मौत ! तुम्हें हर रोज सामने खड़ी देखकर

मौत ! तुम्हें हर रोज सामने खड़ी देखकर
मेरे दिल में ! जीने की ! और उम्मीद जग जाती है,
तुम ही कहो कज़ा :
अब तुम ही कहो !
क्या जिंदगी की इससे भी बड़ी
कोई मिशाल दी जाती है ...???

मर - मर के जी लिया है अर्ची ! सदी कई,
अब आओ जरा “ जी ” कर मरा जाए
आंखों की नमी ! होंठो की सिसकियां -
फना हों जिसमें ! ऐसी कोई हंसी हंसा जाए,
जब पांव - पांव, एक-एक पांव
बिछी हो मौत कूंचाए जिंदगी में :
और चलने की जुस्तजू की जाए
क्या जिंदगी की इससे भी बड़ी
कोई मिशाल दी जाती है ...??

दरमियां हमारे ! यह जो जिद् की दीवार है
खामोश रजामंदी है यह,
यह वक्त का टकराव है,
चलो दौड़ चलें ! पकड़ के हाथ एक - दूसरे का
मौत पर जिंदगी की जीत ...
जिंदगी पर मौंत की दरकार है ,
क्या जिंदगी की इससे भी बड़ी
कोई मिशाल दी जाती है.........???

क्या खूब आरजू है अर्ची :
तुम्हें मारना है ! और मुझे जीना है,
क्यों ना कोई बीच का रास्ता निकाला जाए
तुम्हारे भी मन का हो जाए,
हमारी भी बात रह जाए .....
सुनो कज़ा ! तुम जिंदगी पर मर मिटो ,
मैं मौत पर जिंदगी लिख देती हूं ....
क्या जिंदगी की इससे भी बड़ी
कोई मिशाल दी जाती है ???
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कलम से :
भारद्वाज अर्चिता

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