आज 11 जनवरी है याने के हमारे सरल हृदय भूतपूर्व प्रधानमंत्री आदरणीय स्व०लाल बहादुर शास्त्री जी की पुण्यतिथि ! विनम्र श्रद्धांजलि के साथ आइए एक किसान परिवार की बेटी की कलम से किसानों के प्रथम एवम सच्चे किसान मन प्रधानमंत्री के जीवन के कुछ छुए अनछुए पहलू पर प्रकाश डालते हैं !! ================================ ✍: शास्त्री जी भारतीय गणराज्य के द्वितीय प्रधानमंत्री थे । कार्यकाल के दौरान जवाहर लाल नेहरु की मृत्यु हो जाने के कारण 9 जून 1964 में शास्त्री जी को भारत के दूसरे प्रधानमंत्री के रूप में मनोनित किया गया । शास्त्री जी का जीवन और शासन दोनों ‘अद्वितीय’ था । जीवटता और सादगी की प्रतिमूर्ति थे हमारे शास्त्री जी, 1966 में ‘भारत-रत्न’ से इन्हें नवाज़ा जरूर गया पर गुदडी का यह लाल अपने आप मे ही एक विलक्षण रत्न था । मां बचपन में बताया करती थी शास्त्री जी एक स्वतंत्रता संग्रामी सेनानी भी रहे थे । महात्मा गाँधी को अपना आदर्श मानकर गांधी जी के पद चिन्हों पर आजीवन चलें । 1965 मे जब पाकिस्तान ने भारत पर युद्ध थोपा उस वक्त देश की आर्थिक स्थिति सही नहीं थी देश अर्थ और अन्न दोनों तरह के संकट से गुजर रहा था फिर भी शास्त्री जी का मनोबल डिगा नहीं। शास्त्री जी ने देश के जवान, किसान,एवं आम जनमानस से देश रक्षा हेतु सहयोग का आह्वान किया था इस युद्ध में पूरा देश शास्त्री जी के साथ खड़ा था। मेरे पापा श्री बी०डी० पाठक से मुझे पता चला एक छोटे कद का जीवट आदमी सम्पूर्ण देश को आपत्तिकाल में एक साथ लेकर कैसे चल पडा था और उसके इस साहसपूर्ण एकता से कैसे पाकिस्तान को मुँह की खानी पडी थी । जिस वक्त़ 1965 का युद्ध आरम्भ हुआ पापा बताते हैं पापा की उम्र महज 15 वर्ष थी वह गोरखपुर स्थित सेंटएंड्रयूज इंटर कालेज मे हाई स्कूल के छात्र थे उनके स्कूल में दिन में पढाई होती और साम को छुट्टी के बाद अपने प्रचार्य एवम अध्यापकों के साथ सभी छात्र शहर में घूंम-घूम कर देश के लिए चंदा इकट्ठा करते थे, शारीरिक श्रम दान करके चंदा इकट्ठा करते थे। पापा बताते हैं शास्त्री जी के आह्वान पर उस वक्त़ हम सब एक वक्त़ खाना खाते थे , घर मे एक वक्त़ ही चूल्हा जलाया जाता था । घर के बड़े - बुजुर्ग हफ्ते मे केवल 5 दिन एक वक्त़ खाना खाते और दो दिन दोनो वक्त़ निराहार रहते। शास्त्री जी ने यहीं आचरण स्वयम भी किया था उस वक्त़ वह स्वयं भी निराहार और अल्पाहार रह रहे थे । सीमा पर युद्ध चल रहा था देश पर संकट था साथ ही देश के भीतर अन्न का संकट था आर्थिक संकट था, घर की महिलाओं के जेवर इकट्ठा करके मेरे दादा जी (स्व० ठाकुर पाठक ) देश के लिए दान दे दिए थे, ऐसा करने वाले वह अकेले नही थे,पूरा देश ऐसा कर रहा था। देर रात तक नुक्कड सभा और देश के लिए चंदा इकट्ठा करना प्रथम् अनिवार्य कार्य बन गया था। सबके लिए देश प्रथम था लोकतंत्र