिता क्योंकि सिद्धांत की लड़ाई में या सत की जय के लिए प्रतिज्ञा भंग कर चक्र हस्तगत करना भी जब हार नहीं रही तो फिर निराला की हार कैसे हो सकती है।
मेरे अनन्य निराला ने तो अपनी कलम के माध्यम से स्वयम नारायण से ही प्रश्न कर डाला था और हजार सवाल पूछ डाला यह लिखते हुए कि :
"कहाँ तुम्हारी महादया"
उनके यह प्रश्न तर्कपूर्ण भी थे क्योकि जब निराला ने बड़े-बड़े मंचों पर ढोंगी राजनेताओं, समाज-सुधारकों तथा साहित्य-कर्मियों तक को भी नहीं छोड़ा तो भला वह भगवान को छोड़ने वाले कहाँ थे; अपने अवसाद के दिनो मे निराला नारायण से सीधे सीधे प्रश्न दागते है यथा :
"आँख बचाते हो"।
कैसा उपालम्भ है! हरि या विधि भी इस धीर गम्भीर के आगे बौने हो गये। जन्म-पत्रांक को भी मिटाने में जो समर्थ रहा हो, वो जमाने से तो संघर्ष करता ही रहा अपितु विधि से भी संघर्ष करने से नहीं चूका जिस जन्म-पत्र में दो विवाह थे, उसे ही नदी में बहा दिया, झुठला दिया उस कागज के टुकड़े को। परन्तु यह झुठलाना भी धर्म के विरुद्ध बिगुल नहीं था !
कुछ लोगों ने जब कुछ समय तक उन का उपयोग मत विशेष के लिए किया तो निराला और अधिक गहनता से शरणागत हो गये, और हजारों बार मृत्यु का वरण करते हुए भी अमर हो गए ! यथा :
मरा हूँ हजार मरण
पाई है तब चरण शरण !!
निराला ने निरंतर उन पाखंडों का खंडन करने से भी परहेज नहीं किया जिन का लोग भाषण में तो विरोध करते हैं परन्तु व्यवहार में नहीं। निराला तो बने ही थे दूसरी माटी के ! उन्होने दुनिया को कभी भाषण नहीं दिया। किन्तु वह सब लिखा अपनी कलम से जो ऊँघते समाज को बदलने एवम सोते समाज को जगाने के लिए उचित था। कबीर की भांति निराला ने भी वही ट्रैक अपनाया जो समाज को सच से रूबरू कराए । यथा :
निराला जी जब बेटी सरोज का व्याह तय कर लिए तब भावी दामाद से क्या कह रहे है आप सब भी सुनिए :
बारात बुला कर मिथ्या व्यय
मैं करूं नही ऐसा सुसमय
तुम करो ब्याह, तोड़ता नियम
मैं सामाजिक भोग का प्रथम !!
हम सब जानते है उस समय की सामाजिक बनावट के लिहाज से यह कार्य उनके लिए आसान नहीं था परन्तु निराला किसी भी प्रकार की आलोचना से विचलित होने वाली आत्मा कहाँ थे, अपितु सिंह-गर्जना करते हुए सोए समाज में शक्ति का संचार करना ही सदैव उनका ध्येय रहा है ! यथा :
विचलित होने का नहीं देखता मैं कारण,
हे पुरुष सिंह, तुम भी यह शक्ति करो धारण !!
याने-के सामने वाला जब अहिंसा को जानता ही नहीं है तो फिर बिना शक्ति के अपने अस्तित्व की रक्षा करना कभी सम्भव ही नहीं। यानि एक गाल पर मार खाने के बाद दूसरा आगे करना, निराला की दृष्टि में कायरता है। उस का शक्ति से उत्तर देना ही निराला की नजर में जायज कदम है। इसके बावजूद भी निराला सात्विक भाव की शांति के पूर्ण पक्षधर हैं ! यथा राम की शक्ति पूजा मे उनका यह भाव पूरी तरह प्रकट होता दखायी देता है :
रावण अशुद्ध हो भी यदि कर सका त्रस्त
तो निश्चय तुम हो कर शुद्ध करोगे उसे ध्वस्त
शक्ति की करो मौलिक कल्पना, करो पूजन
छेड़ दो समर जब तक न सिद्धि हो रघुनंदन !!
