“ बेमिसाल कल्पना ”
"बेमिसाल कल्पना" :
अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला के जीवन की उड़ान।
01 फरवरी पुण्यतिथि विशेष :
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हम सब की ही तरह वह भी इस देश की एक बेटी थी !
हम सब की ही तरह वह भी एक सामान्य परिवार एक छोटे जिले की बेटी थी ! अन्तर केवल इतना था कि उसे अंतरिक्ष मे अनन्त उडान भरने की चाहत थी ! और दुरूह बात तो यह है कि उसे अपनी यह उड़ान खुद ही तय करनी थी, खुद के दम पर ही भरनी थी, एवम खुद ही खुद को साबित भी करना था उन विपरित धाराओ के विरूद्ध जो उसकी उडान के रास्ते मे रूकावट बने, हाँ उसे उडना था अपनी अथातो कल्पना को सच का पंख लगाकर पूरी ताकत से उड़ना था नीले आसमान के उस पार अपने खोजी दिमाग से अनन्त अंतरिक्ष की गहराई नापने के लिए ! वह सरहदो की तमाम वर्जनाए तोडकर ग्लोबल होना चाहती थी, दुनियाँ को मिसाल देना चाहती थी एक बेटी की दूरदर्शी सोच की ! दुनियाँ मे खुद को साबित करने के लिए बडा कीर्तिमान स्थापित करना चाहती थी वह, उसे अपना विजन पता था, उसे अपना गोल पता था, जिसे हासिल करने के लिए बचपन से ही वह अपने पिता बनारसी लाल चावला से हजार बार एक ही बात दुहराया करती थी केवल कुछ ही लाईन मे वही एक बात हजार बार और समय के साथ उस एक बात को सत्य भी साबित किया उसने, यथा:
” पापा मैं अंतरिक्ष के लिए ही बनी हूँ।
अपने जीवन का प्रत्येक पल मै अंतरिक्ष के लिए ही बिताना चाहती हूँ ! आप देखना अंतरिक्ष के मिशन के लिए ही एक दिन मै मरूँगी भी “
जी हाँ मै बात कर हूँ भारतीय मूल की उस होनहार बेटी की जिसे दुनिया कल्पना चावला के नाम से जानती, पहचानती है, जिसने राकेश शर्मा के बाद दूसरा भारतीय अंतरिक्ष यात्री होने का गौरव हासिल किया ! जो आज केवल भारत ही नही बल्कि पूरे विश्व की लाखो - करोडो - अरबो बेटियो के सपनो की उडान तय करने के लिए उनकी आदर्श प्रेरणा बनी हुई है !
17 मार्च 1962 के दिन कल्पना चावला का जन्म भारत के उसी हरियाणा प्रदेश के करनाल जिले मे एक सामान्य परिवार मे हुआ था जहाँ आजादी के बाद से अब तक लडकियो की संख्या लडको के एवज मे बहुत कम है ! जहाँ भेद - भाव का दूसरा नाम ही है एक बेटी का बेटी के रूप मे जन्म लेना !
17 मार्च 1962 के दिन पिता बनारसी लाल चावला और माँ संजयोती चावला के घर जिस बेटी का जन्म हुआ वह बेटी केवल कीर्तिमान स्थापित करने के लिए ही पैदा हुई थी वह भी वैश्विक कीर्तिमान जिसपर पूरी दुनिया को नाज रहेगा ! पिता चाहते थे उनकी बेटी मैथ मे अव्वल है तो इंजीनियर बने और बेटी का सपना था खगोल विज्ञान के क्षेत्र में जाकर अंतरिक्ष को नापने का ! बेटी और पिता के बीच की इस जद्दोजहद वाली सोच पर बेटी कल्पना की कल्पना ही आखिर मे भारी पडी ! पिता ने खुद सरेण्डर करने के साथ बेटी का सहयोग करना आरम्भ कर दिया, दुनियाँ गवाह है जब भी किसी पिता ने अपनी बेटी की कल्पना को, अपनी बेटी के सपनो को साकार करने के लिए सहयोग किया है उस पिता की बेटी ने दुनियाँ मे कामयाबी का परचम लहराया है ! कल्पना चावला ने भी खुद को पिता के सहयोग से उस मुकाम तक पहुँचाया जहाँ पहुँचने का सपना आज हरियाणा के हर घर की बेटी का है !
एक पिता के विश्वास का परिणाम ही था कि कल्पना चावला अंतरिक्ष में जाने वाली प्रथम भारतीय महिला बनी ! कल्पना ने न सिर्फ अंतरिक्ष की दुनिया में उपलब्धियां हासिल कीं, बल्कि तमाम छात्र - छात्राओं की आँखो मे अंतरिक्ष मे जाने के लिए सपने सजाए और उन सपनों को साकार करने के गुर भी सिखाया ! भले ही 1 फरवरी 2003 को कोलंबिया स्पेस शटल के दुर्घटनाग्रस्त होने के साथ कल्पना की उड़ान हमेशा के लिए रुक गई हो लेकिन आज भी वह दुनिया के लिए एक मिसाल है ! नासा वैज्ञानिक और अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला अंतरिक्ष मे जाने के प्रति इतनी उत्सुक थी कि इसके लिए छोटे शहर करनाल से निकलने के बाद उन्होंने अमेरिका की नागरिकता ली, अंतरिक्ष मे जाने का सपना साकार करने के लिए कल्पना ने फ्रांस के जान पियर से शादी की जो स्वयम एक फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर थे !
