एक पत्र प्रत्येक भारतीय के नाम :
एक पत्र प्रत्येक भारतीय के नाम :
=======================
📝
हम अक्सर समाचार पत्र के माध्यम से, न्यू चैनल के माध्यम से, सोशल मीडिया के माध्यम से अवेयर होते रहते हैं, अपडेट होते रहते हैं कि :
क्रिकेटर युवराज सिंह ने अपनी कैंसर की बीमारी का इलाज विदेश में करवाया, मनीषा कोईराला ने अपनी अपनी कैंसर की बीमरी का इलाज विदेश में करवाया, सोनिया गांधी जी अपना इलाज विदेश मे करवा रही है, गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पार्रिकर साहब, हिन्दी फिल्मों के अभिनेता इरफान खान, और सीने तारिका सोनाली बेन्द्रे आदि जब बीमार हुए, कैंसर की चपेट में आए तो वह अपने देश भारत की वर्तमान चिकित्सा व्यवस्था पर एवं चिकित्सकीय सुविधाओं पर भरोसा न करके, बेहतर इलाज के लिए विदेश गए, ।
देश के भीतर पर्याप्त समुचित साधन उपलब्ध न होने के कारण अपना इलाज करवाने जब हमारे देश के नागरिक विदेश जाते है तो यह हमारे देश के विकास पर एक बडा प्रश्न खडा करता है विश्व विरादरी मे क्योकि देश मे आजादी आए 70 साल हो गए है।
काफी साल पहले मैने सुनील दत्त साहब की एक फिल्म देखी थी फिल्म का नाम था “ दर्द का रिश्ता ” यह फिल्म 1982 मे स्वयम सुनील दत्त साहब ने निर्देशित किया था और बतौर नायक भी वह इस फिल्म मे थे यह फिल्म एक श्रद्धांजलि के रूप में अपनी पत्नी स्व०नर्गिस दत्त के लिए उन्होने बनाया था और इस फिल्म से मिलने वाले रूपए कैंसर की बीमारी से जूझ रहे बच्चो, बूढो के इलाज के लिए दान कर दिया गया था, जैसा कि हम सब जानते है सुनील दत्त की पत्नी नरगिस दत्त की मृत्यु भी कैंसर की बीमारी की वजह से 3 मई 1981 को हुई थी उनका इलाज भी विदेश मे ही हुआ था ! “दर्द का रिश्ता” एक ऐसे डॉ० दंपति की कहानी है जो विदेश मे नौकरी करते है पति डॉ०रविकान्त शर्मा कैंसर हॉस्पिटल में डॉ०है, और पत्नी डॉ अनुराधा ब्लड कैंसर पर रिसर्च करती है ! रिसर्च की वजह है साधन के अभाव मे डा०अनुराधा ने ब्लड कैंसर से हारकर मरते हुए अपने युवा भाई से वादा किया था कि वह ब्लड कैंसर पर रिसर्च कर के ऐसी दवा ऐसा बेहतर इलाज तलाश करेगी की फिर कोई ब्लड कैंसर से नही मरेगा ! फिल्म जैसे जैसे आगे बढती है फिल्म के आगे बढने के साथ डॉ० रविकान्त शर्मा का देश प्रेम सामने आता है जो कि अमूमन सुनील दत्त की अपनी पीडा मालूम पडती है जब डा० रविकान्त अपनी सेवा भारत मे देने के लिए अमेरिका मे अपनी नौकरी से स्थिपा देकर पत्नी डा०अनुराधा के साथ भारत आना चाहते है किन्तु भारत मे अपने शोध के लिए अमेरिका जैसी सुविधाओ के अभाव की बात कह कर पत्नी भारत आने से मना कर देती है, पर डा०रविकान्त का देश प्रेम उन्हे भारत आने से रोक नही पाता किन्तु भारत आकर अपनी सेवा देने के खामियाजे के रूप मे डा० रविकान्त को अपनी डा० पत्नी को तलाक देना पडता है !
