20 November अंतर्राष्ट्रीय बाल दिवस
बढ़ते एकल परिवार, बढ़ते बाल अपराध,
कैसे तय हो बच्चों की सुरक्षा ??
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अंतर्राष्ट्रीय बाल दिवस 20 नवंबर पर अर्चिता की जुबानी चिट्ठियों की कहानी श्रृंखला के अंतर्गत आज अर्चिता का एक खुला पत्र "एकल भारतीय परिवारो के नाम :
"बच्चो को भगवन का रूप माना जाता है, भविष्य का महान व्यक्ति माना जाता है, साथ ही साथ किसी भी राष्ट्र का भविष्य एवं राष्ट्रीय संपत्ति भी माना जाता है, इसलिए वैयक्तिक रूप से माता पिता, अभिभावक, परिवार एवं समाज का यह नैतिक कर्तव्य बनता है कि : बच्चों को स्वस्थ, सामाजिक, सांस्कृतिक, संयुक्त पारिवारिक, वातावरण में परवरिश दी जाए, बड़ा होने का औसर दिया जाए, जिससे बच्चों को जिम्मेदार नागरिक बनने, शारीरिक, मानसिक, नैतिक रूप से स्वस्थ रहने, विकसित होने के लिए भरपूर माहौल मिले !
सिर्फ मैं ही नहीं पूरी दुनिया आज चिंतित है बच्चों की सुरक्षा को लेकर, बच्चों के बीच बढ़ती हिंसा और अपराध को लेकर, संपूर्ण विश्व में आज बच्चों की सुरक्षा तय न हो पाना बहुत गंभीर संकट है ! भारत जैसे देशों के परिप्रेक्ष्य में मैं इस संकट के केंद्र में वर्ष 2000 से द्रुतगति से बढ़ते Nuclear Family culture "एकल परिवार" को कहीं ना कहीं बड़ा दोषी, बड़ी वजह मानती हूं, हम सब महसूस कर रहे हैं पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित हो भारतीय समाज बहुत तेजी से अपनी मौलिक व्यवस्थाओं में परिवर्तन ला रहा है, संयुक्त परिवार जो कभी भारतीय सामाजिक व्यवस्था की नींव हुआ करते थे, आज पूरी तरह विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके हैं, इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि बदलते आर्थिक परिवेश में लोगों की प्राथमिकताएं मुख्य रूप से प्रभावित हो रही हैं, मनुष्य का एकमात्र ध्येय केवल व्यक्तिगत हितों की पूर्ति करना ही रह गया है, अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए वह अपने परिवार के साथ को छोड़ने से पीछे नहीं रह रहा इसके अलावा व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बढ़ती मांग भी परिवारों के टूटने का कारण बनती जा रही है,भौतिकवाद से ग्रसित आज की भागती दौड़ती जीवनशैली की विडंबना ही यही है कि परिवारों का स्वरूप जितना छोटा होता जा रहा है, व्यक्ति के पास अपने परिवार को देने के लिए समय में भी उतनी ही कमी आने लगी है !
कुछ समय पहले तक जब हमारे परिवार का आर्थिक जरूरतें सीमित हुआ करती थीं, हमारे परिवारों के स्वरूप कितने ही विस्तृत क्यों न होते रहे हो पर उसके पास अपने परिवार के लिए पर्याप्त समय अवश्य होता था, लेकिन अब प्रतिस्पर्धा के युग में एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ के चलते ऐसे हालात पैदा हो गए हैं कि पारिवारिक सदस्यों की उपयोगिता और उनका महत्व भी मनुष्य को गौण लगने लगा है !
मैं यह भी स्वीकार करती हूं कि :
आर्थिक स्वावलंबन और आत्म-निर्भरता कुछ ऐसे कारण हैं जिनके परिणामस्वरूप संयुक्त परिवार की संख्या में लगातार कमी आने लगी है, पहले जहां पारिवारिक सदस्य अपनी हर छोटी-मोटी जरूरतों के लिए एक-दूसरे पर निर्भर करते थे, वहीं अब लोग पूर्ण रूप से खुद पर ही आश्रित होने लगे हैं, साथ ही बढ़ती महंगाई और सहनशीलता की कमी भी इस विघटन के लिए उत्तरदायी हैं, ऐसी परिस्थितियों के फलस्वरूप जो बच्चा वर्ष 2000 में पैदा हुआ होगा जिसकी उम्र आजकी तारीख में 18 साल है अगर हम उस बच्चे से बात करे तो पता चलता है वह 18 वर्षीय युवा बहुत ज्यादा अकेला एवं कुंठित है तुलना में उस युवा के जिसका जन्म वर्ष 1981 में एक संयुक्त परिवार में हुआ था, जिसकी परवरिश संयुक्त परिवार में हुई थी, आज की तारीख में जिसकी उम्र 36 वर्ष है !
लोगों की संकीर्ण होती मानसिकता ऐसे छोटे-छोटे और सीमित परिवारों के उद्भव में काफी सहायक होती हैं , सामुदायिक हितों की बात ही छोड़िए, अपने माता-पिता की जिम्मेदारी भी बच्चों को बोझ लगने लगी है !
