ज़फ़रनामा की राष्ट्रवादी समीक्षा : ==================== “भारत में पत्रों की कहानी अर्चिता की जुबानी” कॉलम के अंतर्गत इस कॉलम के दूसरे चरण की शुरुआत मैने युवाओं के चरित्र निर्माण को ध्यान मे रखते हुए कुछ आदर्श ऐतिहासिक पत्रों की स्वस्थ समीक्षा के साथ आरम्भ किया है जिसके अन्तरगत मेरे आज के ऐतिहासिक पत्र का मौजू है 1706  मे खिदराना युद्ध के बाद ज़फ़रनामा के नाम से दसम गुरू गोविंद सिंह जी महराज द्वारा औरंगज़ेब को लिखे गए विजय पत्र की मेरे द्वारा की गयी “राष्ट्रवादी समीक्षा ” का भाग दो ! ऐतिहासिक पत्र “ज़फ़रनामा” पर मेरे द्वारा कुछ विशेष लिखने का आग्रह मेरे रेगुलर पाठकों ने किया है ! 

ज़फ़रनामा की राष्ट्रवादी समीक्षा :
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“भारत में पत्रों की कहानी अर्चिता की जुबानी” कॉलम के अंतर्गत इस कॉलम के दूसरे चरण की शुरुआत मैने युवाओं के चरित्र निर्माण को ध्यान मे रखते हुए कुछ आदर्श ऐतिहासिक पत्रों की स्वस्थ समीक्षा के साथ आरम्भ किया है जिसके तहत मेरे आज के ऐतिहासिक पत्र का मौजू है 1706  मे खिदराना युद्ध के बाद “ज़फ़रनामा” के नाम से दसम गुरू गोविंद सिंह जी महराज द्वारा औरंगज़ेब को लिखे गए विजय पत्र की मेरे द्वारा की गयी “राष्ट्रवादी समीक्षा” का भाग दो यथा :
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गुरु गोविंद सिंह जी महराज द्वारा “ज़फ़रनामा” में वर्णित मंतव्य केवल राष्ट्रवादी स्वाभिमान और शौर्य का जय घोष है अर्चिता ! ऐसे मे हमारी कलम के लिए यह सहज ही अनिवार्य हो जाता है कि : गुरु गोविंद सिंह जी महराज लिखित ज़फ़रनामा में वर्णित उनके मंतव्य को स्पष्ट करने के लिए उनके कुछ प्रमुख पदों का जिक्र करते हुए उनका भावार्थ स्पष्ट कर दिया जाए, ऐसा करना देश की वर्तमान युवा शक्ति के मार्गदर्शन के लिहाज से उपयुक्त होगा।
अपनी खोज अपने चिन्तन के दौरान जैसा की मैने पाया है गुरु गोविंद सिंह जी महाराज ने “ज़फ़रनामा” का प्रारंभ तो ईश्वर के स्मरण से किया है किन्तु इसके केन्द्र मे निहित उदेश्य राष्ट्र पर मर मिटने की अलख जगाने का ही है ! गुरू गोविन्द सिंह जी का खुदा कोई काल्पनिक सर्वशक्तिमान नही है ! वह कैसा है इसकी बानगी के तौर पर हम साफ - साफ देख सकते है दसम गुरू ने अपने बारे में लिखा है कि 'मैंने अपने उस खुदा की कसम खाई है, जो तलवार, तीर - कमान, बरछी और कटार का खुदा है एवम युद्धस्थल में तूफान जैसे तेज दौड़ने वाले घोड़ों का खुदा है।' मैने पाया है उन्होंने औरंगज़ेब को सम्बोधित करते हुए ज़फ़रनामा मे साफ तौर पर नाम लेकर लिखा है सुनो आताताई औरंगज़ेब ! जिसने तुम्हें बादशाहत दी है उसने ही मुझे धर्म की रक्षा की दौलत दी है, मुझे वह शक्ति दी है जिसके दम पर मैं अपने राष्ट्र और अपने धर्म की रक्षा करूं और जिससे दुनियाँ मे सच्चाई का झंडा ऊंचा हो, आजादी बुलन्द हो।' इस पत्र मे गुरु गोविंद सिंह जी महराज के अदम्य साहस का दर्शन हमे उस वक्त होता है जब इस पत्र में औरंगज़ेब को ललकारते हुए गुरू महराज ने उसे धूर्त', 'फरेबी' 'मक्कार' बताया, तथा  उसकी इबादत को 'ढोंग' करार देते हुए लिखा है : औरंगज़ेब तूँ केवल मेरे पुत्रो का ही हत्यारा नही बल्कि तूँ तो अपने पिता एवम अपने भाइयों का भी हत्यारा है, तूँ मानवता का हत्यारा है,! गुरु गोविंद सिंह जी की कलम यही नही रूकी बल्कि वह अपने स्वाभिमान तथा वीरभाव का परिचय देते हुए आगे लिखते हैं सुनो औरंगज़ेब ऐसी आग तेरे पांव के नीचे रखूंगा कि : पूरे पंजाब में उसे बुझाने तथा तुझे पीने को पानी तक नहीं मिल पाएगा ! रोगटे खडे हो गए मेरे अर्चिता जब मैने ज़फ़रनामा की वह पंक्तियाँ पढ़ा जिसमे गुरु गोविंद सिंह जी महराज ने औरंगजेब को लगभग खुली चुनौती देते हुए लिखा है “औरंगज़ेब” मैं इस युद्ध के मैदान में अकेला ही आऊंगा किन्तु तुम्हे छूट है तुम दो घुड़सवारों को अपने साथ लेकर मुझसे लडने आना।' साथ ही लिखते है क्या हुआ अगर मेरे चार बच्चे अजीत सिंह, जुझार सिंह, फतेह सिंह, जोरावर सिंह तुझसे लडते हुए अपने राष्ट्र अपने धर्म को बचाते हुए मारे गये, मानवता का हत्यारा औरंगज़ेब तूँ बेफिक्र मत हो क्योकि कुंडली मारे तुझे डंसने की चाहत रखने वाला नाग मेरे रूप मे अभी जिन्दा है।' ज़फ़रनामा मे एक स्थान पर गुरु गोविंद सिंह ने औरंगज़ेब को इतिहास से सीख लेने की सलाह देते हुए लिखा है “ मतान्ध जरा सोच आज सिकंदर और शेरशाह कहां हैं? आज तैमूर कहां है ? बाबर कहां है? हुमायूं कहां है ? अकबर कहां है?'
गुरू गोविन्द साहब ने पुन: औरंगज़ेब को ललकारते हुए लिख है “अगर तूँ कमजोरों पर जुल्म करके खुश हो रहा है, उन्हें सता कर खुश हो रहा है, तो कसम है कि एक दिन मै तुझे आरे से चिरवा दूंगा।' इसके साथ ही गुरु गोविंद सिंह ने युद्ध तथा शांति के बारे में अपनी नीति को पूरी तरह से स्पष्ट करते हुए लिखा है 'जब सभी प्रयास करके देख लिए गए हो और परिणाम शून्य आते हों, जब न्याय का मार्ग अवरुद्ध हो गया हो, तब तलवार उठाना ही सही है तथा युद्ध करना उचित हो जाता है।'
ज़फ़रनामा के अंत के पद में ईश्वर के प्रति पूर्ण आस्था व्यक्त करते हुए उन्होंने लिखा है 'शत्रु भले हमसे हजार तरह से शत्रुता करे, पर जिनका विश्वास ईश्वर पर है, एवम जिनका सम्पूर्ण जीवन अपने राष्ट्र पर न्योछावर है, अपने राष्ट्र के लिए जिनका राष्ट्र धर्म सदैव कल्याणकारी बना रहेगा उनका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता है ! वस्तुत: पूरे ज़फ़रनामा का अवलोकन करने के बाद मैने पाया है कि :
गुरु गोविंद सिंह जी महराज का लिखा ज़फ़रनामा केवल एक विजय पत्र ही नहीं बल्कि वीर रस का एक  उम्दा काव्य है, जो आज भी हमारे भारतीय जनमानस की निश्चल भावनाओं का द्योतक है। मै ही नही मेरे जैसे न जाने कितने लोगो ने अतीत से वर्तमान तक इस पत्र से राष्ट्रभक्ति का प्रथम सबक लिया है, न जाने कितने ही भगत सिंह जैसे देशभक्तों ने उनके इस पत्र से आजादी की लडाई के समय प्रेरणा लिया है। गुरु गोविंद सिंह के व्यक्तित्व तथा कृतित्व की पूरी झलक उनके विजय पत्र ज़फ़रनामा से प्रकट होती है। मेरे लिए तो अर्चिता उनका यह पत्र किसी संधि का नहीं, बल्कि एक बडे  युद्ध का आह्वान है। साथ ही साथ राष्ट्र मे शांति, धर्मरक्षा,आस्था तथा आत्मविश्वास का परिचायक है। उनका यह पत्र उनके समय के पीड़ित, हताश, निराश, चेतनाशून्य समाज में नवजीवन तथा गौरवानुभूति का संचार करने वाला पत्र है।
मेरी समझ से तो यह पत्र औरंगज़ेब के कुकृत्यों पर नैतिक तथा आध्यात्मिक विजय का विशुद्ध परिचायक है ! साथ ही हमारी आज की वर्तमान भटकी युवा शक्ति के लिए एक सफल पथ प्रदर्शक भी है !
हमारी वर्तमान युवा शक्ति को एक बार जरूर ज़फ़रनामा का अवलोकन करना चाहिए !