पर संकट के समय लोक का गण लोक के साथ खड़ा था । शास्त्री जी के बारे में अपने बड़ों से जानकर लगता है क्या नेता का यह भी आदर्शरूप होता है ....??? क्योंकि 90 के दशक से मैने तो नेता का भ्रष्ट,करप्ट रूप ही देखा है अर्ची । शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 में मुगलसराय (उत्तरप्रदेश) ब्रिटिश भारत में हुआ था,इनके पिता का नाम मुंशी शारदा प्रसाद था, पिता जी प्राथमिक पाठशाला के अध्यापक थे, माता का नाम राम दुलारी देबी था लाल बहादुर जी को बचपन में परिवार के सदस्य ‘नन्हे’ कहकर बुलाते थे ।बचपन में पिता का स्वर्गवास हो गया ,माता इन्हें लेकर अपने पिता के घर मिर्जापुर आ गई । शास्त्री जी की प्राथमिक शिक्षा मिर्ज़ापुर में हुई आगे की शिक्षा हरिश्चन्द्र हाई स्कूल और काशी-विद्यापीठ में किया । संस्कृत भाषा में स्नातक किया और काशी-विद्यापीठ से ‘शास्त्री’ की उपाधि प्राप्त की यहीं से नाम के साथ आरम्भ हुआ ‘शास्त्री’ उपनाम । 1920 में शास्त्री जी आजादी की लड़ाई में सामिल हुए ‘भारत सेवक संघ’ की सेवा से जुड़ें 1921 में ‘अहसयोग-आन्दोलन, 1930 में दांडी-यात्रा,1942 में “भारत-छछोड़ो आंदोलन में भागीदारी निभाए । अगस्त 1942 में गाँधी जी के ‘भारत-छोडो आन्दोलन’ ने तीव्रता पकड़ ली थी. इसी दौरान शास्त्री जी ने भारतीयो को जगाने के लिए “करो या मरो” का नारा दिया, इस आन्दोलन के समय शास्त्री जी ग्यारह दिन भूमिगत ( Underground ) रहे, 19 अगस्त 1942 को इन्हें गिरफ्तार किया गया । स्वतंत्र भारत की राजनीति में शास्त्री जी की सक्रीयता उत्तर प्रदेश संसद के सचिव नियुक्त किये जाने से आरम्भ हुई । आदरणीय गोविन्द वल्लभ पन्त के मंत्रीमंडल में इन्हें पुलिस एवम परिवहन मंत्री का कार्यभार सौंपा गया, अपने इस कार्यकाल के दौरान ही शास्त्री जी ने भारत की पहली महिला कंडक्टर नियुक्त किया, एवम पुलिस विभाग में उन्होंने लाठी के बजाय पानी की बौछार से भीड़ को नियंत्रित करने का नियम बनाया ! 1951 में शास्त्री जी को ‘अखिल-भारतीय-राष्ट्रिय-काँग्रेस’ का महा-सचिव बनाया गया ! लाल बहादुर शास्त्री हमेशा पार्टी से उपर देश को रखकर चलते थे । इनकी काबिलियत को देखते हुए इन्हें जवाहरलाल नेहरु की आकस्मिक मौत के बाद भारत का प्रधानमन्त्री नियुक्त किया गया, प्रधानमंत्री के रूप में इनका कार्यकाल बहुत कठिन था । दुनियां के शक्तिशाली देशों ने एवम हमारे पडोसी देश पाकिस्तान ने शास्त्री जी का कार्यकाल बहुत चुनौतिपूर्ण बना दिया था। 