एकल परिवार से तात्पर्य केवल पति-पत्नी और उनके बच्चे से हैं, एकल परिवारों के प्रति बढ़ती दिलचस्पी के पीछे सबसे बड़ा कारण है पति-पत्नी दोनों अब आर्थिक रूप से स्वतंत्र रहना चाहते हैं, खुद से संबंधित किसी भी मसले में दूसरे व्यक्ति का हस्तक्षेप सहन नहीं, उनके इस अति महत्वाकांक्षी निर्णय का सबसे बड़ा नुकसान यही हैं कि वे परिवार की अखंडता और एकता पर बहुत गहरा प्रहार कर रहे हैं ! माता-पिता बड़े शौक से यह सोचकर अपने बच्चों का पालन पोषण और उनकी अच्छी शिक्षा की व्यवस्था करते हैं कि वृद्धावस्था में उनके बच्चे उन्हें सहारा देंगे, लेकिन अब हो इसका एकदम उलटा रहा
है, बच्चे काबिल बनने के बाद अपने अभिभावकों के बलिदान और प्रेम की परवाह किए बगैर उनसे अलग अपनी एक नई दुनियां बसा ले रहे हैं, जिसमें माता-पिता के प्रति भावनाओं और उत्तरदायित्वों के लिए कोई स्थान नहीं होता, कोई space नहीं होता ! एक-दूसरे से दूर रहने की वजह से पारिवारिक सदस्यों में आपसी मेलजोल की भावना भी कम होने लगी है,जिसकी देन है की बच्चे धीरे-धीरे अपने ही परिवार से कट रहे हैं, फलस्वरूप उन्हें अपने ही संबंधियों के सुख-दुख से कोई वास्ता नहीं रहा, पहले जो तीज-त्यौहार पूरा परिवार एक साथ हर्षोल्लास के साथ मनाया करता था, आज वह त्यौहार अलग-थलग रहकर अनमने ढंग से मनाया जाने लगा है ! पहले जहां पारिवारिक सदस्यों की उपस्थिति उत्सवों में चार-चांद लगाया करती थी, वह उत्सव मात्र एक औपचारिकता बन कर रह गए हैं अब ! जब तक खुशी सबके साथ मिलकर ना मनाई जाए उसका महत्व समझ में नहीं आता, लेकिन अब ऐसा हो पाना मुमकिन नहीं क्योंकि मनुष्य ने खुशी और गम के सभी रास्ते, जो उसके पारिवारिक सदस्यों तक पहुंचते थे खुद ही बंद कर दिए हैं परिणाम स्वरुप अब उसे अकेले ही हर परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है !
संयुक्त परिवारों के विघटन और एकल परिवारों के उद्भव का सबसे बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ता है परिवार के बच्चों को, नाती-पोतों के साथ समय व्यतीत करने का अरमान हर बुज़ुर्ग का होता है, साथ ही बच्चे भी अपने दादा-दादी के साथ समय बिताना पसंद करते हैं, लेकिन एकल परिवारों की बढ़ती संख्या परिवार के बच्चों को बड़ों के दुलार और स्नेह से महरूम रखने का कार्य करके खासतौर पर आज जब महिला और पुरुष दोनों ही बाहर कार्य करने जाते हैं और बच्चे घर में अकेले होते हैं, ऐसे में बड़ों के सहारे की आवश्यकता और बढ़ने लगी है,
आज की भागती-दौड़ती जीवन शैली को देखा जाए तो एकल परिवारों के केवल नुकसान ही नज़र आते हैं बच्चों के चरित्र, व्यक्तित्व, निर्माण के दृष्टिकोण से, परिवारों के टूटने से बच्चों में आक्रामक रुख अख्तियार करने, तनाव से भरी जीवन शैली, बाल अपराध, बच्चों के बीच दिन-ब-दिन बढ़ती असुरक्षा की भावना, बच्चों के साथ हो रही हिंसक घटनाये, शुभ संकेत नहीं है राष्ट्र के लिए एवं राष्ट्र के भविष्य हमारे बच्चों के व्यक्तित्व निर्माण के लिए !
हमारे , आप के , हम सबके, जीवन की शुरुआत से हर छोटी-बड़ी घटनाओं में केवल हमारा परिवार ही हमें एक मजबूत आधार प्रदान करता है, इस आधार के प्रति अगर अभी भी हम सतर्क न हुए तो इसमें कोई शक नहीं आने वाले दिनों में हमारी आपकी हमारे भविष्य, हमारे बच्चों की पहचान सीमित हो कर रह जाएगी ! संयुक्त परिवार में बच्चे अपने बड़ो की नज़र के सामने ज्यादा रहते हैं इसलिए उनके साथ हिंसक घटनाओं के घटने के चांस बहुत कम रहते हैं, साथ ही बच्चों में एकाकीपन के side effect जन्म नहीं लेते है !!
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क्रमशः
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