दो - टूक, बेबाक, खरी - खरी,
भारद्वाज अर्चिता की कलम से :
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कुछ लोगों को पटेल जी की गगनचुंबी मूर्ति के अनावरण के साथ ही इस मूर्ति पर खर्च लागत एवं उस लागत से देश के गरीब मजदूर तबके के रोजी-रोटी उन्नति एवं भलाई की बहुत चिंता हो रही है ! उन्हें लग रहा है कि जितने खर्च में सरदार पटेल की गगन चुंबी मूर्ति बनाई  गई इतनी लागत अगर देश के गरीब तबके के विकास पर खर्च की गई होती तो भारत का हर गरीब परिवार श्रीमान बिल गेट्स के बगल में खड़ा होने की हैसियत में आ जाता ! मैं जानती हूं सरदार पटेल की मूर्ति पर जो पैसे खर्च हुए उन्हें उँगलियों पर गिना जाना संभव नहीं एवं
बुद्धिजीवियों एवं विपक्षियों के आंख नाक कान एवं दिल में suffocation ( घुटन ) पैदा करने के लिए वह बहुत अधिक है ! किंतु इन्हीं बुद्धिजीवियों एवं राजनीतिज्ञों से मैं भारद्वाज अर्चिता दिल दुखाने वाला 2-4 सवाल करना चाहती हूं ......???
:  जब कई 100 करोड़ की लागत से देवी मायावती दलित वर्ग की छद्म मसीहा भूतपूर्व मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश अपना निजी आवास बनवाती है ;
: जब अरबों रुपए खर्च करके लखनऊ में बेजा हाथियों की मूर्ति निर्मित करवाई जाती है;
: जब समस्त उ0प्र0 की क्षेत्रीय /नगरीय गरीब जनता से प्रत्येक वर्ष चंदा वसूल कर ₹250000000 इकट्ठा किए जाते हैं और उन रुपयों से देवी मायावती का 15 January को जन्मदिन मनाया जाता है ;
: जब ₹100000000   रुपयों गुथी माला " नोटों की माला " देवी मायावती जी को पहनाई जाती है;
: जब सैफई महोत्सव के नाम पर बॉलीवुड के स्टार्स को बुलाकर उनकी नाच देखने के लिए देश का, प्रदेश का, गरीबों के हक का, अरबों रुपया पानी की तरह लुटाया जाता है;
: जब हारी हुई विपक्षी पार्टी का एक सांसद अपने सांसद प्रोटोकॉल का उल्लंघन करते हुए मानक से अधिक पैसा खर्च करके चाइना लगाया विश्व के दर्जनों देशों का भ्रमण करता है;
: जब किसी राष्ट्रीय स्तर की पार्टी के अध्यक्ष का दामाद एवं जीजा पंजाब प्रांत के किसानों की कृषि योग्य उपजाऊ भूमि अपने राजनीतिक रसूख रिश्तेदारी के चलते एवं रिश्तेदारी से प्राप्त गरीबों के हक के गबन पैसों से खरीद कर गरीब किसानों एवं गरीबों की रोजी-रोटी का द्वार बंद कर देता है ;

मेरे बुद्धिजीवी मित्रों, कलमकारो, एवं देश के गरीब, दलित, दबे, कुचले, असहायो के छद्म सहाय / रहनुमा
: तब आपके हाथ में मेहंदी क्यों लग जाती है ?
: तब आपके मुंह में दही क्यों जम जाती है ?
: तब आपकी कलम को लकवा क्यों मार जाता है ?
: क्यों नहीं फूटते विरोध के स्वर तब आपके सौजन्य से ?
आपको पटेल की मूर्ति बनाने से, उस पर खर्च हुए पैसों से  चिढ़ हो रही है, खीझ हो रही है, इस देश के गरीब तबके की चिंता हो रही है, लेकिन मैं तो चाहती हूं : इस देश में पटेल ही क्यों मोहनदास करमचंद गांधी , नेहरू, चंद्रशेखर आजाद, सुभाषचंद्र बोस, भगत सिंह, लाल बहादुर शास्त्री, लाला लाजपत राय, राम प्रसाद बिस्मिल,रानी लक्ष्मी बाई, इंदिरा गांधी, आदि लोगों की भी गगनचुंबी मूर्ति बनाई जाए एवं विश्व को एहसास कराया जाए कि : भारत देश पर बलिदान होने वालों की, देश के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर देने वालों की इस देश की जनता  के दिल में एवं इस देश मे क्या स्थान है, कितना ऊंचा सम्मान है ???
कुछ लोग लिख रहे हैं कि : अगर पटेल जिंदा होते तो अपनी गगनचुंबी प्रतिमा देखकर बिना मौत मर जाते, इतनी आदर्श सोच एवं अभिव्यक्ति देने वाले कलमकारों से मैं एक बात कहना चाहती हूं : आजीवन कर्म पथ पर अडिग रहने हेतु परिवार को भी बिसरा देने वाले, पत्नी की मृत्यु समाचार से भी कर्म पथ पर विचलित ना होने वाले, आजादी के नाम पर विखंडित टुकड़ों में मिले खंड खंड खंडित भारत की 562 रियासतों का अपने साहस एवं दूरदर्शी दृष्टिकोण से भारत में विलय करने वाले लौह पुरुष सरदार पटेल आज की तारीख में अगर जिंदा होते तो देवी मायावती का सरकारी पैसों के घोटालों से बना  हजारा करोड़ी बंगलो, 100 करोड़ी हाथी मूर्ति, एवं बाबा लोहिया के मानस पुत्रों, समाजवाद के अजातशत्रुओ द्वारा आयोजित सैफई महोत्सव में गरीबों के पैसों से हो रहे मनोरंजन, एवं बहन मायावती के 25 करोड़ी माला वाले देश की मजलूम गरीब तबके के चंदे के रुपयों से मनाए जाने वाले सालाना जन्मदिन का जश्न देखकर मरते भले नहीं किन्तु अपनी इस 142 वी जयंती पर किसी अन्य प्लेनेट पर जाकर बस जरूर जाते !

कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
Content Writer , Blogger , 
कवि, ग़ज़ल कार , लेखक !

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“ सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय । सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय ।” भावार्थ :- यदि सारी धरती को कागज़ मान लिया जाए , सारे जंगल - वनों की लकड़ी की कलम बना ली जाए तथा सातों समुद्र स्याही हो जाएँ तो भी हमारे द्वारा कभी हमारे गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते है ।हमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है अर्ची, गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है । इस जगत मे बहुत कम ऐसे गुरू हुए है जिनको उनकी अपनी सफलता के साथ साथ ही उनके अपने शिष्य की सफलता से पहचान मिली हो ऐसे ही भाग्यशाली गुरू रहे है “रमाकान्त आचरेकर” जिन्हे पूरी दुनिया सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट कोच “ क्रिकेट गुरू ” के रूप मे जानती है और इसी रूप मे ही सदैव याद भी रखना चाहती है ! ईश्वर के साम्राज्य मे पहुँचने पर आज गुरू आचरेकर का स्वागत नाराण ने निश्चित तौर पर यही कह कर किया होगा “ क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के गुरू रमाकान्त आचरेकर जी आईए आपका स्वागत है !!” दिवंगत आचरेकर जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !! ================================ Bhardwaj@rchita 03/01/2019

माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति अयोध्याकाण्ड जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठा] जानि गौरि अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।

गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं. गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं. गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं. सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष सर्वोच्च ब्रह्म है अपने उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करती हूँ, कोटि-कोटि प्रणाम करती हूं !! साभार : भारद्वाज अर्चिता