1965 में सांय 7.30 बजे एकाएक पकिस्तान ने भारत पर हवाई हमला कर दिया, ऐसी परिस्थिती में राष्ट्रपति ‘सर्वपल्ली राधा कृष्णन’ ने बैठक बुलवाई इस बैठक में तीनो रक्षा विभाग के प्रमुख एवम शास्त्री जी सम्मिलित हुए, विचार-विमर्श के दौरान सोना प्रमुख ने प्रधानमंत्री शास्त्री जी को सारी स्थिती से अवगत कराया साथ ही आदेश के लिए शास्त्री जी की तरफ देखने लगे, एक पल का भी विलम्ब किए बिना शास्त्री जी ने आदेश दिया “आप देश की रक्षा कीजिये और मुझे बताइए की हमें क्या करना है ” इन विकट परिस्थितियों में शास्त्री जी ने जिस तरह राष्ट्र का सेना का नेतृत्व किया “जय-जवान - जय-किसान” का नारा दिया, देश को एक किया, जिसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी नही किया था ऐसा परिणाम विश्व के सामने भारत ने रखा था वह भी बिना किसी वाह्य शाक्त सम्पन्न देश की सहायता के । नेहरु के कार्यकाल मे तीन वर्ष पूर्व सन 1962 में चीन ने भारत को हराया था इसलिए पाकिस्तान को गफलत थी अर्ची की वह भी मौके पर चौका लगा लेगा लेकिन उसके सपने शास्त्री जी ने चकनाचूर किए थे । शास्त्री जी के जीवन का एक कालकलवित पन्ना भी है मित्रों रुस एवम अमेरिका के दबाव पर शास्त्री जी शान्ति-समझौते पर हस्ताक्षर करने हेतु पकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान से रूस की राजधानी ताशकंद में बैठक किया । इस हस्ताक्षर पर शास्त्री जी की आत्मा उन्हें इजाज़त नहीं दे रही थी उन पर दबाव बनाकर हस्ताक्षर करवाए गए, परिणामस्वरूप समझौते की रात को ही 11 जनवरी 1966 को उनकी रहस्यपूर्ण तरीके से मृत्यु हो गई । कहा यह जाता है कि शास्त्री जी को दिल का दौरा पड़ा था, अपने बड़ो से ऐसाभी सुना है मैने अर्ची कि शास्त्री जी की डेड बांडी का पोस्टमार्टम नहीं किया गया था देश की जनता आज भी यह मानने को तैयार नहीं है कि जिस जीवट आदमी को देश पर पाकिस्तान के आक्रमण के समय हृदयाघात नहीं हुआ उस निर्भीक साहसी व्यक्ति को ऐसे हृदयाघात नहीं आ सकता । देश आज भी यही मानता है जनसमूह के इस जननायक को जहर दिया गया था एक सोची-समझी साजिश के तहत । प्रधानमंत्री के रुप में कुल 18 मांह ही लाल बहादुर शास्त्री जी ने भारत का प्रतिनिधित्व किया था लेकिन इस छोटे कद वाले हुतात्मा के नेतृत्त्व का लोहा दुनिया ने माना था । यमुना नदी के किनारे ‘विजय-घाट’ आज भी शास्त्री जी की अमर गाथा अपने भीतर समेंटे बैठा है । मेरा यह स्तम्भ/आलेख/आर्टिकल, केवल मेरी श्रद्धा है भावपूर्ण श्रद्धांजलि है मेरे आदरणीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के लिए । इससे अगर किसी को ठेस पहुंचे तो अग्रिम क्षमा चाहूंगी क्योंकि यह निरा मेरी अपनी सोच की उत्पत्ति है जो पन्ने पर बिखेर दिया है मैने, किसी को चोट पहुँचाने का मेरा कोई इरादा नही है अर्ची । कलम से : भारद्वाज अर्चिता 11/01/2019

आज 11 जनवरी है याने के हमारे सरल हृदय भूतपूर्व प्रधानमंत्री आदरणीय स्व०लाल बहादुर शास्त्री जी की पुण्यतिथि ! विनम्र श्रद्धांजलि के साथ आइए एक किसान परिवार की बेटी की कलम से किसानों के प्रथम एवम सच्चे किसान मन प्रधानमंत्री के जीवन के कुछ छुए अनछुए पहलू पर प्रकाश डालते हैं !!