अपने चार भाई - बहनों में कल्पना सबसे छोटी थीं, बनी बनायी कोई ट्रैक उन्हे नही मिली थी सब कुछ उन्होने अपनी दृढ़ निश्चयी सोच और विजन से हाशिल किया था
कल्पना के परिजनों का भी कहना है कि बचपन से ही कल्पना की दिलचस्पी अंतरिक्ष और खगोलीय परिवर्तन में थी ! वह अक्सर अपने पिता से पूछा करती थीं कि ये अंतरिक्षयान आकाश में कैसे उड़ते हैं? क्या मैं भी उड़ सकती हूं? पिता उनकी इस बात को हंसकर टाल दिया करते थे ! पर खोजी मानव वह हासिल कर ही लेता है जिसकी उसे चाहत हो जाए !
कल्पना जब अपने सपनों को साकार करने के लिए 1982 में अंतरिक्ष विज्ञान की पढ़ाई के लिए अमेरिका रवाना हुई भारत मे वह भी हरियाणा राज्य के एक छोटे जिले करनाल मे उस वक्त यह कदम कितना कठिन रहा होगा इसकी हम केवल कल्पना कर सकते है !
जब भारत की यह बेटी साल 1988 में नासा अनुसंधान के साथ जुड़ीं भारत की हर बेटी के लिए निश्चित रूप से वह उडान भरने का, आजाद होने का दिन था ! 1995 में नासा ने अंतरिक्ष यात्रा के लिए कल्पना चावला का चयन किया ! कल्पना ने अंतरिक्ष की प्रथम उड़ान एस टी एस 87 कोलंबिया शटल से संपन्न की ! इसकी अवधि 19 नवंबर 1997 से 5 दिसंबर 1997 था !
अपनी अंतरिक्ष की पहली यात्रा के दौरान कल्पना ने अंतरिक्ष में 372 घंटे बिताए थे और पृथ्वी की 252 परिक्रमाएं भी पूरी किया था ! अपने प्रथम सफल मिशन के बाद कल्पना ने अंतरिक्ष के लिए दूसरी उड़ान कोलंबिया शटल 2003 से जब भरी मुझे याद है सारी दुनियाँ के युवा वर्ग मे विशेष कर हम college के छात्र - छात्राओ के बीच हर दिन कल्पना चावला चर्चा का विषय बनी रहती वह “क्रॉनिकल मैगज़ीन” आज भी मेरे घर मे पडी है जिसको केवल मैने इस लिए खरीदा था कि उसमे कल्पना चावला का डिटेल्स पब्लिश्ड हुआ था कवर स्टोरी पर कल्पना चावला की फोटो के साथ !
हम सब इन्तेजार कर रहे थे 16 जनवरी 2003 से शुरू हुए अपने 16 दिन के अंतरिक्ष मिशन से कल्पना जब वापस आएँगी दुनियाँ को इस बेटी से अंतरिक्ष के बारे मे बहुत कुछ नया जानने को मिलेगा पर ऐसा हो न सका क्योकि कल्पना चावला की अंतरिक्ष के लिए भरी गयी दूसरी उड़ान 1 फरवरी 2003 को आखिरी उड़ान साबित हुई ! 16 जनवरी, 2003 को स्पेस शटल कोलम्बिया से शुरू हुई कल्पना की यह उड़ान 16 दिन का एक अंतरिक्ष मिशन था, जो पूरी तरह से विज्ञान और अनुसंधान पर आधारित था ! 1 फरवरी 2003 को धरती पर वापस आने के क्रम में कल्पना चावला का यह यान पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश करते ही टूटकर बिखर गया था ! पूरी दुनिया के लिए यह एक दुखद पल था 2003 की इस घटना में कल्पना के साथ 6 अन्य अंतरिक्ष यात्रियों की भी मौत हो गई थी ! बेटी कल्पना की मौत के बाद उनके पिता के वह शब्द आज भी मेरे कानो मे गूँजते हैं :
कल्पना में कभी आलस नहीं था !
असफलता से घबराना उसके मन में कभी नहीं था !
वह जो ठान लेती उसे बस करके ही छोड़ती थी !
मुझे इस बात का गर्व है कि मै कल्पना चावला का पिता हूँ !!
मित्रो आज कल्पना चावला भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन वह हम सबके लिए एक मिसाल हैं ! आज अगर भारत का हर पिता अपनी बेटी मे कल्पना चावला की प्रतिमूर्ति देखे और उसकी कल्पना के पर को आसमान के पार अंतरिक्ष की गहराई तक उडने का मौका दे दे, साथ ही इस देश की हर एक बेटी कल्पना चावला की तरह अपने विजन, अपने गोल के प्रति दृढ़ निश्चयी बन जाए तो मेरी नजर मे यही अंतरिक्ष परी कल्पना चावला के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी !
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सहयोग से : विभांशु जोशी !
कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
स्तम्भकार/पत्रकार/लेखिका/
समीक्षक/स्वतंत्र टिप्पणीकार/
मोबाईल नम्बर : 09919353106
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