आजकल बात नही होती !
आजकल बात नहीं होती,
बड़ा सस्ता सा हो गया है दिलों का रिश्ता,
पास रहकर भी सदियों तक :
मुलाकात नहीं होती ...
आजकल बात नही होती ......!!
यूं अपने में ही खोए हुए
चले जा रहे हो
किस राह तुम मुसाफिर - गुमनाम सा सफर ?
तुम्हारी इस राह की :
क्या कोई जात नहीं होती....??
बिना पते की चिट्ठी सी यादें हैं अब तो :
इस शहर में रोक ले एक रात ही सही ...
ईंट-पत्थर के मकान की
इतनी भी औकात नही होती ..!!
स्वार्थ के बियाबान अंधेरों के बीच घुटी सांसे,
कंक्रीट के जंगल में :
चंहचहाती खुशियों की अब कोई
सुबहा-ए-रात नही होती !!
चलो समेट लो ग़ज़ल अवि,
जिंदगी की कड़ी धूप में :
अश्क जाया न करो,
पत्थरों के सीने में कभी :
जज़्बात-ए-टीस नही होती !!
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कलम से :
विभांशु जोशी एवम भारद्वाज अर्चिता
संयुक्त रूप से लिखी गयी ग़ज़ल
( ग़ज़ल संग्रह शाम - ए - शहर से )
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