जब फील्ड मार्शल करियप्पा ने अपने युद्धबंदी बेटे को छुड़वाने से इनकार कर दिया :

सितंबर 1965. भारत पाकिस्तान का युद्ध अपने शबाब पर था. भारत की वायुसेना को लाहौर के दक्षिण में स्थित कसूर में पाकिस्तानी सैनिक ठिकानों को निशाना बनाने का मिशन दिया गया. भारत की वायुसेना के पास उस समय ब्रिटिश मूल के हंटर फाइटर जेट हुआ करते थे. 1954 के साल में भारत ने ब्रिटेन से 140 हंटर विमान खरीदे थे और 1965 के युद्ध में भारतीय असमानों की सुरक्षा की जिम्मेदारी इन विमानों के जिम्मे थी. भारतीय वायुसेना की तरफ से इस मिशन को लीड करने की जिम्मेदारी दी गई थी फ्लाइट लेफ्टिनेंट नंदा करियप्पा को.
22 सितंबर 1965. नंदा करियप्पा तीन सदस्यों वाले स्क्वॉड्रन को लीड कर रहे थे. उनके बगलगीर थे एएस सहगल और कुक्के सुरेश. सुबह करीब 8.30 बजे यह स्क्वॉड्रन पाकिस्तानी आसमान पर मंडरा रहा था. जैसे ही तीनों विमानों ने अपने टारगेट पर चक्कर लगाना शुरू किया, एएस सहगल का विमान एंटी एयरक्राफ्ट गन के निशाने पर आ गया. हालांकि उनके विमान को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ था, लेकिन एतिहातन उन्हें यह मिशन छोड़कर बेस पर लौटना पड़ा. इधर नंदा करियप्पा और कुक्का सुरेश डटे हुए थे. उन्होंने पाकिस्तानी सैनिक ठिकानों पर हमला बोल दिया.
एक के बाद एक करियप्पा दुश्मन के ठिकाने को नेस्तनाबूद करने में लगे हुए थे. जब वो अपने लक्ष्य के ऊपर छठा पास ले रहे थे तभी उनका हंटर विमान जमीन से दागी जा रही गोलियों का शिकार हो गया. उनके साथ मिशन पर गए दूसरे साथी कुक्का सुरेश का ध्यान गया कि करियप्पा के विमान से आग की लपटें उठ रही हैं. उन्होंने रेडियो पर चिल्लाकर करियप्पा से कहा, ‘कैरी इजेक्ट’ . नंदा करियप्पा को समझ आ चुका था कि अब उनके सामने विमान से बाहर निकलने के अलावा कोई चारा नहीं है. उन्होंने इजेक्ट बटन दबाया. इसके कुछ ही सेकंड के बाद उनका विमान आग के गोले में तब्दील हो गया और हवा में चक्कर काटते हुए भारतीय सीमा के भीतर जाकर गिरा. इस बीच नंदा करियप्पा कूल्हों के बल पाकिस्तानी जमीन पर गिरे. उनकी रीढ़ की हड्डी में चोट लगी थी और वो बेहोश हो गए.
नंदा करियप्पा सुबह 9 बजकर 04 मिनट पर पाकिस्तानी जमीन पर गिरे थे. समय के बारे में इतना सटीक दावा उनकी हाथ घड़ी की वजह से था. जैसे ही वो जमीन पर गिरे उनके हाथ में लगी घड़ी बंद हो गई. उस समय उसका छोटा कांटा 9 पर और मिनट का कांटा 4 पर था. करियप्पा जब होश में आए तो उन्होंने खुद को सैनिकों से घिरा हुआ पाया. पहले उन्होंने सोचा कि यह भारतीय सैनिक हैं जो उनकी मदद के लिए आए हुए हैं. लेकिन दूसरी तरफ आ रहे तोप के गोलों के बीच एक सैनिक ने उनसे कहा, ‘तुम्हारे आदमी हमारे ऊपर गोले बरसा रहे हैं.’
इसके बाद नंदा करियप्पा को अहसास हुआ कि वो युद्ध बंदी बनाए जा चुके हैं.
पाकिस्तानी रेडियो ने दी सुरक्षित होने की जानकारी :
पाकिस्तान की गिरफ्त में आने के बाद उनसे उनका नाम, पद और नंबर बताने के लिए कहा गया. नंदा करियप्पा ने अपने बारे में पूछी गई सारी जानकारी बता दी. तभी एक पाकिस्तानी अफसर ने उनसे पूछा कि क्या उनका फील्ड मार्शल करियप्पा से कोई संबंध है? नंदा करियप्पा अपने पिता के बारे जानकारी ज्यादा देर तक छुपा नहीं पाए. पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान फील्ड मार्शल करियप्पा के नीचे काम कर चुके थे और उनकी बहुत इज्जत करते थे. जब उन तक नंदा करियप्पा के गिरफ्तार होने की खबर पहुंची तो उन्होंने रेडियो के माध्यम से इसकी सूचना सार्वजानिक करवाई. रेडियो पाकिस्तान ने 22 सितंबर की शाम को ही घोषणा की कि फ्लाइट लेफ्टिनेंट नंदा करियप्पा उनके कब्जे हैं और सुरक्षित हैं.
जब फील्ड मार्शल केएम करियप्पा ने ठुकराया अयूब का ऑफर :
अविभाजित भारत में जनरल अयूब भारतीय सेना के अधिकारी थे और केएम करियप्पा के मातहत काम कर चुके थे. अयूब करियप्पा की बहुत इज्जत करते थे. उन्होंने भारत में मौजूद पाकिस्तानी उच्चायुक्त के जरिए फील्ड मार्शल करियप्पा तक उनके बेटे के सुरक्षित होने की खबर पहुंचवाई. अयूब ने फील्ड मार्शल करियप्पा के सामने प्रस्ताव रखा कि अगर वो चाहें तो वो उनके बेटे को रिहा भी कर सकते हैं. अयूब के इस प्रस्ताव को फील्ड मार्शल करियप्पा ने विनम्रता से ठुकरा दिया. उन्होंने अयूब को कहलवाया, ‘नंदू मेरा नहीं इस देश का बेटा है. उसके साथ वही बर्ताव किया जाए जो दूसरे युद्धबंदियों के साथ किया जा रहा है. अगर आप उसे छोड़ना ही चाहते हैं तो सभी युद्धबंदियों को छोड़िए.’
पाकिस्तान की कैद में नंदा करियप्पा के दिन बुरे नहीं बीते. हालांकि उन्हें अक्सर टॉर्चर की धमकी दी जाती लेकिन उन्हें कभी भी मारा-पीटा नहीं गया. इस बीच पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल मूसा उनसे मिलने पहुंच चुके थे. इतना ही नहीं रावलपिंडी जेल में पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब की बेगम और उनके बेटे अख्तर अयूब नंदा करियप्पा से मिलने पहुंच चुके थे. नंदा करियप्पा और भारत के 56 दूसरे युद्धबंदी चार महीने पाकिस्तान की कैद में रहे. इस बीच भारत और पाकिस्तान के बीच ताशकंद में समझौता हो चुका था.

