ओ रंगरेज
ओ रंगरेज
ओ रंगरेज
अजब है तेरा रंग तमाशा
रच - रच तुने रंग भरा
जीवन का हर रंग भरा
फिर :
खाली मन का कोना
क्यों छोड़े
क्यों छोड़े
देश - दरवेश ??
ओ रंगरेज ।
इक-इक पत्ता जीवन पतझड़
उस पतझड़ मे भी रंग -
भूरा,पीला ,गेरुआ
खाका - खाका
बूटा - बूटा
रच-रच तुने रंगरेज भरे ।
तू उपर बैठा
या मन के भीतर
तू ही जाने तेरा सच प्रीतम
जोगिया रंग राची जोगन अर्ची
मन भीतर-बाहर
अब तो पिया
जोग-जोग बस जोग बसे ।।
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कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
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