{ राम के अस्तित्व पर सवाल एवं अर्चिता की कलम } ================================ "आजादी के बाद जिस देश में महात्मा गांधी राम राज्य लाना चाहते थे उस देश में , अपने ही राज्य में राजा राम निर्वासन का दंश झेलने को विवश कर दिए जाएंगे धर्मनिरपेक्षता और गैर धर्मनिरपेक्षता के नाम पर वोट बैंक के लिए शायद कभी गांधी ने भी इसकी कल्पना नही की होगी, मॉरीशस, सूरीनाम, थाईलैंड, श्री लंका,अब तो यूरोप एवं अमेरिका में भी, जिस अयोध्या,जिस रामदरबार एवं राम परिवार के चरित्र का रामलीला नाम से मंचन किया जाता है उस पर हमारे ही देश भारत में प्रमाण मांग कर होने ना होने की आशंका जताई जाती है, उस राम को कोर्ट में पेंडिंग रखा गया है, गांधी वाले उस अयोध्यावासी राम के अस्तित्व को स्वीकारने में वर्तमान छद्म सेकुलरिज्म के चारों पाए चरमरा जाते हैं ? सेक्युलरिज्म को आदर्श के केंद्र में गांधी बापू को रखकर पूजने वाली सेकुलर राजनीतिक पार्टियों को गांधी जी के रामराज्य का सपना विस्मृत हो जाता है ! गांधी जी के छद्म अनुयायी भूल जाते हैं कि : महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन में उतरने के साथ ही अपने हाथ में गीता पकड़ा था, और आंखों में राम राज्य का सपना सजाया था, कर्म योगी कृष्ण के कर्म सिद्धांत, एवं राजा श्री राम के अनुशासन पूर्ण आदर्श राज्य व्यवस्था का अनुसरण करते हुए आजाद भारत का सपना देखा था, देश में आजादी लाने का संकल्प लिया था ! मैं भारद्वाज अर्चिता एक विशुद्ध कलमकार हूँ, किसी भी राजनीतिक दल से मेरा कोई लेना - देना नहीं है ! भारतीय संविधान में पूरी श्रद्धा के साथ विश्वास रखने वाली इस देश की एक नागरिक हूं मैं, और अपने नागरिक धर्म की सीमा रेखा का अनुसरण करते हुए, सम्मान करते हुए, आज बेबाकी से लिखना चाहती हूं राम के अस्तित्व को कितना भी नकार दो वोट बैंक के लिए किंतु गांधी के दशरथी आदर्श राम से ही अतीत काल से आज तक भारत की पहचान बरकरार रही है, अतः गांधी के आदर्श राजा राम अस्तित्व को नकारने का मतलब है भारत के अस्तित्व को नकारराना और भारत के अस्तित्व को नकार कर सेकुलरिज्म के हिमायती भला हम कैसे हो सकते हैं ? कलमकार की नजर से अगर मैं देखूं तो "हमारे जीवन में जितनी अटल सत्य मृत्यु है, उतना ही अटल सत्य राम का होना है, मृत्यु एवं राम के अस्तित्व से ना महात्मा गांधी अछूते रहे, ना हम रहेंगे अछूते, न हीं सेकुलरिज्म के अनुयाई, ! जिस तरह वेटिकन सिटी, मक्का मदीना, के अस्तित्व पर सवाल नहीं किया जा सकता, उसी तरह राम एवं अयोध्या के अस्तित्व पर न सवाल किया जा सकता है, न ही प्रमाण मांगा जा सकता है ! शबरी जैसी भीलनी के जूठे बेर खाने वाले दशरथी राम से भी बड़ा कोई सेक्युलर इस अखण्ड ब्रह्माण्ड में कभी हुआ है अथवा हो सकता है क्या ?? कलम से : भारद्वाज अर्चिता