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शास्त्री जी भारतीय गणराज्य के द्वितीय प्रधानमंत्री थे । कार्यकाल के दौरान जवाहर लाल नेहरु की मृत्यु हो जाने के कारण 9 जून 1964 में शास्त्री जी को भारत के दूसरे प्रधानमंत्री के रूप में मनोनित किया गया ।   शास्त्री जी का जीवन और  शासन दोनों ‘अद्वितीय’ था । जीवटता और सादगी की प्रतिमूर्ति थे हमारे शास्त्री जी, 1966 में ‘भारत-रत्न’ से इन्हें नवाज़ा जरूर गया पर गुदडी का यह लाल अपने आप मे ही एक विलक्षण रत्न था । मां बचपन में बताया करती थी शास्त्री जी एक स्वतंत्रता संग्रामी सेनानी भी रहे थे । महात्मा गाँधी को अपना आदर्श मानकर गांधी जी के पद चिन्हों पर आजीवन चलें ।
1965 मे जब पाकिस्तान ने भारत पर युद्ध थोपा उस वक्त देश की आर्थिक स्थिति सही नहीं थी देश अर्थ और अन्न दोनों तरह के संकट से गुजर रहा था फिर भी शास्त्री जी का मनोबल डिगा नहीं। शास्त्री जी ने देश के जवान, किसान,एवं आम जनमानस से देश रक्षा हेतु सहयोग का आह्वान किया था इस युद्ध में पूरा देश शास्त्री जी के साथ खड़ा था।
मेरे पापा श्री बी०डी० पाठक से मुझे पता चला एक छोटे कद का जीवट आदमी सम्पूर्ण देश को आपत्तिकाल में एक साथ लेकर कैसे चल पडा था और उसके इस साहसपूर्ण एकता से कैसे पाकिस्तान को मुँह की खानी पडी थी । जिस वक्त़ 1965 का युद्ध आरम्भ हुआ पापा बताते हैं पापा की उम्र महज 15 वर्ष थी वह गोरखपुर स्थित सेंटएंड्रयूज इंटर कालेज मे हाई स्कूल के छात्र थे उनके स्कूल में दिन में पढाई होती और साम को छुट्टी के बाद अपने प्रचार्य एवम अध्यापकों के साथ सभी छात्र शहर में घूंम-घूम कर देश के लिए चंदा इकट्ठा करते थे, शारीरिक श्रम दान करके चंदा इकट्ठा करते थे। पापा बताते हैं शास्त्री जी के आह्वान पर उस वक्त़ हम सब एक वक्त़ खाना खाते थे , घर मे एक वक्त़ ही चूल्हा जलाया जाता था । घर के बड़े - बुजुर्ग हफ्ते मे केवल 5 दिन एक वक्त़ खाना खाते और दो दिन दोनो वक्त़ निराहार रहते। शास्त्री जी ने यहीं आचरण स्वयम भी किया था उस वक्त़ वह स्वयं भी निराहार और अल्पाहार रह रहे थे । सीमा पर युद्ध चल रहा था देश पर संकट था साथ ही देश के भीतर अन्न का संकट था आर्थिक संकट था, घर की महिलाओं के जेवर इकट्ठा करके मेरे दादा जी (स्व० ठाकुर पाठक ) देश के लिए दान दे दिए थे, ऐसा करने वाले वह अकेले नही थे,पूरा देश ऐसा कर रहा था। देर रात तक नुक्कड सभा और देश के लिए चंदा इकट्ठा करना प्रथम् अनिवार्य कार्य बन गया था।
सबके लिए देश प्रथम था लोकतंत्र पर संकट के समय लोक का गण लोक के साथ खड़ा था ।
शास्त्री जी के बारे में अपने बड़ों से जानकर लगता है क्या नेता का यह भी आदर्शरूप होता है ....???
