23 दिसंबर “डा० राजेन्द्र प्रसाद जी” जयंती विशेष
देश के प्रथम राष्ट्रपति,भारतरत्न डा०राजेन्द्र प्रसाद जी का हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के प्रति प्रेम !
( 23 दिसंबर जयंती विशेष )
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आज हमारे देश के प्रथम राष्ट्रपति आदरणीय डा० राजेन्द्र बाबू का जन्मदिन है, दुनिया ने राजेन्द्र बाबू पर बहुत लिखा है, बहुत पढ़ा है, ऐसा नही लगता है अब उनके जीवन का कोई भी बिन्दु शेष बचा है जिसपर हमे कुछ लिखना बाकी हो पर कुछ समय से मेरी खोजी प्रवृत्ति राजेन्द्र बाबू पर कुछ नया खोज रही थी सुखद बात तो यह है कि मुझे कुछ नही बहुत बडा नया पहलू मिल गया राजेन्द्र बाबू के जीवन से जुडा, जी हाँ एक नया पहलू जो मैने जाना देश के प्रथम राष्ट्रपति का वह है उनका हिन्दी एवम अन्य भारतीय भाषाओ के प्रति अथाह प्रेम एवम महत्वपूर्ण योगदान : यद्यपि राजेन्द्र बाबू की पढ़ाई फारसी और उर्दू से शुरू हुई थी तथापि बी०ए० में उन्होंने हिंदी भाषा ही लिया वह अंग्रेजी, हिन्दी, उर्दू, फ़ारसी व बंगाली भाषा और साहित्य से अथाह अनुराग रखते थे एवम लिखने,पढ़ने,बोलने, के दृष्टिकोण से इन भाषाओ से पूरी तरह परिचित थे, इन उपरोक्त भाषाओं में सरलता से अपने प्रभावकारी व्याख्यान भी देते थे। यहाँ तक कि गुजराती भाषा का व्यावहारिक ज्ञान भी उन्हें था।
एम०एल० परीक्षा के लिए हिन्दू कानून का उन्होंने संस्कृत ग्रंथों से अध्ययन किया था। हिन्दी के प्रति उनका अगाध प्रेम हर पल उनके जीवन मे झलकता था। अपने समय की लगभग सभी बडी हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं जैसे : भारत मित्र, भारतोदय, कमला आदि में उनके रेगुलर लेख छपते थे। हिन्दी के पत्र पत्रिकाओं मे छपे उनके निबन्ध इतने सुरुचिपूर्ण तथा प्रभावकारी होते थे कि तत्कालीन विश्वविद्यालय, कॉलेज स्तर के विद्यार्थी उसे पूरी तन्मयता के साथ पढ़ते और अपने आचरण मे उतारते थे !
1912 में जब अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन का अधिवेशन कलकत्ते में हुआ तब राजेन्द्र बाबू को ही स्वागतकारिणी समिति का प्रधान मन्त्री बनाया गया था। 1920 में जब अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन का 10वाँ अधिवेशन पटना में हुआ तब भी राजेन्द्र बाबू ही उस सम्मेलन के प्रधान मन्त्री थे। वर्ष 1923 में जब हिन्दी साहित्य सम्मेलन का अधिवेशन कोकीनाडा में होने वाला था तब भी उनके हिन्दी भाषा प्रेम के चलते उनको ही उस सम्मेलन का अध्यक्ष मनोनीत किया गया था परन्तु अपनी अस्वस्थता के कारण वह उसमें उपस्थित न हो सके किन्तु उन्होने ने अपना स्वयम का हिन्दी मे लिखा भाषण समय से सम्मेलन मे भेजवा दिया था जिसे श्री जमनालाल बजाज ने पढ़ा था। राजेन्द्र प्रसाद जी को 1926 में बिहार प्रदेशीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन का और 1927 में उत्तर प्रदेशीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन का सभापति बनाया गया था । उन्होने अपनी आत्मकथा वर्ष 1946 मे हिन्दी भाष में ही लिखी, भारत के किसी राष्ट्रपति द्वारा हिन्दी मे अपनी आत्मकथा लिखने का यह प्रथम पहल थी, भारत मे राष्ट्रपति द्वारा हिन्दी भाषा मे लिखी गई प्रथम् आत्मकथा होने के नाते इस आत्मकथा को बहुत प्रसिद्धि मिली, राजन्द्र बाबू लिखित उनके आत्मकथा की यह पुस्तक है भारत मे सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली पुस्तक है !
भाषा के क्षेत्र में राजेंद्र बाबू की विशेषता एवम पकड इतनी थी कि हिन्दी एवम अन्य भारतीय भाषा के साथ साथ अंग्रेजी मे भी वह उम्दा लेखन करते थे,
अंग्रेजी में उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं है जिनमे से 1922 मे सत्याग्रह ऐट चम्पारण और 1946 मे “इण्डिया डिवाइडेड” जगत प्रसिद्ध है !
उन्होने हिन्दी के “देश” एवम अंग्रेजी के “पटना लॉ वीकली” समाचार पत्र का सम्पादन भी किया था।
हिन्दी भाषा मूर्धन्य, कानूनविद, स्वाधीन भारत के सबसे लम्बे समयावधि तक अपने पद पर बने रहने वाले प्रथम राष्ट्रपति, भारतरत्न आदरणीय राजेन्द्र प्रसाद जी को आज उनकी जयन्तीपर देश की इस बेटी का कोटि कोटि प्रणाम् !
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कलम से :
अर्चिता
सुधी पाठको के ध्यानार्थ : पत्रिका मे पब्लिश हो चुका है यह मेरा लेख है अत: अपने नाम से कॉपी पेस्ट न करे इसे !
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