ऐसा इस लिए है क्योंकि शक्ति के बिना सत्य की रक्षा हो ही नहीं सकती परन्तु उस शक्ति प्राप्ति के लिए साधनों की पवित्रता के लिए त्याग एवम समर्पण भी आवश्यक है ! राम की शक्ति पूजा में निराला ने इस पहलू का सारगर्भित वर्णन भी किया है।
निराला ने जहाँ राष्ट्र नायक व मर्यादा पुरुषोत्म भगवान राम, छत्रपति शिवाजी महाराज तथा सिंह सिपाही गुरु गोबिंद सिंह जी जैसे नायकों का यशोगान किया है वहीं वह सिद्धांत-हीन वह ढकोसलाबाज राजनीतिज्ञों पर व्यंग करने से किसी लाभ-लोभ के कारण कदापि भी नहीं चूके।
निराला ने गरम पकौडी, बिल्लेसुर बकरिहा, नये पत्ते, झींगुर डट कर बोला, रानी और कानी, तथा कुकुरमुत्ता, जैसी अपनी अनेकों रचनाओ मे इस बात का प्रमाण दिया है कि : केवल व्यंग्य ही नही सामाजिक रूढ़ियों के विपरीत उन के युगांतकारी उद्घोष भी हैं यथा :
"तारूँगी गह कर दुस्तर तम"
वर्तमान कन्या भ्रूण - हत्या, बच्चियो के साथ होती हिन्सा एवम बालात्कार जैसी घिनौनी हरकत करने वालों के लिए निराला जी की लिखी उपरोक्त पक्ति आज भी एक बडा संदेश है ! यह सोचने पर विवस करने वाला संदेश कि : क्या सच मे हमारे समाज मे कन्या पिता का उद्धार नहीं कर सकती है, ? निराला का रचना संसार आज वर्तमान समाज के लिए उज्ज्वल प्रकाश स्तम्भ है !
“निश्चित ही सच्चाई का मार्ग बहुत कठिन है फिर भी निराला अपने उम्मीद के दीपक की लौ को ऊँचा करके दुःख को जीने का, दर्द को पीने का जज्बा अपने भीतर कायम करते हुए अपनी परिस्थिति, अपने परिवेस, से दो - दो हाथ करने को सदैव तैयार रहे हैं ! यथा :
गीत गाने दो मुझे तो
वेदना को रोकने को
बुझ गई है लौ पृथा की
जल उठी फिर सींचने की !!
व्यथा से सिंचित, अमरत्व की गाँछ पर खिला, निराला का वसंत जब भी आता है तो निश्चित रूप से निराला कुछ यो गाते हैं :
वरद हुई शरद जो हमारी
फनी बसंत की माला कुंवारी,
और जब निराला का यह गीत पूरा होता है, जब वासन्ती की माला संवरती है फिर तो निस्चित रूप से वीणावादिनी वर देगी ऐसा वर जिसमे माँ भारती की जय - विजय की कामना है निराला के अन्तरमन की शुद्ध राष्ट्रवादी कामना ! यथा
वर दे, वीणावादिनि वर दे !
प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव भारत में भर दे !!
काट अंध-उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर;
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर जगमग जग कर दे !!
नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव;
नव नभ के नव विहग-वृंद को नव पर, नव स्वर दे !
वर दे, वीणावादिनि वर दे !!
मेरे अनन्य कवि एवम वसन्त के अग्रदूत कविवर निराला को करोडो वासन्ती पुष्पो की पुष्पांजलि से आज मेरा कोटि कोटि प्रणाम् !
साथ ही मेरे पाठकों को बसंत पंचमी की शुभकामना |
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कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
स्तम्भकार/पत्रकार/लेखिका/
समीक्षक/स्वतंत्र टिप्पणीकार/
मोबाईल नम्बर : 09919353106
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