सती अनुसुईया पुत्र दत्तात्रेय जी की कहानी तो हम सभी ने अपने बचपन मे हजारो बार सुना है पर ब्राह्मण गोत्र मे जन्मे ऋषिवर अत्रि एवम माता सती अनुसुईया के पुत्र दत्तात्रेय जी ने अपना “कौल दत्तात्रेय” नाम से गोत्र चलाया था यह तथ्य मात्र 36 घण्टो के भीतर जानने को मिला ...! वर्तमान समय मे यह जाति, धर्म, गोत्र, का राजनीतिक पैतरा इस लोकतान्त्रिक देश के लिए शुभ संकेत नहीं है ! 18वी शताब्दी मे राजारामोहन राय ने जिन कुप्रथाओ को समाज से खत्म करने की वकालत की थी उनमे से जाति प्रथा एवम छुआछूत प्रथा भी एक जघन्य कुप्रथा थी, चिन्ता का विषय है कि : आज मात्र सत्ता पाने के लिए नेता दूबारा जाति, धर्म, गोत्र, की चिन्गारी को हवा देकर हमारे इस सुन्दर आजाद गुलिसिता को, हमारे इस अमनो - चैन, तरक्की पसन्द, देश को बर्बादी की तरफ क्यो ले कर जा रहे है ? क्यो देश से बडा सत्ता का सुख हो गया है इनके लिए ? जब दुनिया तरक्की की राह पर है तब हमारे देश को राजनीति के स्वार्थ तरक्की की राह पर चलने से रोकने का प्रयास क्यो कर रहे है ..? क्या आजादी के मात्र 70 साल के भीतर ही हम सब यह सत्य भूल गए कि : जब हम जाति, धर्म, गोत्र, से उपर उठे और अपनी सोच को विकसित किया तब जाकर भारत माता के पैरो से गुलाबी की बेडिया काट पाए थे, देश को सैकड़ों वर्षों की गुलामी की दास्तान से मुक्त करा पाए थे ? क्या हमे यह भी भूल गया कि : जब - जब यह देश सत्ता, गद्दी, राजसुख, भोगने के लिए जाति, गोत्र, धर्म, का छद्म मुखौटा पहना है तब तब देश को भारी चोट खानी पडी है ? मात्र राजनीति एवम सत्ता सुख के लिए अगर कोई सफेदपोश चेहरा इस देश मे पुन: 18वी शताब्दी मे समाप्ति का दौर देख चुकी कुप्रथाओ का स्वागत करते हुए जाति, धर्म, गोत्र, वाले छुद्र हथकण्डो का प्रयोग करता भी है तो उसको सनद होना चाहिए उस समय भी भारत मे बाबा “दादा जी” का गोत्र नाती द्वारा प्रयोग करने का चलन रहा है, नाना जी का गोत्र नही ! वैसे भारत का वर्तमान संविधान भी इस बात की गवाही देता है कि : भारत एक पितृसत्ता प्रधान देश है ! ================================= वैधानिक चेतावनी : किसी उन्नत राष्ट्र की सम्प्रभुता को, आजादी को, एकता - अखण्डता को यह जाति, धर्म, गोत्र, की विषबेल उसी प्रकार नष्ट करने का वाहक बनती है अर्चिता जिस प्रकार एक स्वस्थ्य शरीर नष्ट हो जाता है क्षय रोग की चपेट मे आ जाने से ! ===================== कलम से : अर्चिता

