"मरण को जिसने "वरा" है, उसने जीवन भरा है ," ============================== अपनी मृत्यु से पहले अपनी अंतिम कविता : ( पत्रोत्कण्ठित जीवन का विस बुझा हुआ ) मे महाप्राण ने उपरोक्त पंक्ति लिखकर मृत्यु मे भी जीवन की पुष्टि किया था, जीवन देखा था ! निराला को मैने बहुत पढ़ा,पढ़ने से ज्यादा मनन चिंतन किया, मेरे अनन्य प्रिय कवि, मेरे परम आदरणीय हैं महाप्राण , महाप्राण को जितना पढ़ा वह उतने ही गहरे होते गए, मैने इस गहराई को आत्मा के स्तर पर महसूस किया है, और इसमे डूबती चली गई ...वजह साफ थी : हिंदी साहित्य मे उस समय जब चाटुकारिता अपने चरम पर थी, निराला ने समाज की जड़ता खत्म करने का दुस्साहस किया, समाज को झकझोरने का काम किया, महाप्राण ने प्रकृति के कुंज-करीलों मे खोए प्रकृति के सौन्दर्य एवम प्रकृति के मानवीकरण मे डूबे हिंदी कविता संसार के उस दौर के मूर्धन्यों को कस के एक तमाचा जड़ा और समाज की तत्कालीन परिस्थिति पर लौटने का न्योता देते हुए बताया कि सौन्दर्य सिर्फ प्रकृति के आंचल मे ही नही है वरन समाज की विकृत कानी लड़की मे भी है जिसको उसकी मां "रानी" कह कर बुलाती है , निराला जी की कविता ( रानी और कानी ) इस सत्य की पुष्टि के लिए ज्वलंत उद्दाहरण हैं यथा : " मुँह पर चेचक के दाग, एक आंख की कानी , मां उसे बुलाती है "रानी" !!" जातिवादी संकीर्णता की दीवार को अपनी कविता के माध्यम से किस तरह महाप्राण निराला ने गिराने की पुरजोर कोशिश की है उसे उनकी कविता "गरम पकौड़ी गरम पकौड़ी" में उद्दाहरण स्वरुप देख सकते हैं हम यथा : गरम पकौड़ी गरम पकौड़ी तेरे लिए छोड़ी मैंने बब्भन की घी में तली कचौरी !! निराला ने अपने समय की तत्कालिक सत्ता में आई विकृति को भी अनदेखा नहीं किया बल्कि दो-दो हाथ करने की स्थिति में खड़े होकर सामने से ललकारा है यथा : अबे ! सुन बे ! गुलाब ? भूल मत जो पाई तूने खुशबू रंगो आब खून चूसा तूने खाद का अशिष्ट डाल पर इठलाता है कैपिटलिस्ट !?? निराला ने भाषा के छंद मुक्त होने का स्वर उस दौर में उठाया जब कई हिंदी के मूर्धन्य लेखक कवि साहित्य में व्याकरण निष्ठ भाषा की पैरवी के साथ अपनी जजमानी चलाने एवं बढ़ाने की जुगत में अनवरत लगे हुए थे ! व्याकरण निष्ठ भाषा के समर्थकों के लाख विरोध के बावजूद भी महाप्राण ने अपना स्वर मद्धम नहीं पड़ने दिया एवं पूरी निर्भीकता के साथ कहे : जब तक न चरण स्वच्छंद रहे घुंघरू के सुर मंद रहे !! "साहित्य में आदर्श सौंदर्य वर्णन" पाश्चात्य से लेकर पूर्व के साहित्य तक महाप्राण निराला से बड़ा कोई कुशल कवि चितेरा दूसरा नहीं पैदा हुआ आज तक ! दुनिया का प्रथम शोकगीत मानी जाने वाली उनकी जगत प्रसिद्ध रचना "सरोज स्मृति" में उन्होंने जिस तरह अपनी ही पुत्री सरोज के सौंदर्य का आदर्श वर्णन किया है वह पश्चिम के मांसल सौंदर्य वर्णन के महान कवि "Famous Poet Of Sensuousness " John Keats को भी गलत ठहरा देता है, यथा : श्रृंगार रहा जो निराकार रस कविता में उच्छवसित धार गाया स्वर्गीय प्रिया संग,भर प्राणों में नव राग रंग देख मुझे तू हंसी मंद ! होठों में बिजली सी अस्पंद !! कुछ लोग निराला जी पर मार्क्सवादी होने का आरोप भी लगाते हैं , ऐसे लोगों से मेरा इतना ही कहना है बंधुवर " राम की शक्ति पूजा " जैसी कालजई आस्तिक रचना देने वाला कवि कभी भी नास्तिक नहीं हो सकता ! हमारे समाज को संकीर्णता, जड़ता, की नींद से जगाने के लिए निराला जी ने अपनी आंखो पर क्रांति और नवचेतना का चश्मा चढ़ाया वह भी तत्कालीन परिवेश से जम कर दो - दो हाथ करते हुए ! मित्रों निराला होने का मतलब ही है काल जाई हो जाना ! क्रांति के कवि आदरणीय निराला जी को उनकी पुण्यतिथि पर मेरा कोटि-कोटि प्रणाम, शत-शत नमन । कलम से : भारद्वाज अर्चिता Blogger, Content Writer, ( गजल, कविता, लेख, ) 15/10/2018