{ राम के अस्तित्व पर सवाल एवं अर्चिता की कलम }
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"आजादी के बाद जिस देश में महात्मा गांधी राम राज्य लाना चाहते थे उस देश में , अपने ही राज्य में राजा राम निर्वासन का दंश झेलने को विवश कर दिए जाएंगे धर्मनिरपेक्षता और गैर धर्मनिरपेक्षता के नाम पर वोट बैंक के लिए शायद कभी गांधी ने भी इसकी कल्पना नही की होगी, मॉरीशस, सूरीनाम, थाईलैंड, श्री लंका,अब तो यूरोप एवं अमेरिका में भी, जिस अयोध्या,जिस रामदरबार एवं राम परिवार के चरित्र का रामलीला नाम से मंचन किया जाता है उस पर हमारे ही देश भारत में प्रमाण मांग कर होने ना होने की आशंका जताई जाती है, उस राम को कोर्ट में पेंडिंग रखा गया है, गांधी वाले उस अयोध्यावासी राम के अस्तित्व को स्वीकारने में वर्तमान छद्म सेकुलरिज्म के चारों पाए चरमरा जाते हैं ?
सेक्युलरिज्म को आदर्श के केंद्र में गांधी बापू को रखकर पूजने वाली सेकुलर राजनीतिक पार्टियों को गांधी जी के रामराज्य का सपना विस्मृत हो जाता है !
गांधी जी के छद्म  अनुयायी भूल जाते हैं कि : महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन में उतरने के साथ ही अपने हाथ में गीता पकड़ा था, और आंखों में राम राज्य का सपना सजाया था, कर्म योगी कृष्ण के कर्म सिद्धांत, एवं राजा श्री राम के अनुशासन पूर्ण आदर्श राज्य व्यवस्था का अनुसरण करते हुए आजाद भारत का सपना देखा था, देश में आजादी लाने का संकल्प लिया था !
मैं भारद्वाज अर्चिता एक विशुद्ध कलमकार हूँ, किसी भी राजनीतिक दल से मेरा कोई लेना - देना नहीं है ! भारतीय संविधान में पूरी श्रद्धा के साथ विश्वास रखने वाली इस देश की एक नागरिक हूं मैं, और अपने नागरिक धर्म की सीमा रेखा का अनुसरण करते हुए, सम्मान करते हुए, आज बेबाकी से लिखना चाहती हूं राम के अस्तित्व को कितना भी नकार दो वोट बैंक के लिए किंतु गांधी के दशरथी आदर्श राम से ही अतीत काल से आज तक भारत की पहचान बरकरार रही है, अतः गांधी के आदर्श राजा राम अस्तित्व को नकारने का मतलब है भारत के अस्तित्व को नकारराना और भारत के अस्तित्व को नकार कर सेकुलरिज्म के हिमायती भला हम कैसे हो सकते हैं ?
कलमकार की नजर से अगर मैं देखूं तो "हमारे जीवन में जितनी अटल सत्य मृत्यु है, उतना ही अटल सत्य राम का होना है, मृत्यु एवं राम के अस्तित्व से ना महात्मा गांधी अछूते रहे, ना हम रहेंगे अछूते, न हीं सेकुलरिज्म के अनुयाई, !
जिस तरह वेटिकन सिटी, मक्का मदीना, के अस्तित्व पर सवाल नहीं किया जा सकता, उसी तरह राम एवं अयोध्या के अस्तित्व पर न सवाल किया जा सकता है, न ही प्रमाण मांगा जा सकता है !
शबरी जैसी भीलनी के जूठे बेर खाने वाले दशरथी राम से भी बड़ा कोई सेक्युलर इस अखण्ड ब्रह्माण्ड में कभी हुआ है अथवा हो सकता है क्या ??

कलम से :
भारद्वाज अर्चिता

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“ सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय । सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय ।” भावार्थ :- यदि सारी धरती को कागज़ मान लिया जाए , सारे जंगल - वनों की लकड़ी की कलम बना ली जाए तथा सातों समुद्र स्याही हो जाएँ तो भी हमारे द्वारा कभी हमारे गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते है ।हमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है अर्ची, गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है । इस जगत मे बहुत कम ऐसे गुरू हुए है जिनको उनकी अपनी सफलता के साथ साथ ही उनके अपने शिष्य की सफलता से पहचान मिली हो ऐसे ही भाग्यशाली गुरू रहे है “रमाकान्त आचरेकर” जिन्हे पूरी दुनिया सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट कोच “ क्रिकेट गुरू ” के रूप मे जानती है और इसी रूप मे ही सदैव याद भी रखना चाहती है ! ईश्वर के साम्राज्य मे पहुँचने पर आज गुरू आचरेकर का स्वागत नाराण ने निश्चित तौर पर यही कह कर किया होगा “ क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के गुरू रमाकान्त आचरेकर जी आईए आपका स्वागत है !!” दिवंगत आचरेकर जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !! ================================ Bhardwaj@rchita 03/01/2019

माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति अयोध्याकाण्ड जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठा] जानि गौरि अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।

गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं. गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं. गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं. सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष सर्वोच्च ब्रह्म है अपने उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करती हूँ, कोटि-कोटि प्रणाम करती हूं !! साभार : भारद्वाज अर्चिता