मैरीकॉम
“बॉक्सिंग की दुनिया में विश्व विजयी बॉक्सर“मैरीकॉम”के बहाने देश की आधी आबादी के नाम अर्चिता की चिट्ठी”
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भारत मे चिट्ठियों की कहानी अर्चिता की जुबानी श्रृंखला के अंतर्गत आज का मौजू :
“35 की उम्र, 3 बच्चों की मां, सामने प्रतिद्वंदी के रूप में खड़ी 22 साल की युवा बॉक्सर, कल्पना करिए कितना सहज, कितना दूरूह, पल रहा होगा मैरीकॉम के सामने, लेकिन जो वक्त और हालात के सामने घुटने टेक दे वह मैरीकॉम कहाँ, मैरीकॉम तो पैदा ही होती है समाज की जटिल वर्जनाओ एवम विपरित परिस्थितियो के विरूद्ध जाकर इतिहास बनाने के लिए,भीड मे भटकी/खोई अपने जैसी हजारो - लाखो प्रतिभाओ को राह दिखाने के लिए ! जिस समय मैरीकॉम बॉक्सिंग की दुनिया मे जाने के लिए खुद को परिवेश के विरूद्ध Balanced “संतुलित” कर रही थी उस समय इस देश मे मैरी के जैसी और भी हजारो - हजार प्रतिभाएं कही न कही दबी-छुपी पडी रही होगी, लेकिन वह इस लिए चमक न सकी क्योकि उनके भीतर साहस की कमी थी ! English Novelist E.M. Forster ने कहा है : “ A man Can Climb A Higher Stage of Life by Using the power of Reason.”
हमारे देश मे प्रतिभाएं संसाधन के बजाय साहस के अभाव में कहीं ज्यादे संख्या में दम तोड़ देती है !
प्रतिभा को निखारने में, मौका देने में, तराशने में जहाँ सौ प्रतिशत योगदान उसके परिवार, परस्थिति, परिवेश का होता है वहीं अगर गौर किया जाए तो पता चलता है कि : किसी भी प्रकार के मुकाबले हेतु तैयार करने, निखारने मे 200 प्रतिशत योगदान स्वयम उस प्रतिभा के अपने भीतर-बाहर के साहस का भी होता है ! मैरीकॉम के भीतर - बाहर के उसके स्वयम के साहस का ही प्रतिफल रहा है कि : हजारो विपरित परिस्थितियो के बावजूद भी उसने छठवी बार वर्ल्ड रिकॉर्ड बना डाला !
मेरे देश की जिन बेटियों को लगता है की वह अपनी जिंदगी में कुछ नहीं कर सकती क्योकि उनमे प्रतिभा तो है बावजूद इसके उन्हे बनी बनायी ट्रैक, बनी बनायी पिच उपलब्ध नही हो सकी है, वह बहुत कुछ करना तो चाहती हैं मगर कर नहीं पाती है क्योकि उनमे अवरोधो से, विरोधो से, लडने - भिडने का साहस नही है, न संकल्प शक्ति ही है !
आज देश की ऐसी दम तोडती आधी आबादी के अंतर्गत आने वाली प्रतिभाओ के लिए मै अपने इस पत्र के माध्यम से, इस चिट्ठी के माध्यम से, एक सुंदर संदेश प्रेषित करना चाहती हूँ : “अगर स्वयम मे प्रतिभा होने के बावजूद भी आप सब उसे मौका एवम मंच देने से पीछे हट रही है तो आप सभी को मणिपुर से आने वाली भारतीय बॉक्सर एमसी मैरीकॉम के बारे में पढ़ने की, मनन - चिन्तन करने की जरूरत है, आपको स्वयम के लिए स्वय भी मंच तलाशना होगा वह भी अपने साहस के दम पर, आप सबको एक बार गम्भीरता से सोचना होगा कि : अपने साहस के दम पर कैसे 35 साल की मैरी कॉम ने छठी बार बॉक्सिंग की वर्ल्ड चैंपियनशिप जीत ली है ? सोचना होगा आप सबको आखिर कैसे तीन बच्चों की मां मैरीकॉम ऐसा करने वाली इस दुनिया की इकलौती “सुपरमॉम” महिला बॉक्सर बन गयी हैं ?
दिल्ली में हो रहे इस इवेंट में आखिर कैसे मैरी कॉम ने अपने सामने खडी 22 साल की युवा बॉक्सर को 5-0 से चित करके “हरा करके” यह खिताब जीता है”?
आपको स्वयम से यह सवाल करना होगा यूक्रेन की हन्ना ओखोटा को 48 किलो भार वर्ग में हराकर मैरी ने इस इंवेट के इतिहास के सबसे ज्यादा 7 मेडल कैसे जीत लिए ?
वर्ष 2001 मे केवल एक सिल्वर मैडल लाने वाली लडकी ने आखिर बाद के लगातार 6 गोल्ड मैडल कैसे जीत लिए ?
मुझे उम्मीद है इन सारे प्रश्नो का उत्तर केवल कुछ एक शब्दो मे ही कुछ इस प्रकार मिल जाएगा आप सभी को “ केवल और केवल अपने साहस अपनी इच्छाशक्ति “ will power” के दम पर मैरी ने यह मुकाम, यह जीत, यह मैडल प्राप्त किया है, एचीव कया है !
आज गम्भीर होने की जरूरत है इस देश की हर एक बेटी को मैरीकॉम के उन शब्दो पर जो अपनी जीत के बाद उसने आंखों में आंसू लिए हुए कहा, यथा :
“ मैं उन तमाम लोगों का शुक्रिया अदा करना चाहती हूं जो मेरे इस फाइनल मुकाबले को देखने आए और मुझे सपोर्ट करते रहे, मेरे पास देश को देने के लिए इस गोल्ड मेडल के अलावा कुछ और नहीं है, मुझे उम्मीद है कि मैं अब 2020 के टोक्यो ओलंपिक्स में भी देश के लिए गोल्ड जीत पाउंगी.” मैरीकॉम के कहे यह एक - एक शब्द आखिर उसके साहस के ही तो प्रतीक है जिनके दम पर उसने अपने देश से फिर एक बार एक बडा वादा कर डाला है !
अब देखना यह है कि : मैरीकॉम के इस उपरोक्त वादे एवम अर्चिता के इस पत्र से, इस चिट्ठी से, प्रेरित होकर 2020 के टोक्यो ओलंपिक्स मे इस देश की और कितनी मैरीकॉम, और कितनी बेटियाँ हिस्सा लेने पहुँचती है ??
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क्रमश:
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