दोनों देशों के बीच रिश्ते को पटरी पर लाने के लिए पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष जनरल मूसा ने भारत का दौरा किया. इसके कुछ दिन पहले ही एक दर्जी ने रावलपिंडी की जेल में जाकर भारतीय युद्धबंदियों की नाप ली था. बाद में इन युद्धबंदियों को एक दिन अचानक आंख पर पट्टी बांधकर रावलपिंडी से पेशावर ले जाया गया. यहां पर उन्हें पहनने के लिए जैतूनी रंग की नई वर्दी और पुलओवर दिए गए. पेशावर से एक फोकर एफ-27 विमान भारत यात्रा पर गए जनरल मूसा को लेने दिल्ली जा रहा था. इन युद्धबंदियों को इस जहाज में सवार करवा दिया गया. जिस समय इस विमान ने भारतीय सीमा में प्रवेश किया घड़ी में ठीक 9 बजकर 4 मिनट का समय था. नंदा करियप्पा घड़ी के इस संयोग पर मुस्कुरा दिए. ठीक इस समय चार महीने पहले वो पाकिस्तान की जमीन पर गिरे थे.
नंदा करियप्पा भारत आकर फिर से वायुसेना में शामिल हो गए. रीढ़ की हड्डी में चोट लगने की वजह से वो फाइटर जेट नहीं उड़ा सकते थे. ऐसे में उन्हें हेलिकॉप्टर उड़ाने की नई जिम्मेदारी दी गई. 1971 के युद्ध में उन्होंने हासिमारा हेलिकॉप्टर के बेड़े का नेतृत्व किया. वो बाद में वायुसेना से एयर मार्शल के पद से रिटायर हुए.

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