भारत आकर डा० रविकान्त टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल बाम्बे मे ज्वाईन करते है जब उस वक्त एक हजार तरह का अभाव उन्हे वहाँ दिखाई दे रहा था जिसको खत्म करने के लिए डा० रविकान्त ने अपनी पूरी ताकत झोक दिया पर खत्म न कर पाए उस अभाव को और इस फिल्म के आखिर मे डा० रविकान्त द्वारा कहा गया भीतर तक कचोटने वाला वह संवाद आज भी कानो मे गूँजता है यथा ...“ मैने तो अपनी बेटी खुश्बू को बचा लिया ब्लड कैंसर की बीमारी से यहा अमेरिका उसे इलाज के लिए ले आकर पर हमारे देश मे न जाने कितनी खुश्बू को उनके माता पिता बचाना चाहते होगे पर समुचित इलाज के अभाव मे ..नही बचा पाते.......काश की मेरे देश मे भी मेडिकल की इतनी फैसिलिटी इतनी सुविधा हो जाए कि किसी मा बाप को अपनी खुश्बू को विदेश लाने की जरूरत ही न पडे ”
इस फिल्म के बनने के वर्ष पर हम सब अगर गौर करे तो वर्ष 1982 का मतलब है आज से 36 साल पहले भारत मे कैंसर के समुचित इलाज का जो अभाव था वह आज भी ज्यो का त्यो है यथावत, तब भी अमीर का इलाज विदेश मे होता था और गरीब समुचित व्यवस्था से मरहुम भारत के किसी अभावग्रस्त कैंसर हॉस्पिटल मे दम तोडता था आज भी तोडता है ! यह फिल्म निश्चित रूप से न्यूयोर्क अमेरिका मे अपनी पत्नी के इलाज के समय सुनील दत्त साहब के भीतर उभरी उस करूण भावना का सचित्र रूपरेखा है जो यह सोच रही थी कि काश हमारे भी देश मे हमारे भी भारत मे सुविधा समपन्न कैंसर हॉस्पिटल्स हो और अमीर गरीब सबका वहाँ एक साथ इलाज हो, काश मेरे भी देश मे कोई गरीब कैंसर के चलते दम न तोडे ..... क्योकि अपनी आँख के सामने किसी अपने को इलाज के अभाव मे मरते देखना सबसे बडा दुखदाई होता है जो दत्त साहब देख चुके थे अपनी पत्नी की मौत के रूप मे !
आज हमारे आस पास गली कूँचो मे हमारे हम सबके देश भारत में न मन्दिरों की कमी है और न ही मस्जिदों की, मेरे खयाल से तो दुनिया के सबसे शक्तिशाली ईश्वर एवम अल्लाह भी शायद भारत में ही रहते होंगे, फिर हमारे देश मे स्वास्थ्य के प्रति इतनी लापरवाही क्यो आज भी हमारे देश मे गरीब कैंसर जैसी बीमरी को अपनी मौत मानकर मौत से पहले इलाज के अभाव मे मरने को क्यो तैयार हो जाता है ?
इलाज के लिए अमीरो को अपने देश की चिकित्सा व्यवस्था पर विश्वास क्यो नही है ; इस देश का अमीर
अपना इलाज करवाने विदेश ही क्यों जाता है ?
जी हां... यह एक बडा सवाल है जो हमारे देश की चिकित्सा व्यवस्था के सच की पोल खोलता है और हमे यह समझाने की जुगत करता है कि :
“ शरीर में रोगों का इलाज विज्ञान द्वारा होता है, और भारत विज्ञान के क्षेत्र में पिछड़ा देश है वरना आजादी के इतने सालो बाद भी लोगो को कैंसर के इलाज के लिए विदेश नहीं जाना पड़ता.....ना ही सामान्य एवम गरीब परिवार के मरीज सुविधा के अभाव मे असमय मरने को मजबूर होते .............
वर्तमान मे भारत दुनिया का सबसे युवा देश जरूर है जानती हू दुनिया मे सबसे ज्यादे युवा भारत मे है पर ऐसे युवावो के होने का क्या फायदा जिनकी ना विज्ञान मे रूचि है, ना ही आविस्कार मे दिलचस्पी, ना ही विज्ञान के विज्ञान के क्षेत्र में नयी खोज नए नए रिसर्च मे ही कोई जागरूकता है ! जो जागरूक है वह बेहतर पैकेज पर विदेश मे जाकर अपनी सेवा दे रहे है, कभी कभी यह सोचने पर मजबूर होती हूँ कि भविष्य मे अगर हम लोगों को ऐसी बीमारी हो गयी तो हमारा मरना तो तय है, क्योकि हममे से 85 Percent भारतीयों की परिस्थिति विदेश जाकर इलाज कराने की नही है !
दरअसल हमारे देश मे आज अच्छे अस्पताल, अच्छे स्कूल, बेहतर इलाज इनकी ओर वैज्ञानिक दृष्टिकोण की जरूरत है क्योकि आज देश मे सामान्य आदमी ज्यादा परेशान है लेकिन हम मन्दिर मस्जिद में खुद को बाँटकर लडे जा हैं।
धर्म, जाति, गोत्र, मन्दिर, मस्जिद, चर्च, गुरूद्वारे के लिए कटने मरने वालो एक निरा कलमकार होने के नाते मै आप सबसे एक बात पूछना चाहती हूँ :
आप सब अपने देश समाज के विकास के लिए अपनी खुद की तरक्की के लिए कब सोचोगे ....???
कब एहसास होगा आप आप सभी को कि “दुनिया के सबसे युवा देश मे ही आखिर सबसे ज्यादे बेकार, बेगार, एवम बेरोजगार युवाओं की संख्या क्यो है ??
=================================
क्रमश:
Comments
Post a Comment