" टूटी ना चरखा क तार आई सुराज धीरे - धीरे "
दादी के जमाने का सुराजी चरखा आज भी संजोकर मेरे घर में रखा है ! गांधी जी की गजब की Strategy "रणनीति" थी देश के आखिरी स्त्री पुरुष को स्वराज एवं देश की स्वतंत्रता के मुख्य मुहिम से जोड़ने की यथा :
बड़े पापा बताते हैं गांव के प्राथमिक विद्यालय पर गांव की बहू बेटियों को सुराजी चरखा चलाने के लिए शाम 4:00 से 6:00 बजे तक मास्टर साहब ट्रेनिंग देते थे मेरी बड़ी दादी एवं छोटी दादी पालकी में बैठकर प्राथमिक विद्यालय सुराजी चरखा चलाना सीखने जाती थी जब ट्रेनिंग खत्म हो गई तो इन्हें एक एक सुराजी चरखा मिला और घर पर ही इन लोगों ने सूत कातना आरंभ किया,
दो तरह के सूत काते जाते थे मोटे सूत पतले सूत, इस सूत को कातने के लिए सुराजी लोग हर महीने बोरे भर की कपास की रुई देकर कता सूत ले जाते इसके बदले में सुराजी साड़ी, सुराजी धोती,देकर जाते, दादी लोग गांधी जी को गान्हीं बाबा कहती थी एवं चरखे पर सूत कातते वक्त सुराजी गीत गाती थी :
टूटी ना चरखा क तार
आई सुराज धीरे धीरे !!
==================================
कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
02/10/2018
Comments
Post a Comment