किसे दोस्त कहिए ! किसे दुश्मन !
किसे दोस्त कहिए !
किसे दुश्मन !
जब दोनों :
एक ही कश्ती के सवार मिलें
कुछ ने मौजो मे डूबोया
कुछ साहिल के पार मिले !!
अजीब दिल्लगी से
लूटा हमें मुकद्दर ने
कजा से मांगने चले थे जिंदगी
सांसों पर मौत के
पहरेदार मिले !!
देहरी पर दिया जलाए
बैठे रहे कि :
जिंदगी फिर मुस्कुराएगी
फिर होगी सुबह,
लो फिर ठगा हमें -
जमान-ए-अंजुमन ने
राहें वफा में दर्द के अम्बार मिले !!
खडा होने की सोचने लगे थे
कि : बिक गयी
पैरों तले से जमीं
गर्दिशे मुफलिसी में
मुझे ! ऐसे, ऐसे ठेकेदार मिलें,
किसे दोस्त कहिए ..............!!!!
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कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
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