ज़फ़रनामा !

ज़फ़रनामा
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“भारत में पत्रों की कहानी अर्चिता की जुबानी” कॉलम के अंतर्गत इस कॉलम के दूसरे चरण की शुरुआत मै युवाओं के चरित्र निर्माण को ध्यान मे रखते हुए कुछ आदर्श ऐतिहासिक पत्रों की स्वस्थ समीक्षा के साथ आज से कर रही हूँ ! मेरे आज के ऐतिहासिक पत्र का मौजू है : ऐतिहासिक पत्र “ज़फ़रनामा” ज़फ़रनामा पर  समीक्षा एवम टिप्पणी लिखने का आग्रह मेरे कुछ रेगुलर पाठकों ने किया है !
आप सब परिचित है दसम गुरू गोविंद सिंह जी महराज के चरित्र से “ज़फ़रनामा” अर्थात 'विजय पत्र' इन्ही गुरु गोविंद सिंह महराज जी द्वारा मुग़ल शासक औरंगज़ेब को लिखा गया पत्र है। ज़फ़रनामा, का उल्लेख गुरू गोविंद सिंह जी ने अपने दसम ग्रंथ मे किया है ! आप सभी की जानकारी के लिए बताती चलूँ दसम ग्रंथ का ही  एक भाग है “ ज़फ़रनामा ”और इसकी भाषा फ़ारसी है। गुरू साहब को 10 से भी ज्यादे भाषा का शुद्ध शुद्ध लिखने, बोलने, पढ़ने का ज्ञान था !
मेरी नजर मे तो भारत के गौरवमयी इतिहास में देश पर मर मिटने का जज्बा रखने वाले वीर योद्धाओ के दो पत्र विश्वविख्यात हुए। पहला पत्र छत्रपति शिवाजी महराज द्वारा राजा जयसिंह को लिखा गया था जिसका उल्लेख आगे के लेख मे करूँगी मै, तथा दूसरा पत्र दशम गुरू “गुरु गोविन्द सिंह जी महाराज ” द्वारा मुगल शासक औरंगज़ेब को लिखा गया था जिसे “ज़फ़रनामा”अर्थात 'विजय पत्र' कहते हैं। नि:संदेह गुरु गोविंद सिंह का यह पत्र आध्यात्मिकता, कूटनीति तथा शौर्य की एक अद्भुत त्रिवेणी है, ऐसी त्रिवेणी जिसमे डूबकी लगाने भर से हमारी आज की वर्तमान युवा पीढ़ी के भीतर अपने राष्ट्र के प्रति समर्पण एवम त्याग का जज्बा पैदा हो जाए !
गुरु गोविंद सिंह जी महराज को जहां एक ओर मै विश्व की राष्ट्रवादी बलिदानी परम्परा में प्रथम एवम अद्वितीय पाती हूँ, वही दूसरी तरफ उनको एक महान लेखक, मौलिक चिंतक तथा कई भाषाओं के ज्ञाता के रूप मे भी पाती हूँ। मै पाती हूँ वह लेखन मे भी अजेय है, एक तरफ मूगलो से युद्ध और अपने पुत्रो के बलिदान की बिरह वेदना दूसरी तरफ उनकी राष्ट्रवादी रचना धर्मिता मै क्या किसी को भी आश्चर्य मे डाल सकती है !
मै स्तब्ध हूँ की विषम परिवेश एवम विषम परिस्थिति मे भी गुरू गोविंद सिंह जी द्वारा निर्बाध रूप से कई ग्रंथों की रचना करना साथ ही अपने समय के विद्वानों का संरक्षक बनना कितना दूरूह कार्य रहा होगा । अपने दरबार में गुरू साहब ने 42 कवियों तथा लेखकों की संगत करी थी, इसीलिए उन्हें 'संत सिपाही' भी कहा जाता है। ज़फ़रनामा पर खोज करते - करते मै जिस निष्कर्ष पर पहुंची हूं वह यह है कि : दसम गुरू गोविंद सिंह जी महराज भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय प्रतीक है ! और ज़फ़रनामा उनकी निडर शक्ति का एक जीवित प्रमाण पत्र है हमारे बीच !
मै जानती हूँ अब आप सभी की उत्सुकता बढ़ गयी होगी विस्तार से ज़फ़रनामा की समीक्षा पढ़ने की तो लीजिए प्रस्तुत है ज़फ़रनामा की समीक्षा :

