सुनो शरद पूर्णिमा के चांद : तुम भी तो बिछड़े प्यार जैसे ही हो , केवल आसमान से : अमृत की बरसात कर सकते हो , अमरत्व प्रदान करने की कोशिश कर सकते हो किंतु तुम्हारे अमरत्व के प्रसाद में सानिध्य की कहीं कोई गुंजाइश नही केवल विरह ही विरह है वियोग ही वियोग है राधा कृष्ण के महारास वाले महासंयोग के बाद वाला महा वियोग !! कलम से : भारद्वाज अर्चिता
सुनो
शरद पूर्णिमा
के चांद :
तुम भी तो
बिछड़े प्यार
जैसे ही हो ,
केवल
आसमान से :
अमृत की बरसात
कर सकते हो ,
अमरत्व प्रदान करने की
कोशिश कर सकते हो
किंतु
तुम्हारे अमरत्व के प्रसाद में
सानिध्य की
कहीं कोई
गुंजाइश नही
केवल विरह ही विरह है
वियोग ही वियोग है
राधा कृष्ण के महारास वाले
महासंयोग के बाद वाला
महा वियोग !!
कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
Comments
Post a Comment