सारी नज्में ! सारी रूबाई ! मैं तुम तक छोड़ जाऊंगी
सारी नज्में ! सारी रूबाई
मैं ! तुम तक ! छोड़ जाऊंगी,
तुम हाथ तो बढाओ
मैं जिन्दगी का रूख मोड़ जाऊंगी !!
ग़ज़ल हूं मैं ! ग़ज़ल हूं मैं !
गीत की तरह ! तुम्हारी जिन्दगी में शामिल हूं ,
तुम ! होठों से तो लगाओ,
मैं मिसरी ! रूह तक घोल जाऊंगी !!
जुस्तजू में ! जमाने से थी ! आरजू तुम्हारी ,
बड़े सजदे के बाद ! आए हो अजनबी,
झिझक का पर्दा तो हटाओ
मै राजे दिल ! खोल जाऊंगी !!
आओ बहर में बांध दे ! रिश्तो की ग़ज़ल
सियाह शहर में ! हाथ को हाथ नहीं अर्ची,
थाम लो हाथ ! सुबहा-ए-जिन्दगी तक !
आफताब होकर ! तुम्हें रौशनी दिखाऊंगी !!
कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
09919353106
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मेरी यह ग़ज़ल साहित्यिक पत्रिका में प्रकाशित होने को जा चुकी है कृपया इसे कॉपी पेस्ट ना करें !!
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