क्रमश: कल होगी चर्चा इतिहास के गर्भ मे छुपे किसी अनछुए पर हमारी वर्तमान युवा शक्ति के लिए प्रेरक ऐतिहासिक पत्र पर तब तक के लिए मुझे दीजिए आज्ञा मिलती हूँ कल फिर किसी नए पत्र के कुछ अनछुए प्रेरक रोचक पहलू एवम प्रसंगों के साथ !
शुभरात्रि !!!
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=2025361990883505&id=100002291725768
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कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
19/01/2019
2.20 am

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“ सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय । सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय ।” भावार्थ :- यदि सारी धरती को कागज़ मान लिया जाए , सारे जंगल - वनों की लकड़ी की कलम बना ली जाए तथा सातों समुद्र स्याही हो जाएँ तो भी हमारे द्वारा कभी हमारे गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते है ।हमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है अर्ची, गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है । इस जगत मे बहुत कम ऐसे गुरू हुए है जिनको उनकी अपनी सफलता के साथ साथ ही उनके अपने शिष्य की सफलता से पहचान मिली हो ऐसे ही भाग्यशाली गुरू रहे है “रमाकान्त आचरेकर” जिन्हे पूरी दुनिया सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट कोच “ क्रिकेट गुरू ” के रूप मे जानती है और इसी रूप मे ही सदैव याद भी रखना चाहती है ! ईश्वर के साम्राज्य मे पहुँचने पर आज गुरू आचरेकर का स्वागत नाराण ने निश्चित तौर पर यही कह कर किया होगा “ क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के गुरू रमाकान्त आचरेकर जी आईए आपका स्वागत है !!” दिवंगत आचरेकर जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !! ================================ Bhardwaj@rchita 03/01/2019

माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति अयोध्याकाण्ड जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठा] जानि गौरि अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।

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