(( बांग्ला भाषा के प्रति मेरी उत्सुक उतकण्ठा ))

जब से इतनी बडी हुई मैं कि :
साहित्य को पढ एवम समझ सकूं मेरी एक उत्सुक कामना रही की मैं बांग्ला भाषा सीखूं, इस उत्कण्ठा के पीछे केवल इतनी आकांक्षा छुपी है मेरी कि :
कई सौ वर्षों से साहित्य के क्षेत्र में अति समृद्धिशाली बांग्ला भाषा संसार के असंख्य अनमोल साहित्य को मैं बांग्ला भाषा में ही पढना चाहती हूं , बहुत से शुभचिंतकों ने सुझाव दिया बांग्ला साहित्य के हिंदी अनुवाद को पढूं पर मुझे लगता है अनुवाद में वह आनंद नही जीवित रह पाता जो उसकी वास्तविक जुबान में उसे पढने पर जीवित होने लगता है अर्ची !
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले से होने के कारण यहां पर  बंगाली परिवार की बहुलता मेरे आस-पास मौजूद थी इस कारण इनसे जान पहचान तो बहुत रही किन्तु इस भाषा-भाषी से लोगों के साथ जुडाव ऑफिस की ड्यूटी का केवल एक हिस्सा था, इनसे मेरी व्यक्तिगत जान - पहचान न के बराबर ही रही !
इसी वजह से इनके घर जाकर बंगाली सीखना मेरे लिए  सम्भव न हो सका ! साथ ही एक और पुरानी घटना को इसका श्रेय जाता है :
मेरी एक दोस्त ने क्लास 10th मे ही मेरे कान में एक बात बार-बार डाली थी कि : बंगाली परिवार अपने गैर बंगाली मेहमानों को भी अन्य शाकाहारी पकवानों में चुपके से मछलियों वाले डिश मिलाकर परोस देते हैं उसकी बात में सत्यता कितनी थी राम जाने पर मैं ठहरी जन्मजात विशुद्ध शाकाहारी जीवात्मा इसलिए लिए कभी भी हिम्मत नही जुटा पायी, और यह दूसरी वजह साबित हुई  मेरी बांग्ला भाषा सीखने की आकांक्षाओं को धुंधलाने के लिए, !
       किंतु कुछ दिनों से फिर बांग्ला सीखने की आकांक्षा               बलवती होने लगी है, वजह मुझे बांग्ला साहित्यों के अभिन्न अंग आदि काल में लिखा गया कृत्तिवास रामायण  (बांग्ला : कृतिबासी रामायण) या 'श्रीराम पाँचाली' जिसकी रचना पन्द्रहवीं शती के बांग्ला कवि कृत्तिवास ओझा ने की थी,को बांग्ला भाषा के उसके वास्तविक संस्करण को यथावत पढना है ! एवम महसूस करना है कि : जब राम विवाह समपन्न हुआ और हमारे दासरथी राम अपने अन्य तीन अनुज भाईयों संग बंगाली समाज के आंगन में भात खाने बैठते हैं एवम उनके सामने रखी थार में उनके लिए हमारा बंगाली समाज “ झोल माछेर और भात परोसता है” तो उस झोल माछेर भात में बांग्ला लोकजीवन की सुन्दर भावनाएं कितनी मात्रा में विद्यमान हैं अर्ची, इन भावनाओं के मानक को समझने के लिए कृत्तिवास रामायण को बांग्ला भाषा में ही पढना होगा मुझे, और बांग्ला भाषा में इसे पढने के लिए मुझे बांग्ला सीखनी होगी और बांग्ला सीखने के लिए मुझे किसी माछेर खाने वाले बंगाली परिवार में जाकर अपना गुरू तलाशना होगा ! हमारे राम अगर बंगाली परिवार के लेखक द्वारा विवाह भात के रूप में माछेर भात खाने के लिए बंगाली परिवार के आंगन में बैठाए जा सकतें हैं तो फिर मैं भारद्वाज अर्चिता बांग्ला भाषा सीखने के लिए किसी बंगाली परिवार के आंगन में क्यों नही बैठ सकती ........???
कृत्तिवास रारमायण का एक मोटा - मोटा intro type का परिचय अपने पाठकों को मैं दे देती हूं :
यह संस्कृत के अतिरिक्त अन्य उत्तर-भारतीय भाषाओं का पहला रामायण है। गोस्वामी तुलसीदास के रामचरित मानस के रचनाकाल से लगभग सौ वर्ष पूर्व कृत्तिवास रामायण का आविर्भाव हुआ था। इसके रचयिता संत कृत्तिवास बंग-भाषा के आदिकवि माने जाते हैं। वह छंद, व्याकरण, ज्योतिष, धर्म और नीतिशास्त्र के प्रकाण्ड पण्डित थे। और राम-नाम में उनकी परम आस्था थी।
मैने प्रोफेसर अनंत मिश्र जी से एम०ए० की क्लास में सुना है कि : इस ग्रंथ में मध्यकालीन बंगाली समाज और संस्कृति का विविध चित्रण भी है। बंग-भाषा के इस महाकाव्य में छः काण्ड (आदि काण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्य काण्ड, किष्किन्धा काण्ड, सुन्दर काण्ड और लंका काण्ड) हैं।
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कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
9919353106

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