ग़ज़ल
" फूल नज़रों में खिलाने का हुनर रखते हैं,
हम तो शायर हैं अर्ची :
दर्दे - दिल में भी एक ग़ज़ल रखते हैं,
बात दुनियादारी की हमसे न करो
नफरत की राह में भी :
हम मोहब्बत का शहर रखते हैं,
फूल नज़रों में खिलाने का हुनर रखते हैं !
राहे वफा में !
जर्क करते हैं ख्वाहिशें हजार,
फिर भी तमन्ना - ए - सफर रखते हैं,
फूल नज़रों में खिलाने का हुनर रखते हैं !
पाक आयतें कर दे जो ज़िन्दगी को
वह सुकून-ए-किताब है हम,
अपने शब्दों पर एक एक सबक रूह-ए-आईना रखते हैं ,
फूल नज़रों में खिलाने का हुनर रखते हैं !!
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Bhardwaj@rchita
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