लोकतंत्रात्मक व्यवस्था एवम प्रधानमंत्री का प्रोटोकॉल

लोकतंत्रात्मक व्यवस्था में विश्वास रखने वाले, 1950 में लागू भारत के संविधान को ससम्मान शिरोधार्य करने वाले एक अरब पच्चीस करोड़ भारतीय नागरिको को  अपने देश के वर्तमान प्रधानमंत्री के प्रति अपनाया गया यह विद्रूप कृत्य क्या कही से भी शोभा देता है खासकर तब जब पूरी दुनिया मीडिया के माध्यम से एक कमरे मे सिमटी हुई है ? सनद हो इस देश के नागरिको को कि आप दुनिया के सबसे सुन्दर देश सबसे सुन्दर संविधान को जन्मजात प्राप्त करने वाले इस दुनिया के सबसे भाग्यशाली प्राणी हो पार्टी जाति दल वर्ग की ओछी सोच से उपर उठ कर अपने देश के संविधान की गरिमा को पहचानो समझो और मनन करो की आपके देश के संविधान मे वर्णित भारत के प्रधानमंत्री का प्रोटोकॉल क्या होता है और देश के नागरिको द्वारा अथवा किसी राजनीतिक दल विशेष के लोगो द्वारा देश के प्रधानमंत्री के इस प्रोटोकॉल विशेष की अवहेलना करने का अधिकार भारतीय संविधान आप सबको देता भी है अथवा नही !
मित्रों एक लोकतंत्रात्मक व्यवस्था मे जीने वाले देश का प्रधानमंत्री आपके लिए केवल राजनीतिक पार्टी का सिम्बल भर नही होना चाहिए ना ही उसे पार्टी अथवाँ दल के नाम पर बाँट कर उसका अपमान करना ही आपको शोभा देता है ! लोकतंत्रात्मक व्यवस्था मे जिस तरह सत्ता पक्ष निरंकुश नहीं हो सकता उसी तरह विपक्ष भी अराजकता फैलाने के लिए निरंकुश नही हो सकता एवम उसी तरह  लोकगण भी निरंकुश नही हो सकता क्योकि लोकतंत्रात्मक व्यवस्था मे जीने वाले देश के लोक के लिए भी अव्यवहारिक असामाजिक एवम अराजक होने पर तंत्र ( कानून के डण्डे ) का बाकायदे प्रावधान किया गया है भारतीय संविधान मे !
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कलम से :
भारद्वाज अर्चिता

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“ सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय । सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय ।” भावार्थ :- यदि सारी धरती को कागज़ मान लिया जाए , सारे जंगल - वनों की लकड़ी की कलम बना ली जाए तथा सातों समुद्र स्याही हो जाएँ तो भी हमारे द्वारा कभी हमारे गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते है ।हमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है अर्ची, गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है । इस जगत मे बहुत कम ऐसे गुरू हुए है जिनको उनकी अपनी सफलता के साथ साथ ही उनके अपने शिष्य की सफलता से पहचान मिली हो ऐसे ही भाग्यशाली गुरू रहे है “रमाकान्त आचरेकर” जिन्हे पूरी दुनिया सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट कोच “ क्रिकेट गुरू ” के रूप मे जानती है और इसी रूप मे ही सदैव याद भी रखना चाहती है ! ईश्वर के साम्राज्य मे पहुँचने पर आज गुरू आचरेकर का स्वागत नाराण ने निश्चित तौर पर यही कह कर किया होगा “ क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के गुरू रमाकान्त आचरेकर जी आईए आपका स्वागत है !!” दिवंगत आचरेकर जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !! ================================ Bhardwaj@rchita 03/01/2019

माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति अयोध्याकाण्ड जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठा] जानि गौरि अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।

गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं. गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं. गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं. सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष सर्वोच्च ब्रह्म है अपने उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करती हूँ, कोटि-कोटि प्रणाम करती हूं !! साभार : भारद्वाज अर्चिता