मै गुजारिश करना चाहती हूँ भारत सरकार से बच्चों के चरित्र निर्माण को ध्यान में रखते हुए सरकारी लागत से भारत सरकार की तरफ से वर्ष में एक या दो ऐसी हिंदी फिल्मों का निर्माण कराया जाए जो देश के बच्चो के चरित्र निर्माण में सहायक सिद्ध हो एवं उनके भीतर राष्ट्र भक्ति का बीज बोएं ! आज के प्रत्येक सफल हिंदी सिनेमा निदेशक से भी यही गुज़ारिश है कृपया साल में कोई एक ही फिल्म बनाये बच्चों के लिए पर बनाये जरूर क्यूंकि आज के बच्चे हमारे कल के भारत की तक़दीर है, सुनहरा भविष्य है, ! ============== क्रमशः

वर्तमान हिंदी सिनेमा जगत में क्यों नहीं बनाई जा रही है
अब बच्चों के चरित्र निर्माण को ध्यान में रखकर फिल्में ?
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भारत में चिट्ठियों की कहानी अर्चिता की जुबानी श्रृंखला के अंतर्गत वर्तमान समय के हिंदी सिनेमा निर्देशकों के नाम मेरा एक पैगाम :
"आखिर कहां गया हिंदी सिनेमा और घर का वह माहौल जब बचपन में देशभक्ति और देश की गौरव गाथा का पाठ हम बच्चो को सहजता के साथ कण्ठस्थ करा दिया जाता था ?
बचपन का वह वाकया आज 25 साल बाद भी अक्षरशह याद है माता पिता दोनों शिक्षित किन्तु पिता के पास काम के चलते समय का अभाव और हम चार भाई बहन माँ के अनुशासन और संयुक्त परिवार वाले वातावरण में बड़े हो रहे थे, हमारे घर में मनोरंजन के लिए फिलिप्स की एक रेडियो,आॅस्कर कम्पनी की एक ब्लैक एण्ड ह्वाईट टी० वी०, एक टेप रिकार्डर था ।
रेडियो बी०बी०सी० लंदन न्यूज सुनने के लिए था, टेप रिकार्डर पर मां कैसेट के माध्यम से राष्ट्रभक्ति से ओत- प्रोत गाने सुनवाया करती थी, उस मोटे वाले कैसेट की खूबसूरती आज भी आंखो में कैद है, टी०वी० का प्रयोग हिन्दी/इंग्लिस बुलेटिन के लिए होता था जिसे हम बच्चों को बुलाकर दिखाया जाता था, बाकी फिल्मे और सिरियल हम बच्चों के लिए निषेध थीं, किन्तु महीने दो महीने पर VCR मंगवाया जाता घर के दरवाज़े पर बरामदे में  VCR लगाया जाता साम 4 बजे VCR पर कोई एक देशभक्ति की पिक्चर चलाई जाती यह पिक्चर सिर्फ हम घर के बच्चे ही नहीं बल्कि आस पड़ोस के हमारे दोस्त भी हमारे साथ देखते थे ।
झांसी की रानी, उपकार, शहीद, फिर सुबह होगी, फर्ज, महात्मा गांधी, पूरब पश्चिम, बार्डर, प्रहार, तिरंगा, हकीकत, जागृति लगायत दर्जनों फिल्में बचपन मे हमने देखा है कोई सक नहीं कि : बचपन की इन फिल्मों ने दो सौ प्रतिशत हमारे चरित्र का निर्माण भी किया है । यही वह फिल्में थीं जिनके माध्यम से बचपन मे हमने अपने देश का इतिहास, भूगोल, जाना, वीरों के त्याग और बलिदान से परिचित हुए, और जाति-धर्म को भूलकर एक होकर रहने में शक्ति है यह जाना ।
आज की डेट में जब पिरियाडिकल, हिस्टाॅरिकल फिल्में खूब बन रही हैं उनका आधार क्या है प्रेम ? नायक, नायिका के बीच का प्रेम ? ऐसी कहानी जिस पर तलवार खिंच रही है, आपसी बैर बढ़ रहा है और सच कहूं तो देखने लायक कोई कहानी भी नही होती ऐसी फिल्मो मे ! हमारे देश के रणबांकुरों को, हमारे ऐतिहासिक चरित्र को साधारण नायक - नायिका बनाकर जाने कौन सा संदेश दिया जा रहा है हमारी नई पीढ़ी के नौनिहालों को ..??
मुझे याद है आज भी बचपन मे देखी गई राष्ट्र भक्ति से ओत प्रोत फिल्म " जागृति " 1954 मे बनी यह फिल्म 1996 में भी मेरे भीतर अपने राष्ट्र के प्रति त्याग का बीज बो रही थी, भारत के कंण-कण मे व्याप्त कुर्बानी को बयान कर रही थी ' इस फिल्म का वह एक गाना जिसे हेमन्त दा के संगीत निर्देशन मे कवि प्रदीप ने बहुत कुशलता पूर्वक गाया है आप सब पढिए :

""आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झाँकी हिंदुस्तान की
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की
वंदे मातरम, वंदे मातरम
उत्तर में रखवाली करता पर्वतराज विराट है
दक्षिण में चरणों को धोता सागर का सम्राट है
जमुना जी के तट को देखो गंगा का ये घाट है
बाट-बाट में हाट-हाट में यहाँ निराला ठाठ है
देखो ये तस्वीरें अपने गौरव की अभिमान की
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती हैं बलिदान की
वंदे मातरम, वंदे मातरम
ये हैं अपना राजपूताना नाज़ इसे तलवारों पे
इसने सारा जीवन काटा बरछी तीर कटारों पे
ये प्रताप का वतन पला हैं आज़ादी के नारों पे
कूद पड़ी थी यहाँ हज़ारों पद्मिनियाँ अंगारों पे
बोल रही है कण कण से कुरबानी राजस्थान की

इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की
वंदे मातरम, वंदे मातरम
देखो मुल्क मराठों का यह यहाँ शिवाजी डोला था
मुग़लों की ताकत को जिसने तलवारों पे तोला था
हर पर्वत पे आग जली थी हर पत्थर एक शोला था
बोली हर-हर महादेव की बच्चा-बच्चा बोला था
शेर शिवाजी ने रखी थी लाज हमारी शान की
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की
वंदे मातरम, वंदे मातरम
जलियाँवाला बाग ये देखो यही चली थी गोलियाँ
ये मत पूछो किसने खेली यहाँ खून की होलियाँ
एक तरफ़ बंदूकें दन दन एक तरफ़ थी टोलियाँ
मरनेवाले बोल रहे थे इन्कलाब की बोलियाँ
यहाँ लगा दी बहनों ने भी बाजी अपनी जाbन की
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की
वंदे मातरम, वंदे मातरम
ये देखो बंगाल यहाँ का हर चप्पा हरियाला है
यहाँ का बच्चा-बच्चा अपने देश पे मरनेवाला है
ढाला है इसको बिजली ने भूचालों ने पाला है
मुट्ठी में तूफ़ान बंधा है और प्राण में ज्वाला है
जन्मभूमि है यही हमारे वीर सुभाष महान की
इस मिट्टी से तिलक करो ये धरती है बलिदान की
वंदे मातरम, वंदे मातरम !!""

इस गाने को पढ़ने के बाद क्या अपने राष्ट्र के प्रति सम्मान का भाव नहीं जागा आप सबके मन मे ?
मै आग्रह करती हूं फिल्म निदेशकों से कृपया साल मे एक ही कोई ऐतिहासिक फिल्म बनाए पर नई पीढ़ी के हमारे बच्चों को ध्यान मे रखकर उनके लिए भी फिल्म बनाए ताकि उनके चरित्र निर्माण मे वह फिल्म सहायक सिद्ध हो गाॅसिप में बने रहने तक ही अपनी जिम्मेदारी से थोड़ा उपर उठने की जहमत उठाएं। मै आग्रह करती हूं भारत की क्षत्रिय सेना "करणी सेना" से कृपया आप अपना जोश , अपनी ताक़त उस समय भी प्रयोग में लाएं जब कोई खिलजी जैसा हमारे बीच का ही हमारी 4 साल लगायत 34 साल की बेटियों का जबरिया रेप करता है,
करणी सेना सनद हो आप को दरिंदगी की शिकार हमारी, हमारे देश की, लाखों-लाख बेटियां प्रतीक हैं "अपने सतित्व की रक्षा हेतु जौहर ज्वाला में प्रवेश कर जाने वाली उस माता पद्मीनी की" जिसने एक राक्षस से अपने देह, और अपने राष्ट्र के स्वाभाविमान की रक्षा हेतु कभी जौहर किया था !
भारत की करणी सेना आपको कसम है आप सब की देवी माता पद्मिनी की कि आज की तारीख़ से भारत की किसी बेटी पर किसी पापी की दरिंदगी नही बरपेगी अगर बरपी तो आप अपनी राजपूतानी तलवारों से उस पापी राक्षस की गरदन उतारेंगे ।
हां अगर ऐसा नहीं कर सकते तो आज ही अपनी तलवार फेंक दिजिए क्योंकि 13वीं सदी से लगायत 21 सदी तक भारत की पद्मिनियों पर लगातार खिलजी का आतंक जारी हैं आंतरिक खिलजी का ।
मै गुजारिश करना चाहती हूँ भारत सरकार से बच्चों के चरित्र निर्माण को ध्यान में रखते हुए सरकारी लागत से भारत सरकार की तरफ से वर्ष में एक या दो ऐसी हिंदी फिल्मों का निर्माण कराया जाए जो देश के बच्चो के चरित्र निर्माण में सहायक सिद्ध हो एवं उनके भीतर राष्ट्र भक्ति का बीज बोएं !
आज के प्रत्येक सफल हिंदी सिनेमा निदेशक से भी यही गुज़ारिश है कृपया साल में कोई एक ही फिल्म बनाये बच्चों के लिए पर बनाये जरूर क्यूंकि आज के बच्चे हमारे कल के भारत की तक़दीर है, सुनहरा भविष्य है, आज जैसा बच्चों का चरित्र निर्माण होगा आने वाले समय में देश की तस्वीर एवं तकदीर वैसी ही होगी !
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क्रमशः

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