सती अनुसुईया पुत्र दत्तात्रेय जी की कहानी तो हम सभी ने अपने बचपन मे हजारो बार सुना है पर ब्राह्मण गोत्र मे जन्मे ऋषिवर अत्रि एवम माता सती अनुसुईया के पुत्र दत्तात्रेय जी ने अपना “कौल दत्तात्रेय” नाम से गोत्र चलाया था यह तथ्य मात्र 36 घण्टो के भीतर जानने को मिला ...! वर्तमान समय मे यह जाति, धर्म, गोत्र, का राजनीतिक पैतरा इस लोकतान्त्रिक देश के लिए शुभ संकेत नहीं है !
18वी शताब्दी मे राजारामोहन राय ने जिन कुप्रथाओ को समाज से खत्म करने की वकालत की थी उनमे से जाति प्रथा एवम छुआछूत प्रथा भी एक जघन्य कुप्रथा थी,
चिन्ता का विषय है कि : आज मात्र सत्ता पाने के लिए नेता दूबारा जाति, धर्म, गोत्र, की चिन्गारी को हवा देकर हमारे इस सुन्दर आजाद गुलिसिता को, हमारे इस अमनो - चैन, तरक्की पसन्द, देश को बर्बादी की तरफ क्यो ले कर जा रहे है ?
क्यो देश से बडा सत्ता का सुख हो गया है इनके लिए ?
जब दुनिया तरक्की की राह पर है तब हमारे देश को राजनीति के स्वार्थ तरक्की की राह पर चलने से रोकने का प्रयास क्यो कर रहे है ..?
क्या आजादी के मात्र 70 साल के भीतर ही हम सब यह सत्य भूल गए कि : जब हम जाति, धर्म, गोत्र, से उपर उठे और अपनी सोच को विकसित किया तब जाकर भारत माता के पैरो से गुलाबी की बेडिया काट पाए थे, देश को सैकड़ों वर्षों की गुलामी की दास्तान से मुक्त करा पाए थे ?
क्या हमे यह भी भूल गया कि : जब - जब यह देश सत्ता, गद्दी, राजसुख, भोगने के लिए जाति, गोत्र, धर्म, का छद्म मुखौटा पहना है तब तब देश को भारी चोट खानी पडी है ?
मात्र राजनीति एवम सत्ता सुख के लिए अगर कोई सफेदपोश चेहरा इस देश मे पुन: 18वी शताब्दी मे समाप्ति का दौर देख चुकी कुप्रथाओ का स्वागत करते हुए जाति, धर्म, गोत्र, वाले छुद्र हथकण्डो का प्रयोग करता भी है तो उसको सनद होना चाहिए उस समय भी भारत मे बाबा “दादा जी” का गोत्र नाती द्वारा प्रयोग करने का चलन रहा है, नाना जी का गोत्र नही !
वैसे भारत का वर्तमान संविधान भी इस बात की गवाही देता है कि : भारत एक पितृसत्ता प्रधान देश है !
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वैधानिक चेतावनी : किसी उन्नत राष्ट्र की सम्प्रभुता को, आजादी को, एकता - अखण्डता को यह जाति, धर्म, गोत्र, की विषबेल उसी प्रकार नष्ट करने का वाहक बनती है अर्चिता जिस प्रकार एक स्वस्थ्य शरीर नष्ट हो जाता है क्षय रोग की चपेट मे आ जाने से !
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कलम से :
अर्चिता

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“ सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय । सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय ।” भावार्थ :- यदि सारी धरती को कागज़ मान लिया जाए , सारे जंगल - वनों की लकड़ी की कलम बना ली जाए तथा सातों समुद्र स्याही हो जाएँ तो भी हमारे द्वारा कभी हमारे गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते है ।हमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है अर्ची, गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है । इस जगत मे बहुत कम ऐसे गुरू हुए है जिनको उनकी अपनी सफलता के साथ साथ ही उनके अपने शिष्य की सफलता से पहचान मिली हो ऐसे ही भाग्यशाली गुरू रहे है “रमाकान्त आचरेकर” जिन्हे पूरी दुनिया सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट कोच “ क्रिकेट गुरू ” के रूप मे जानती है और इसी रूप मे ही सदैव याद भी रखना चाहती है ! ईश्वर के साम्राज्य मे पहुँचने पर आज गुरू आचरेकर का स्वागत नाराण ने निश्चित तौर पर यही कह कर किया होगा “ क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के गुरू रमाकान्त आचरेकर जी आईए आपका स्वागत है !!” दिवंगत आचरेकर जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !! ================================ Bhardwaj@rchita 03/01/2019

माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति अयोध्याकाण्ड जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठा] जानि गौरि अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।

गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं. गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं. गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं. सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष सर्वोच्च ब्रह्म है अपने उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करती हूँ, कोटि-कोटि प्रणाम करती हूं !! साभार : भारद्वाज अर्चिता