भारत में चिट्ठियों की कहानी अर्चिता की जुबानी :

कलम से अर्चिता :
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जैसा कि मैंने कल अपने पाठकों से वादा किया था कि : मैं कल आप लोगों के लिए कुछ नया लेकर आऊंगी तो लीजिए आप सबका इंतजार खत्म हुआ ? आगे मैं बात करने वाली हूं हमारे भारतीय समाज में 100 से ज्यादा प्रकार की चिट्ठी - पत्री लेखन के बारे में और उन चिट्ठियों के भीतर भावना मिश्रित उत्सुकता, संयोग, वियोग, बिरह, करुणा, वेदना, टिश, उलाहना, शिकायत नामा, शोक समाचार, आकुलता, व्याकुलता, उम्मीद, इंतज़ार, से लबरेज़ बंद अंतरदेसी के भीतर, एक दूसरे के मध्य आने एवं जाने वाले शब्दों की एक लंबी अटूट कहानी !
नानी की चिट्ठी, दादी की चिट्ठी, बुआ की चिट्ठी, ताऊ की चिट्ठी, मौसी की चिट्ठी, सहेली की चिट्ठी, मामा की चिट्ठी, चाचा की चिट्ठी, कोर्ट का सम्मन, ऑफिस का तार, नौकरी के लिए बुलावा पत्र, सीमा से आई फौजी की चिट्ठी, यह इतने सारे उपरोक्त असंख्य पत्र आजकल कहीं नजर नहीं आते जो एक समय में हमारे आपके, हम सबके, हमारे जीवन के अहम अंग हुआ करते थे ! इन सब पर चर्चा करने से पहले एक नजर डाल लेना सही होगा भारत में डाक सेवा की शुरुआत एवं डाक विभाग की स्थापना पर क्यूंकि जो हमारे जीवन का खूबसूरत हिस्सा रहा है उसका इतिहास जानना हमारा प्रथम कर्त्तव्य है यथा :
आजादी से पहले एवं आजादी के बाद भारत में डाकघर { पोस्ट ऑफिस } की स्थापना का इतिहास कुछ इस प्रकार से है :
वर्ष 1766 में लार्ड क्लाइव द्वारा प्रथम डाक व्यवस्था भारत में स्थापित की गई थी,
वर्ष 1774  में वारेन हेस्टिंग्स ने कलकत्ता में प्रथम डाकघर की  स्थापना किया था !
वर्ष 1786 में मद्रास प्रधान डाकघर की स्थापना की गई थी,
वर्ष 1793 में बम्बई प्रधान डाकघर की स्थापना की गई थी,
वर्ष 1854 में भारत में पोस्ट ऑफिस को प्रथम बार तारीख के अनुसार 1 अक्टूबर 1854 को राष्ट्रीय महत्व के प्रथक रूप से डायरेक्टर जनरल के संयुक्त नियंत्रण के अर्न्तगत मान्यता प्रदान की गई थी ।
आप सभी को याद होगा 1 अक्टूबर, वर्ष 2004 तक भारत में डाक सेवा के सफ़र को 150 वर्ष के रूप में हम सब ने मनाया था, भारत में डाक विभाग की स्थापना इसी समय से मानी जाती है।
वर्ष 1863 में भारत में रेल डाक सेवा आरम्भ की गयी थी !
वर्ष 1873 में भारत में नक्काशीदार लिफाफे की बिक्री प्रारंभ की गई थी !
वर्ष 1876 में भारत पार्सल पोस्टल यूनियन में शामिल किया गया !
वर्ष 1877 में भारत में वीपीपी (VPP) और पार्सल सेवा आरम्भ की गई थी !
वर्ष 1879 में भारत में पोस्टकार्ड  की सेवा को आरम्भ किया गया था !
वर्ष 1880 में भारत में मनीआर्डर सेवा प्रारंभ की गई थी !
वर्ष 1911 में भारत में प्रथम एयरमेल सेवा इलाहाबाद से नैनी डाक द्वारा भेजी गई थी !
वर्ष 1935 में भारत में प्रथम इंडियन पोस्टल आर्डर प्रारंभ हुआ था !
वर्ष 1972 में भारत में पिन कोड का प्रारंभ किया गया था !
वर्ष 1984 में भारत में प्रथम बार डाक जीवन बीमा का प्रारंभ किया गया था !
वर्ष 1985 में भारत में पोस्ट और टेलिकॉम विभाग प्रथक किये गए !
वर्ष 1986 में भारत में स्पीड पोस्ट (EME) सेवा शुरू की गई थी !
वर्ष 1990 में भारत में डाक विभाग मुंबई व चेन्नई में दो स्वचालित डाक प्रसंस्करण केंद्र स्थापित किये गए !
वर्ष 1995 में भारत में ग्रामीण डाक जीवन बीमा की शुरुआत की गई थी !
वर्ष 1996 में भारत में मीडिया डाक सेवा का प्रारंभ की गई थी !
वर्ष 1997 में भारत में बिजनेस पोस्ट सेवा को प्रारंभ किया गया
वर्ष 1998 में भारत में उपग्रह डाक सेवा शुरू की गई थी !
वर्ष 1999 में भारत में डाटा डाक व एक्सप्रेस डाक सेवा प्रारंभ
वर्ष 2000 ग्रीटिंग पोस्ट सेवा प्रारंभ की गई थी !
वर्ष 2001 में भारत में इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रान्सफर सेवा (EFT) प्रारंभ की गई थी !
वर्ष 3 जनवरी 2002 में भारत में इन्टरनेट आधारित ट्रैक एवं टेक्स सेवा की शुरुआत की गई थी !
वर्ष 15 सितम्बर 2003 में भारत में बिल मेल सेवा प्रारंभ की गई थी !
वर्ष 2004 30 जनवरी में भारत में ई-पोस्ट सेवा की शुरुआत की गई थी !
वर्ष 10 अगस्त 2004 में भारत में लोजिस्टिक्स पोस्ट सेवा की शुरुआत की गई थी !
क्रमशःअगले अंक में :
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ध्यानार्थ :
कृपया बिना परमिशन मेरे इस Article को कॉपी पेस्ट ना करें, मेरी वाल के साथ-साथ पत्रिका में प्रकाशित होने के लिए भी इसको भेजा है !

