“ भारत के 5 राज्यों मे समपन्न हुए हाल के चुनाव एवम उनके परिणाम पर एक समीक्षा निरपेक्ष भाव से ! ” कलम से : भारद्वाज अर्चिता

“ भारत के 5 राज्यों मे समपन्न हुए हाल के चुनाव एवम उनके परिणाम पर एक समीक्षा निरपेक्ष भाव से ”
                             कलम से : भारद्वाज अर्चिता
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नमस्कार पाठकों !
अभी 5 राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ, तेलंगाना व मिजोरम मे जो चुनाव सम्पन्न हुए और उनके जो परिणाम निकलकर सामने आए है उस चुनाव परिणाम से एक बात तो साफ हो गयी की यह जीत और यह हार स्थानीय चेहरो की नही हुई है बरन यह हार - जीत पार्टी विशेष एवम केन्द्र सरकर के बहुत सारे बनते - बिगडते त्वरित एजेण्डो की हुई है ! बेलाग लपेट एक कलमकार के चश्मे से अगर मै देखती हूँ तो पाती हूँ कि :  भा०ज०पा० अपने 3 प्रदेशों राजस्थान, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़, मे चुनाव तो हार गई है पर इन प्रदेशो के स्थानीय मुखिया रहे ( रमन सिह छत्तीसगढ़, रानी वसुन्धरा राजे राजस्थान, शिवराज सिह मध्य प्रदेश ) की अपनी बम्पर जीत इस बात की गवाह है कि इन प्रदेशो की जनता आज भी अपने प्रदेश के मुखिया रहे इन चेहरो पर विश्वास एवम इनके द्वारा पूर्व मे किए गए कार्यो का सम्मान करती है, हाँ उसका भरोसा अगर किसी ने तोडा है तो वह है वर्तमान केन्द्र सरकार के भटकाव वाले वह मुद्दे जिनसे आज के समय मे आम जनता कोई इत्तेफाक नही रखना चाहती, एक बात और साफ हो गई की जनता देश की तरक्की व विकास के साथ साथ अपना भी विकास चाहती है वह भी जमीनी विकास ! केन्द्र सरकार को जनता के इस फैसले पर गम्भीर होना होगा क्योकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सौहार्दपूर्ण समृद्ध उन्नत रिश्ते कायम करने के साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर एवं अंतरीन प्रादेशिक स्तर पर भी आम जन मानस के साथ सौहार्दपूर्ण समृद्ध उन्नत रिश्ते कायम करने की आज जरूरत है ! कहना गलत न होगा कि वर्तमान भारत सरकार की विदेश नीति इस समय जितनी सफल है उतनी ही असफल है उसकी राष्ट्रीय नीति इस असफलता के केन्द्र मे किसानो के मुद्दे, बेरोजगारी की मार झेलते हतास युवाओ के मुद्दे,सामिल है यह मै तथ्यो के साथ कह रही हूँ क्योकि म०प्र०,राजस्थान एवम छत्तीसगढ़ के मेरे बहुत सारे ऐसे पाठको ने मुझे फोन पर जानकारी दी की इन प्रदेशो मे चुनाव के दिन वह मतदान करने न जाकर अपने अन्य कामो मे व्यस्त रहे वजह यह थी की चार साल मे जब उनके लिए नही सोचा गया तो वह किसी के लिए क्यो सोचे ? उनकी नाराजगी प्रदेश सरकार से नही केवल केन्द्र सरकार से थी इसलिए मेरे उन युवा पाठको ने मतदान नही किया, मेरे खयाल से मोदी सरकार को इस विषय पर भी गम्भीर होने की जरूरत है कि युवाओ मे मतदान के प्रति यह अरूची क्यो पैदा हुई है ? साथ ही काँग्रेस के लिए भी यह बहुत खुश होने के संकेत नहीं है क्योकि तेलंगाना मे टी०दी०पी० जिस तरह सत्ता में वापस आ गई है, मिजोरम मे जिस तरह कॉंग्रेस बुरी तरह से चुनाव हार गई यहाँ तक कि उसके अपनी ही पार्टी के  मुख्यमंत्री की जमानत तक जप्त हो गई इस तरह वह चुनाव हार गए वह एक एक सबक है कॉंग्रेस की नीतियो के लिए !
