ज़िन्दगी मुहावरेदार है ------------- सफलता के लिये बड़े पापड़ बेलने पड़ते हैं क्योंकि ज़िन्दगी दिन में तारे दिखाती है।कोई बिल्ली के गले में घण्टी बांधता है तो कोई मक्खन लगाता है । ये मुँह और मसूर की दाल कहना आसान है ।एक बार ओखली में सिर देकर देखो छठी का दूध याद आ जायेगा । जिनके दूध के दांत भी न टूटे हों ,वो तिल का ताड़ बनाकर जले पर नमक छिड़कते हैं । जिसने शादी का लड्डू न चखा हो वो बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद ।यहाँ तो दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है । शादी तो वो लड्डू है जो खाये वो पछताय जो न खाए वो पछताय ।तो क्यों न शादी करके ही आम के आम गुठलियों के दाम देखें जाएं । ज़िन्दगी में भले कोई कितना दाल भात मुसलचन्द हो पर घुटना तो पेट की ओर ही मुड़ता है और घी खिचड़ी में ही गिरता है । दाई से पेट न छुपता भले ही खरबूजे को देख खरबूजा कितना ही रंग बदले । जितने मुँह उतनी बातें हैं ।बातों से चाहे राई का पर्वत बना दो पर भैंस के आगे बीन बजाना ,आसमान पर थूकना जैसा होगा। कोई सूरज को दीया न दिखाए क्योंकि दीये तले अंधेरा होता है और अंधेरे में उल्लू बोलते हैं। कोई भले ही टेढ़ी खीर हो या जलेबी सा सीधा हो पर अपनी डफली अपना राग बजाने से अच्छा है कि मुँह पर ताला लगा लिया जाए । चाहे कितने घी के दिये जलाए जाएं ,जिनके मुँह में राम और बगल में छुरी है वो टेढ़ी चाल ही चलेंगे । दूध का दूध और पानी का पानी करना आसान नहीं ये आसमान से तारे तोड़ने वाली बात है ।कोई एक एक दाने को तरसता है तो किसी के मुँह में घी शक्कर है । ज़िन्दगी जीना हथेली पर सरसों उगाने जैसा है ।ये समझ लो की कंगाली में आटा गीला हो तो नानी याद आ जाती है । चलिए मुहावरों के साथ मस्त रहिये ।मन के लड्डू फोड़ते रहिये ।याद रखिये ऊपरवाला जब भी देगा ,देगा छप्पर फाड़ के !

ज़िन्दगी मुहावरेदार है
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सफलता के लिये बड़े  पापड़ बेलने पड़ते हैं क्योंकि ज़िन्दगी दिन में तारे दिखाती है।कोई बिल्ली के गले में घण्टी बांधता है तो कोई मक्खन लगाता है ।

ये मुँह और मसूर की दाल कहना आसान है ।एक बार ओखली में सिर देकर देखो छठी का दूध याद आ जायेगा ।

जिनके दूध के दांत भी न टूटे हों ,वो तिल का ताड़ बनाकर जले पर नमक छिड़कते हैं ।

जिसने शादी का लड्डू न चखा हो वो बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद ।यहाँ तो दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है ।
शादी तो वो लड्डू है जो खाये वो पछताय जो न खाए वो पछताय ।तो क्यों न शादी करके ही आम के आम गुठलियों के दाम देखें जाएं ।

ज़िन्दगी में भले कोई कितना दाल भात मुसलचन्द हो पर घुटना तो पेट की ओर ही मुड़ता है और घी खिचड़ी में ही गिरता है ।
दाई से पेट न छुपता भले ही खरबूजे को देख खरबूजा कितना ही रंग बदले ।
जितने मुँह उतनी बातें हैं ।बातों से चाहे राई का पर्वत बना दो पर भैंस के आगे बीन बजाना ,आसमान पर थूकना जैसा होगा।
कोई सूरज को दीया न दिखाए क्योंकि दीये तले अंधेरा होता है और अंधेरे में उल्लू बोलते हैं।

कोई भले ही टेढ़ी खीर हो या जलेबी सा सीधा हो पर अपनी डफली अपना राग बजाने से अच्छा है कि मुँह पर ताला लगा लिया जाए ।
चाहे कितने  घी के दिये जलाए जाएं ,जिनके मुँह में राम और बगल में छुरी है वो टेढ़ी चाल ही चलेंगे ।

दूध का दूध और पानी का पानी करना आसान नहीं ये आसमान से तारे तोड़ने वाली बात है ।कोई एक एक दाने को तरसता है तो किसी के मुँह में घी शक्कर है ।

ज़िन्दगी जीना हथेली पर सरसों उगाने जैसा है ।ये समझ लो की कंगाली में आटा गीला हो तो नानी याद आ जाती है ।

चलिए  मुहावरों के साथ मस्त रहिये ।मन के लड्डू फोड़ते रहिये ।याद रखिये ऊपरवाला जब भी देगा ,देगा छप्पर फाड़ के !

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“ सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय । सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय ।” भावार्थ :- यदि सारी धरती को कागज़ मान लिया जाए , सारे जंगल - वनों की लकड़ी की कलम बना ली जाए तथा सातों समुद्र स्याही हो जाएँ तो भी हमारे द्वारा कभी हमारे गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते है ।हमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है अर्ची, गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है । इस जगत मे बहुत कम ऐसे गुरू हुए है जिनको उनकी अपनी सफलता के साथ साथ ही उनके अपने शिष्य की सफलता से पहचान मिली हो ऐसे ही भाग्यशाली गुरू रहे है “रमाकान्त आचरेकर” जिन्हे पूरी दुनिया सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट कोच “ क्रिकेट गुरू ” के रूप मे जानती है और इसी रूप मे ही सदैव याद भी रखना चाहती है ! ईश्वर के साम्राज्य मे पहुँचने पर आज गुरू आचरेकर का स्वागत नाराण ने निश्चित तौर पर यही कह कर किया होगा “ क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के गुरू रमाकान्त आचरेकर जी आईए आपका स्वागत है !!” दिवंगत आचरेकर जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !! ================================ Bhardwaj@rchita 03/01/2019

माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति अयोध्याकाण्ड जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठा] जानि गौरि अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।

गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं. गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं. गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं. सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष सर्वोच्च ब्रह्म है अपने उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करती हूँ, कोटि-कोटि प्रणाम करती हूं !! साभार : भारद्वाज अर्चिता