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“ सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय । सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय ।” भावार्थ :- यदि सारी धरती को कागज़ मान लिया जाए , सारे जंगल - वनों की लकड़ी की कलम बना ली जाए तथा सातों समुद्र स्याही हो जाएँ तो भी हमारे द्वारा कभी हमारे गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते है ।हमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है अर्ची, गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है । इस जगत मे बहुत कम ऐसे गुरू हुए है जिनको उनकी अपनी सफलता के साथ साथ ही उनके अपने शिष्य की सफलता से पहचान मिली हो ऐसे ही भाग्यशाली गुरू रहे है “रमाकान्त आचरेकर” जिन्हे पूरी दुनिया सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट कोच “ क्रिकेट गुरू ” के रूप मे जानती है और इसी रूप मे ही सदैव याद भी रखना चाहती है ! ईश्वर के साम्राज्य मे पहुँचने पर आज गुरू आचरेकर का स्वागत नाराण ने निश्चित तौर पर यही कह कर किया होगा “ क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के गुरू रमाकान्त आचरेकर जी आईए आपका स्वागत है !!” दिवंगत आचरेकर जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !! ================================ Bhardwaj@rchita 03/01/2019

माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति अयोध्याकाण्ड जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठा] जानि गौरि अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।

गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं. गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं. गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं. सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष सर्वोच्च ब्रह्म है अपने उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करती हूँ, कोटि-कोटि प्रणाम करती हूं !! साभार : भारद्वाज अर्चिता