"मरण को जिसने "वरा" है, उसने जीवन भरा है ,"
==============================
अपनी मृत्यु से पहले अपनी अंतिम कविता :
   ( पत्रोत्कण्ठित जीवन का विस बुझा हुआ )
मे महाप्राण ने उपरोक्त पंक्ति लिखकर मृत्यु मे भी जीवन की पुष्टि किया था, जीवन देखा था !
निराला को मैने बहुत पढ़ा,पढ़ने से ज्यादा मनन चिंतन किया, मेरे अनन्य प्रिय कवि, मेरे परम आदरणीय हैं महाप्राण ,  महाप्राण को जितना पढ़ा वह उतने ही गहरे होते गए, मैने इस गहराई को आत्मा के स्तर पर महसूस किया है, और इसमे डूबती चली गई ...वजह साफ थी :
हिंदी साहित्य मे उस समय जब चाटुकारिता अपने चरम पर थी, निराला ने समाज की जड़ता खत्म करने का दुस्साहस किया, समाज को झकझोरने का काम किया,  महाप्राण ने प्रकृति के कुंज-करीलों मे खोए प्रकृति के सौन्दर्य एवम प्रकृति के मानवीकरण मे डूबे हिंदी कविता संसार के उस दौर के मूर्धन्यों को कस के एक तमाचा जड़ा और समाज की तत्कालीन परिस्थिति पर लौटने का न्योता देते हुए बताया कि सौन्दर्य सिर्फ प्रकृति के आंचल मे ही नही है वरन समाज की विकृत कानी लड़की मे भी है जिसको उसकी मां "रानी" कह कर बुलाती है ,
निराला जी की कविता ( रानी और कानी ) इस सत्य की पुष्टि के लिए ज्वलंत उद्दाहरण हैं यथा :

                " मुँह पर चेचक के दाग,
                  एक आंख की कानी , 
                 मां उसे बुलाती है "रानी" !!"

जातिवादी संकीर्णता की दीवार को अपनी कविता के माध्यम से किस तरह महाप्राण निराला ने गिराने की पुरजोर कोशिश की है उसे उनकी कविता "गरम पकौड़ी गरम पकौड़ी" में उद्दाहरण स्वरुप देख सकते हैं हम यथा :

               गरम पकौड़ी गरम पकौड़ी
                    तेरे लिए छोड़ी मैंने
               बब्भन की घी में तली कचौरी !!

निराला ने अपने समय की तत्कालिक सत्ता में आई विकृति को भी अनदेखा नहीं किया बल्कि दो-दो हाथ करने की स्थिति में खड़े होकर सामने से ललकारा है यथा :

          अबे ! सुन बे ! गुलाब ?
          भूल मत जो पाई तूने खुशबू रंगो आब
          खून चूसा तूने खाद का अशिष्ट
         डाल पर इठलाता है कैपिटलिस्ट !??

