खबर है कि साउथ कोरिया में जिस दिन करीब छः लाख बच्चे विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा देने जा रहे थे तो सरकार ने वहाँ के सारे दफ्तर एक घंटे विलम्ब से खोले ताकि सड़क पर यातायात की असुविधा न हो. डेढ़ सौ के आसपास विमानों को या तो रद्द कर दिया गया या फिर उन्हें डाइवर्ट कर दिया गया. जो उड़े भी उन्हें सख्त निर्देश दिए गए कि वह आसमान में इतना ऊपर उड़ें कि उनकी आवाज से नीचे अंग्रेजी की श्रवण परीक्षा दे रहे क्षात्रों को बाधा नहीं पहुंचे ! हमारे यहाँ जब इम्तहानों के दिन होते हैं तो हम जगराता करते हैं. रात भर भौड़े गीतों की पैरोडी मइया के चरणों में अर्पित करते हैं. गला लहरा - लहरा कर ढोलक की थाप पर रामचरित मानस का अखंड पाठ करते हैं और सुबह पांच बजे ही बड़े लाउडस्पीकर से दूर तक जाने वाली आवाज में अजान करते हैं. हम आध्यात्मिक लोग हैं हमें बच्चों की पढ़ाई पर ज्यादा तवज्जो नहीं देना होता है. स्कूल के अगल - बगल मंदिर और मधुशाला बनाने की कोशिश करते हैं जिससे उनके आध्य्यात्मिक विकास में बाधा न पहुंचे ! हम भारतीय इम्तेहान के दिन केवल सरकार के भरोसे नहीं रहते. हम दफ्तर से पूरे दिन की छुट्टी लेते हैं और पल - पल बच्चों का हाल स्वयं लेते हैं, किसी भी बाधा को पार करते हुए. हम अपनी जान पर खेल कर भी अपने बच्चों के भविष्य के साथ खूब खेलते हैं ! यह सिर्फ हमीं कर सकते हैं, साउथ कोरिया के बस की बात कहाँ?
खबर है कि साउथ कोरिया में जिस दिन करीब छः लाख बच्चे विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा देने जा रहे थे तो सरकार ने वहाँ के सारे दफ्तर एक घंटे विलम्ब से खोले ताकि सड़क पर यातायात की असुविधा न हो. डेढ़ सौ के आसपास विमानों को या तो रद्द कर दिया गया या फिर उन्हें डाइवर्ट कर दिया गया. जो उड़े भी उन्हें सख्त निर्देश दिए गए कि वह आसमान में इतना ऊपर उड़ें कि उनकी आवाज से नीचे अंग्रेजी की श्रवण परीक्षा दे रहे क्षात्रों को बाधा नहीं पहुंचे !
हमारे यहाँ जब इम्तहानों के दिन होते हैं तो हम जगराता करते हैं. रात भर भौड़े गीतों की पैरोडी मइया के चरणों में अर्पित करते हैं. गला लहरा - लहरा कर ढोलक की थाप पर रामचरित मानस का अखंड पाठ करते हैं और सुबह पांच बजे ही बड़े लाउडस्पीकर से दूर तक जाने वाली आवाज में अजान करते हैं. हम आध्यात्मिक लोग हैं हमें बच्चों की पढ़ाई पर ज्यादा तवज्जो नहीं देना होता है. स्कूल के अगल - बगल मंदिर और मधुशाला बनाने की कोशिश करते हैं जिससे उनके आध्य्यात्मिक विकास में बाधा न पहुंचे !
हम भारतीय इम्तेहान के दिन केवल सरकार के भरोसे नहीं रहते. हम दफ्तर से पूरे दिन की छुट्टी लेते हैं और पल - पल बच्चों का हाल स्वयं लेते हैं, किसी भी बाधा को पार करते हुए. हम अपनी जान पर खेल कर भी अपने बच्चों के भविष्य के साथ खूब खेलते हैं !
यह सिर्फ हमीं कर सकते हैं, साउथ कोरिया के बस की बात कहाँ?
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