क्योंकि 90 के दशक से मैने तो नेता का भ्रष्ट,करप्ट रूप ही देखा है अर्ची ।
शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 में मुगलसराय (उत्तरप्रदेश) ब्रिटिश भारत में हुआ था,इनके पिता का नाम मुंशी शारदा प्रसाद था, पिता जी प्राथमिक पाठशाला के अध्यापक थे, माता का नाम राम दुलारी देबी था लाल बहादुर जी को बचपन में परिवार के सदस्य ‘नन्हे’ कहकर बुलाते थे ।बचपन में पिता का स्वर्गवास हो गया ,माता इन्हें लेकर अपने पिता के घर मिर्जापुर आ गई । शास्त्री जी की प्राथमिक शिक्षा मिर्ज़ापुर में हुई आगे की शिक्षा हरिश्चन्द्र हाई स्कूल और काशी-विद्यापीठ में किया । संस्कृत भाषा में स्नातक किया और काशी-विद्यापीठ से ‘शास्त्री’ की उपाधि प्राप्त की यहीं से नाम के साथ आरम्भ हुआ ‘शास्त्री’ उपनाम ।
1920 में शास्त्री जी आजादी की लड़ाई में सामिल हुए ‘भारत सेवक संघ’ की सेवा से जुड़ें  1921 में ‘अहसयोग-आन्दोलन, 1930 में दांडी-यात्रा,1942 में “भारत-छछोड़ो आंदोलन में भागीदारी निभाए । अगस्त 1942 में गाँधी जी के ‘भारत-छोडो आन्दोलन’ ने तीव्रता पकड़ ली थी. इसी दौरान शास्त्री जी ने भारतीयो को जगाने के लिए “करो या मरो” का नारा दिया, इस आन्दोलन के समय शास्त्री जी ग्यारह दिन भूमिगत ( Underground ) रहे, 19 अगस्त 1942 को इन्हें गिरफ्तार किया गया ।
स्वतंत्र भारत की राजनीति में शास्त्री जी की सक्रीयता उत्तर प्रदेश संसद के सचिव नियुक्त किये जाने से आरम्भ हुई । आदरणीय गोविन्द वल्लभ पन्त के मंत्रीमंडल में इन्हें पुलिस एवम परिवहन मंत्री का कार्यभार सौंपा गया, अपने इस कार्यकाल के दौरान ही शास्त्री जी ने भारत की पहली महिला कंडक्टर नियुक्त किया, एवम पुलिस विभाग में उन्होंने लाठी के बजाय पानी की बौछार से भीड़ को नियंत्रित करने का नियम बनाया !
1951 में शास्त्री जी को ‘अखिल-भारतीय-राष्ट्रिय-काँग्रेस’ का महा-सचिव बनाया गया ! लाल बहादुर शास्त्री हमेशा पार्टी  से उपर देश को रखकर चलते थे । इनकी काबिलियत को देखते हुए इन्हें जवाहरलाल नेहरु की आकस्मिक मौत के बाद भारत का प्रधानमन्त्री नियुक्त किया गया, प्रधानमंत्री के रूप में  इनका कार्यकाल बहुत कठिन था । दुनियां के शक्तिशाली देशों ने एवम  हमारे पडोसी देश पाकिस्तान ने शास्त्री जी का कार्यकाल बहुत  चुनौतिपूर्ण बना दिया था। 1965 में सांय 7.30 बजे एकाएक पकिस्तान ने भारत पर हवाई हमला कर दिया, ऐसी परिस्थिती में राष्ट्रपति ‘सर्वपल्ली राधा कृष्णन’ ने बैठक बुलवाई  इस बैठक में तीनो रक्षा विभाग के प्रमुख एवम शास्त्री जी सम्मिलित हुए, विचार-विमर्श के दौरान सोना प्रमुख ने प्रधानमंत्री  शास्त्री जी को सारी स्थिती से अवगत कराया साथ ही आदेश के लिए शास्त्री जी की तरफ देखने लगे, एक पल का भी विलम्ब किए बिना शास्त्री जी ने आदेश दिया “आप देश की रक्षा कीजिये और मुझे बताइए की हमें क्या करना है ” इन विकट परिस्थितियों में शास्त्री जी ने जिस तरह राष्ट्र का सेना का नेतृत्व किया “जय-जवान - जय-किसान” का नारा दिया,  देश को एक किया, जिसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी नही किया था ऐसा परिणाम विश्व के सामने भारत ने रखा था वह भी बिना किसी वाह्य शाक्त  सम्पन्न देश की सहायता के । नेहरु के कार्यकाल मे तीन वर्ष पूर्व सन 1962 में चीन ने भारत को हराया था इसलिए पाकिस्तान को गफलत थी अर्ची की वह भी मौके पर चौका लगा लेगा लेकिन उसके सपने शास्त्री जी ने चकनाचूर किए थे । शास्त्री जी के जीवन का एक कालकलवित पन्ना भी है मित्रों रुस एवम अमेरिका के दबाव पर शास्त्री जी शान्ति-समझौते पर हस्ताक्षर करने हेतु  पकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान