इस शहर के ! मेरे माजी मैने कई रंग देखे हैं,
इस शहर के ! मेरे माजी
मैने कई रंग देखे हैं ,
कभी फीका देखे हैं ,
कभी शोख-ए-चटख रंग देखें हैं,
इस शहर के ..........................!!
मत पूछिए ! किस कदर बदला है
मौसम-ए-मिजाज यहां
पूस की ठिठुरती सर्दियों में-
जेठ सी तपिश देखे हैं,
इस शहर के ............................!!
ताले लगे हुए दिलों के दरवाजे,
बंद पड़ी रिश्तो की खिड़कियां
घर की आबरू को
सरे बाजार नीलाम होते देखें हैं ,
इस शहर के ..............................!!
कुछ तो अभाव में हैं नंगे ,
कुछ को भाव में नंगा होते देखें है,
यूं घायल है इंकलाब यहां कि :
हजार भीड़ में ! हर एक शै को
अजनबी होते देखे हैं ,
इस शहर के ............................!!
बहुत दर्द , बहुत राज , दबा है सीने में
बहरों में न बांधो इनको अर्ची ,
यह वो दयार है, जहां वक्त के कदमों में
मैने - शहंशाहों के झुकते हुए ताज देखें है
इस शहर के ..............................,,,,,,,,,,,,
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कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
09919353106
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