ज़फ़रनामा गुरू गोविन्द साहब का  ऐतिहासिक पत्र:
अपने पिता गुरु तेग बहादुर और अपने चारों पुत्रों के बलिदान के पश्चात 1706 ई० में खिदराना की लड़ाई के पश्चात गुरु गोविंद सिंह ने भाई दया सिंह को एक पत्र ( ज़फ़रनामा ) देकर मुगल सम्राट औरंगजेब के पास भेजा। उन दिनों औरंगजेब दक्षिण भारत के अहमदनगर में अपने जीवन की अंतिम सांसें गिन रहा था। भाई दया सिंह दिल्ली, आगरा होते हुए लम्बा मार्ग तय करके अहमदनगर पहुंचे। गुरु गोविंद सिंह के इस पत्र से औरंगजेब को उत्तर भारत, विशेषकर पंजाब की वास्तविक स्थिति का पता चला। वह समझ गया कि :  पंजाब के मुगल सूबेदार के गलत समाचारों से वह भ्रमित हुआ था, साथ ही उसे गुरु गोविंद सिंह की वीरता तथा प्रतिष्ठा का भी अनुभव हुआ। औरंगजेब ने जबरदार और मुहम्मद यार मनसबदार को एक शाही फरमान देकर दिल्ली भेजा, जिसमें गुरु गोविंद सिंह को किसी भी प्रकार का कष्ट न देने तथा सम्मान पूर्वक लाने का आदेश था। परन्तु गुरु गोविंद सिंह को काफी समय तक यह ज्ञात नहीं हुआ कि भाई दया सिंह अहमदनगर में औरंगजेब को ज़फ़रनामा देने में सफल हुए या नहीं। अत: वे स्वयं ही अहमदनगर की ओर चल पड़े। अक्तूबर, 1706 ई० में उन्होंने दक्षिण भारत की ओर प्रस्थान किया। उन्होंने मारवाड़ के मार्ग से दक्षिण जाने का विचार किया। मार्ग में राजस्थान के अनेक राजाओं ने उनका स्वागत किया। बापौर नामक स्थान पर उनकी भाई दया सिंह से भेंट हुई, जो वापस पंजाब लौट रहे थे। गुरु गोविंद सिंह को सभी समाचारों की जानकारी हुई। यात्रा के बीच में ही 20 फ़रवरी 1707 को उन्हें अहमदनगर में औरंगजेब की मौत का समाचार मिला, अत: उनकी औरंगजेब से भेंट न हो सकी। 42 वर्षीय एक आध्यात्मिक तथा वीरत्व के धनी महापुरुष की 90 वर्षीय मतान्ध तथा बर्बर औरंगजेब से भेंट होती तो क्या होता कहना कठिन है अर्ची ! दोनो के मिलन के इस प्रसंग पर कभी एक विद्वान ने लिखा था कि :  'विश्वास, अविश्वास से मिलने चला था, किंतु विश्वास के पहुंचने से पूर्व ही अविश्वास दम तोड़ चुका था।'
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क्रमश: कल होगी चर्चा ज़फ़रनामा के इतिहास पर तब तक के लिए मुझे दीजिए आज्ञा मिलती हूँ कल फिर ज़फ़रनामा के कुछ अनछुए प्रेरक रोचक पहलू एवम प्रसंगों के साथ !
शुभरात्रि !!
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कलम से :
भारद्वाज अर्चिता

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माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति अयोध्याकाण्ड जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठा] जानि गौरि अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।

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