से रूस की राजधानी ताशकंद में बैठक किया । इस हस्ताक्षर पर शास्त्री जी की आत्मा उन्हें इजाज़त नहीं दे रही थी उन पर दबाव बनाकर हस्ताक्षर करवाए गए, परिणामस्वरूप  समझौते की रात को ही 11 जनवरी 1966 को उनकी रहस्यपूर्ण तरीके से मृत्यु हो गई । कहा यह जाता है कि शास्त्री जी को दिल का दौरा पड़ा था, अपने बड़ो से ऐसाभी सुना है मैने अर्ची कि शास्त्री जी की डेड बांडी का  पोस्टमार्टम नहीं किया गया था देश की जनता आज भी यह मानने को तैयार नहीं है कि जिस जीवट आदमी को देश पर  पाकिस्तान के आक्रमण के समय हृदयाघात नहीं हुआ उस निर्भीक साहसी व्यक्ति को ऐसे हृदयाघात नहीं आ सकता । देश आज भी यही मानता है जनसमूह के इस जननायक को जहर दिया गया था एक सोची-समझी साजिश के तहत । प्रधानमंत्री के रुप में कुल 18 मांह ही लाल बहादुर शास्त्री जी ने भारत का प्रतिनिधित्व किया था लेकिन इस छोटे कद वाले हुतात्मा के नेतृत्त्व का लोहा दुनिया ने माना था ।
यमुना नदी के किनारे ‘विजय-घाट’ आज भी शास्त्री जी की अमर गाथा अपने भीतर समेंटे बैठा है ।
मेरा यह स्तम्भ/आलेख/आर्टिकल, केवल मेरी श्रद्धा है भावपूर्ण श्रद्धांजलि है मेरे आदरणीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के लिए । इससे अगर किसी को ठेस पहुंचे तो अग्रिम क्षमा चाहूंगी क्योंकि यह निरा मेरी अपनी सोच की उत्पत्ति है जो पन्ने पर बिखेर दिया है मैने, किसी को चोट पहुँचाने का मेरा कोई इरादा नही है अर्ची ।

कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
  11/01/2019

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“ सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय । सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय ।” भावार्थ :- यदि सारी धरती को कागज़ मान लिया जाए , सारे जंगल - वनों की लकड़ी की कलम बना ली जाए तथा सातों समुद्र स्याही हो जाएँ तो भी हमारे द्वारा कभी हमारे गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते है ।हमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है अर्ची, गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है । इस जगत मे बहुत कम ऐसे गुरू हुए है जिनको उनकी अपनी सफलता के साथ साथ ही उनके अपने शिष्य की सफलता से पहचान मिली हो ऐसे ही भाग्यशाली गुरू रहे है “रमाकान्त आचरेकर” जिन्हे पूरी दुनिया सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट कोच “ क्रिकेट गुरू ” के रूप मे जानती है और इसी रूप मे ही सदैव याद भी रखना चाहती है ! ईश्वर के साम्राज्य मे पहुँचने पर आज गुरू आचरेकर का स्वागत नाराण ने निश्चित तौर पर यही कह कर किया होगा “ क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के गुरू रमाकान्त आचरेकर जी आईए आपका स्वागत है !!” दिवंगत आचरेकर जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !! ================================ Bhardwaj@rchita 03/01/2019

माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति अयोध्याकाण्ड जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठा] जानि गौरि अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।

गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं. गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं. गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं. सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष सर्वोच्च ब्रह्म है अपने उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करती हूँ, कोटि-कोटि प्रणाम करती हूं !! साभार : भारद्वाज अर्चिता