"जनाब Me-2 और P-2 पर मत जाइए इस हम्माम में तो सब नंगे है !!"
"जनाब Me-2 और P-2 पर मत जाइए
इस हम्माम में तो सब नंगे है !!"
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चलिए लिए चलती हूं मैं आप पाठकों कों बड़ा गोल हासिल करने के लिए पहले शॉर्टकट चुनती फिर हल्ला मचाती अपनी ही दुनिया की कुछ अति आधुनिक महिला चरित्रों की तरफ, अपनी 11 साल 4 माह की नौकरी में जिनसे रूबरू होने का मौका मुझ निपट लंपट एहसान मुक्त बेबाक बनोला (रूखे स्वभाव वाले ) दो पाये जीव को भी मिला !
10 साल एक कारपोरेट में जनाब 11433 ₹ कि नौकरी किया पर कभी सैलरी बढ़ाने के लिए, इंक्रीमेंट करने के लिए, मैनेजर के चेंबर में जाकर, संपादक के चेंबर में जाकर ओवरटाइम नहीं किया, मेरा इंक्रीमेंट ना होना मेरा एक तरह से शोषण हो रहा था भली-भांति अवगत थी मैं इस तथ्य से किंतु इस शोषण से बचने के लिए मैं शॉर्टकट अपना लूं, मेरे संस्कार, मेरा जमीर इस बात की इजाजत कभी नहीं दिए मुझे !
अपने एक हाथ में इस्तीफा लिए समझिए मैं नौकरी करती रही हूं, जबकि मेरे इर्द-गिर्द ही मेरे बाद आई बहुत सी महिला सहकर्मियों ने जम के मैनेजर संपादक की चाय पी,ओवरटाइम किया मेरी सैलरी के 3 गुना उनका इंक्रीमेंट हुआ,एवं मुझसे पहले शहर में लॉन्च हुए दूसरे बड़े अखबार ज्वाइन करते हुए उन सब ने चीख - चीख कर कहा पिछले अखबार वाले मैनेजर एवं संपादक तो Loose Character के थे इसलिए स्विच कर लिया !
मैं अवाक थी उनके इस वक्तव्य पर सोचती रही मैं इन
छुई - मुई चालक लड़कियों ने आखिर किस प्रजाति की लोमड़ी का दिमाग पाया है जो पहले तो लटके झटके से अपना मतलब निकालती हैं और फिर एक दिन तोहमत धर के चलते बनती है ! ऐसा करने से पहले क्या एक बार भी उन्हें ख्याल आता है की बड़ी सैलरी और शॉर्टकट यह गोल तो उन्होंने स्वयं तय किया था और जब तय किया था, और इसे पूरा करने की जुगत में लगी थी तब तो उन्हें मैनेजर और संपादक God father, well-wishers और भी जाने क्या क्या लगते थे तब तो उन्होंने लूज कैरेक्टर की बात कभी नहीं उठाई आखिर क्यों ??
यह भारद्वाज अर्चिता जो हाड़ तोड़ मेहनत करती थी, करती है, बिना किसी की चापलूसी किए, बिना किसी की चाय पिए, बिना मैनेजर, संपादक,की ओवरटाइम ड्यूटी किए, ईमानदारी से केवल अपनी ₹11433 की नौकरी करती रही, अपने काम से काम रखती रही, जिसे इन अति आधुनिक लड़कियों ने जमाने के साथ खुद को बदलने की समय-समय पर एक हजार नसीहत दे डाली थी, रूखी एवं चुप लड़की का ख़िताब दे दिया था, उसे ना कभी मैनेजर ना ही संपादक Loose Character लगे, चपरासी से लेकर सहकर्मी तक सब के सब उसे archi दीदी बुलाते थे,आज भी बुलाते हैं, आज की तारीख में 2 साल से जबकि दूसरे कारपोरेट में हूं वहां भी बुलाते हैं !
संपादक, मैनेजर ने सैलरी भले नहीं बढ़ाया, इंक्रीमेंट भले नहीं किया, पर बिट्टी , बिट्टो, कह कर जब पुकारते हैं तब उनके चेहरे में मुझे मेरे पिता दिखाई देते हैं, साथ ही 10 साल की मेरी स्वस्थ इमेज भी दिखती हैं मुझे ,
मुझे गर्व होता है अपने पिता के कथन पर की बेटा :
" जिंदगी में दो - दो कदम पर शॉर्टकट मिलेगा यह
शॉर्टकट तुम्हें बहुत आकर्षित करेगा किंतु इस
शॉर्टकट का परिणाम भी शॉर्टकट ही होगा,
इसलिए बेहतर होगा जिंदगी में Long रूट चलने की
कोशिश करना, लांग रूट पर चल कर जो भी हासिल
होगा वह दिल दिमाग के स्तर पर तुम्हें सुकून देने
वाला होगा, उसके कोई दुष्परिणाम नहीं होंगे "
2 साल पहले जबसे पिछले 10 साल की नौकरी से
इस्तीफा देकर दूसरे बड़े कारपोरेट में ज्वाइन किया है यहां भी सैलरी पूरे 20000 नहीं है अभी भी, फिर भी मैं इत्मीनान एवं सुकून में हूं क्योंकि मुझ जैसी साधारण लड़की से शॉर्टकट - शॉर्टकट नहीं खेला जा सकेगा, अपनी बेबाकी, अपना आदर्श, अपना मूल्य, पैसों के लिए गिरवी नहीं रखा जा सकेगा !
मैं इस बात से इंकार नहीं करती की नौकरी के क्षेत्र में नौकरीपेशा लड़कियों का शोषण नहीं किया जा रहा है, मैं जानती हूं कि शोषण किया जा रहा है, किंतु हर बार इस शोषण के लिए केवल पुरुष ही गुनहगार नहीं होता,
कुछ को अगर अपवाद छोड़ दिया जाए तो कहीं ना कहीं
शॉर्टकट वाले फार्मूले पर चलकर कम समय में अपना बड़ा गोल अचीव करने वाली लड़कियां भी बराबर की जिम्मेदार है क्योंकि वह अपने साथ हुए दुर्व्यवहार के विरुद्ध आवाज तब नहीं उठाती जब उन्हें उठाना चाहिए क्योंकि उन्हें बड़ा गोल अचीव करने की बहुत जल्दी रहती है, एवं इसी बड़े गोल को अचीव करने के चक्कर में वह अक्सर चर्चा का विषय हो जाती हैं !!!!!!!
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कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
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