रही बात राजस्थान की तो बेलाग कहूँ तो मुझे लगता है राजस्थान का पिछ्ले 30 वर्षो का यही ट्रेंड रहा है कि : एक बार भा०ज०पा० तो दूसरी बार कॉंग्रेस ।
रानी का किला बचाते हुए इस बार भी रास्थान ने अपना वही पुराना ट्रेंड दुहराया है, राजस्थान की जनता ने भी कुछ नया करने का उत्साह नही दिखाया बस वही पुराना ट्रेंड दुहराया है, हाँ गौर तलब अगर कुछ है तो वह यह कि इस बार राजस्थान मे टक्कर कांटे की रही भाजपा जीतते हारी है और कॉंग्रेस हारते हारते जीत गयी ! दाद तो इस बात की देनी होगी रास्थान की जनता ने इस बार के चुनाव मे अपनी मुख्यमंत्री रानी वसुंधरा राजे की जीत ही तय नही किया बल्कि भारी मतों की जीत अपनी रानी को दिलवाया याने के रानी पर जनता का विश्वास कायम है !
रही बात मध्य प्रदेश मे हार की तो वहाँ भी 15 वर्ष शिवराज सिह की सरकार रहने के बावजूद जनता ने जिस तरह इस बार भी उनको अपना वोट दिया, विजय दिलवाया, उनपर अपना विश्वास कायम रखा यह भी चिन्तन करने का विषय है क्योकि यहाँ भी टक्कर बहुत कांटे की रही इसे शिवराज सिह की नही बरन केन्द्र सरकार के बदलते फार्मूले की हार के रूप मे देखा जाना चाहिए  क्योकि सीहोर जिले की अपनी बुधनी सीट से शिवराज सिह केवल एक दो वोट से नही बल्कि 58,999 वोटो से जीते है अतः एम०पी० मे मामूली अन्तर से हुई भाजपा की हार की वजह केवल केन्द्र सरकार की पिक आवर मे बदली कुछ रणनीतियाँ ही रखी जानी चाहिए मेरे हिसाब से । रही बात छत्तीसगढ मे बीजेपी की हार का तो यहाँ पर प्रदेश एव केन्द्र की बीजेपी सरकार के गैर जिम्मेदाराना बर्ताव को जनता ने सबक सिखाया है और मेरे हिसाब से भा०ज०पा० वास्तव मे छत्तीसगढ मे चुनाव हार गयी है ! पर मुख्यमंत्री डॉ० रमन सिंह की जीत एक चेतावनी है स्वयम रमन सिंह के लिए इस बात का की : डा० साहब जनता आपको पसन्द तो करती है किन्तु अपने विकास के साथ, जनता का विकास नही तो प्रदेश मे आपकी सरकार नही !
वैसे इस चुनाव परिणाम की समीक्षा तो बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व स्वयम भी करेगा ही पर इस देश की नागरिक होने के साथ - साथ एक कलमकार होने के नाते मै चाहती हूँ समीक्षा उस हर एक पहलू पर हो जिसने बीजेपी के प्रति जनता के विश्वास को तोडा है !
लोकतंत्र मे जीत हार चलती रहती है। आजादी मिलने के बाद से आज तक चुनाव प्रक्रिया इस देश मे जारी है और आगे भी जारी रहेगी, दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र मे, दुनिया के सबसे बडे संविधान मे, इस देश के गण को यह सुन्दर अधिकार मिला हुआ है कि वह देश की सरकार को अपने मत का प्रयोग करके निरंकुश होने से रोक सके ! तत्काल के तीन बडे राज्यो के चुनाव परिणाम इस बात के गवाह है की लोकतंत्र मे किसी भी पहलू विशेष पर गण की अवहेलना गवर्नमेंट को भारी पडेगी ! साथ ही बीजेपी को यह स्वीकार करने की आवश्यक्ता है की किसी लोकतंत्रात्मक देश की व्यवस्था मे जनता को इस बात की भी पूरी आजादी होती है की कभी - कभी जनता बदलाव का वाहक बने ! इसलिए बीजेपी को जनता के फैसले को पूरी नम्रता के साथ शिरोधार्य करना चाहिए ! साथ ही इस वक्त बीजेपी को पूरी ईमानदारी से अपना अन्त: मूल्यांकन करते हुए अपनी दोषमुक्त समीक्षा करने की भी आवश्यक्ता है !
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अर्चिता
12/12/2018

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