17 दिसम्बर अमर शहीद राजेन्द्र प्रसाद लाहिड़ी के शहादत दिवस पर विशेष चर्चा

"जेलर साहब चूँकि मै हिन्दू हूँ और पुनर्जन्म में मेरी अटूट आस्था है, मै मरने नही जा रहा हूँ अपितु अपने राष्ट्र भारत को स्वत्रंन्त्र कराने के लिए मै पुनर्जन्म लेने जा रहा हूँ, बंदे मातरम , भारत माता की जय "
जी हाँ अपने इन्ही साहसिक पंक्तियों को बार - बार दोहराते हुए वह 26 वर्षीय युवा क्रांतिकारी देश की आजादी के लिए फांसी के फंदे पर झूल गया जिसे दुनिया आज अमर शहीद राजेन्द्र प्रसाद लाहिड़ी के नाम से याद करती है ! जिसका जीवन चरित्र राष्ट्र के प्रति अपना सुंदर योगदान देने के लिए आज हमारे युवाओ का प्रेरणा केन्द्र हो सकता है !  राजेन्द्र प्रसाद लाहिड़ी का जन्म 23 जून 1901मे हुआ था ! जिस समय इन्हे फांसी दिया गया इनकी कुल उम्र मात्र 26 वर्ष ही थी पर देश पर मर मिटने का जज्बा उम्र से कई हजार गुना अधिक था !
भारत देश की पवित्र भूमि भड़गा ग्राम, पाबना जिला, बंगाल की माटी को इनका जन्म स्थान होने का सम्मान प्राप्त है ! इनकी एक ही पहचान है इस दुनिया मे वह है देश पर शहीद हो जाने वाले अमर शहीद "क्रांतिकारी,"की पहचान ! काकोरी काण्ड को अंजाम देने के लिए इनको यह सजा ब्रिटिश हुकुमत द्वारा दी गयी थी, !
17 दिसम्बर 1927 भारतीय इतिहास के पन्नो मे दर्ज वह महान तारीख़ है जिस दिन भारती के इस अतिशय प्रिय बेटे को अपनी मातृभूमि की आजादी हेतु निर्भीकता पूर्वक ब्रिटिश हुकूमत से टकराने के लिए फांसी दी गयी ! निश्चित रूप से 17 दिसम्बर का वह दिन भी गौरव कर रहा होगा अपनी तारीखी पर जिस दिन राजेन्द्र प्रसाद लाहिड़ी ने जिला कारागार गोण्डा उत्तर प्रदेश मे हँसकर फांसी का फंदा चूमा होगा !
हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिवोल्यूशन आर्मी पार्टी बनारस के प्रभारी का दायित्व बहुत बडा था और युवा राजेन्द्र की उम्र दायित्व के लिहाज से बहुत कम पर इस युवा क्रांतिकारी ने जिस बखूबी से अपना पदभार सम्हाला और  इतिहास मे स्वयम को अंकित कर दिया उस जज्बे को मै केवल प्रणाम् कर सकती हूँ मेरी कलम के शब्दो मे इतना साहस नहीं कि वह राजेन्द्र प्रसाद लाहिड़ी जैसे महान क्रांतिकारी की गौरव गाथा लिख सके अर्चिता क्योकि शहीद की शहादत पर लिखना सहज नही होता !
आज मां भारती के अमर सपूत क्रान्तिकारी शहीद बेटे राजेन्द्र प्रसाद लाहिड़ी का शहादत दिवस है आईए देश के इस अमर शहीद को अपनी भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए शत-शत प्रणाम करे !
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✍कलम से :
  भारद्वाज अर्चिता
17/12/2018

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