धर्म और उकसाई भीड को एक तराजू पर तौलना कतई समझ नही आता
हिंदू धर्म मे गाय को माता की संज्ञा दी गयी है और इसके लिए उद्वेलित होना भी समझ मे आता है,पर क्या पागल भीड़ का इस तरह अक्रामक हो जाना और किसी की हत्या कर देना वाजिब है? धर्म और उकसाई भीड़ को एक तराजू पर तौलना कतई समझ नही आता !
उस पागल भीड़ में कितने लोग ऐसे थे जो गाय को सचमुच माता समझते है, ठीक से देखे तो कोई नही, ना जाने कितनी गाय सड़क पर प्लास्टिक खा कर मरी जा रही है उसकी चिंता हमसे से किसी को नही है क्योंकि आज के इस विकसित समाज में हमने खुद अपने हाथों गाय की जगह को खत्म कर दिया है, पक्के बहुमंजिली कितनी इमारतों में गाय पाली जाती है?हममे से कितने लोग है जिन्होंने अनाथ गायों के लिए गौशाला खोली है?जरूरत है खुद से प्रश्न पूछने की, क्या हम महंगी कारो के साथ गाय को बांधने के लिए तैयार है?सवाल पूछे तो जवाब नही ही आएगा, गाय का जरा सा गोबर तो आज के आधुनिक लोगो को नाक पर रुमाल रखने को मजबूर कर देता है !
हमने यह समाज और यह स्तिथी खुद पैदा की है, और हम सबको यह जिम्मेदारी के साथ कबूल भी करना चाहिए !
गाय माता के रूप में बस पुराणों तक सीमित रह गयी है,किसी अनजान व्यक्ति की हत्या को इससे जोड़ना बिल्कुल भी उचित नही है !
इस पागल भीड़ का शिकार कल हम भी हो सकते है,पहले मनुष्यता स्थापित करने की जिम्मेदारी हम ले तो इससे धर्म की भी स्थापना होगी और सभी सुरक्षित और खुश भी !
यह मेरे अपने विचार है, किसी की भावनाएं अगर इससे आहत होती हो तो क्षमाप्रार्थना !
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कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
04/12/2018
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