निराला ने भाषा के छंद मुक्त होने का स्वर उस दौर में उठाया जब कई हिंदी के मूर्धन्य लेखक कवि साहित्य में व्याकरण निष्ठ भाषा की पैरवी के साथ अपनी जजमानी चलाने एवं बढ़ाने की जुगत में अनवरत लगे हुए थे ! व्याकरण निष्ठ भाषा के समर्थकों के लाख विरोध के बावजूद भी महाप्राण ने अपना स्वर मद्धम नहीं पड़ने दिया एवं पूरी निर्भीकता के साथ कहे :

                   जब तक न चरण स्वच्छंद रहे
                   घुंघरू के सुर मंद रहे !!

"साहित्य में आदर्श सौंदर्य वर्णन" पाश्चात्य से लेकर पूर्व के साहित्य तक महाप्राण निराला से बड़ा कोई कुशल कवि चितेरा दूसरा नहीं पैदा हुआ आज तक !
दुनिया का प्रथम शोकगीत मानी जाने वाली उनकी जगत प्रसिद्ध रचना "सरोज स्मृति" में उन्होंने जिस तरह अपनी ही पुत्री सरोज के सौंदर्य का आदर्श वर्णन किया है वह पश्चिम के मांसल सौंदर्य वर्णन के महान कवि "Famous Poet Of Sensuousness " John Keats को भी गलत ठहरा देता है, यथा :

  श्रृंगार रहा जो निराकार रस कविता में उच्छवसित धार
  गाया स्वर्गीय प्रिया संग,भर प्राणों में नव राग रंग
   देख मुझे तू हंसी मंद ! होठों में बिजली सी अस्पंद !!

कुछ लोग निराला जी पर मार्क्सवादी होने का आरोप भी लगाते हैं , ऐसे लोगों से मेरा इतना ही कहना है बंधुवर
" राम की शक्ति पूजा " जैसी कालजई आस्तिक रचना देने वाला कवि कभी भी नास्तिक नहीं हो सकता !
    
हमारे समाज को संकीर्णता, जड़ता, की नींद से जगाने के लिए निराला जी ने अपनी आंखो पर क्रांति और नवचेतना का चश्मा चढ़ाया वह भी तत्कालीन परिवेश से जम कर दो - दो हाथ करते हुए !
मित्रों निराला होने का मतलब ही है काल जाई हो जाना !
क्रांति के कवि आदरणीय निराला जी को उनकी पुण्यतिथि पर मेरा कोटि-कोटि प्रणाम, शत-शत नमन ।

कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
Blogger, Content Writer,
( गजल, कविता, लेख, )
15/10/2018

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“ सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय । सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय ।” भावार्थ :- यदि सारी धरती को कागज़ मान लिया जाए , सारे जंगल - वनों की लकड़ी की कलम बना ली जाए तथा सातों समुद्र स्याही हो जाएँ तो भी हमारे द्वारा कभी हमारे गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते है ।हमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है अर्ची, गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है । इस जगत मे बहुत कम ऐसे गुरू हुए है जिनको उनकी अपनी सफलता के साथ साथ ही उनके अपने शिष्य की सफलता से पहचान मिली हो ऐसे ही भाग्यशाली गुरू रहे है “रमाकान्त आचरेकर” जिन्हे पूरी दुनिया सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट कोच “ क्रिकेट गुरू ” के रूप मे जानती है और इसी रूप मे ही सदैव याद भी रखना चाहती है ! ईश्वर के साम्राज्य मे पहुँचने पर आज गुरू आचरेकर का स्वागत नाराण ने निश्चित तौर पर यही कह कर किया होगा “ क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के गुरू रमाकान्त आचरेकर जी आईए आपका स्वागत है !!” दिवंगत आचरेकर जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !! ================================ Bhardwaj@rchita 03/01/2019

माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति अयोध्याकाण्ड जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठा] जानि गौरि अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।

गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं. गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं. गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं. सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष सर्वोच्च ब्रह्म है अपने उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करती हूँ, कोटि-कोटि प्रणाम करती हूं !! साभार : भारद्वाज अर्चिता