यह एक बेलौस हंसती तस्वीर जिसने मुझे स्थिपा देने से रोक कर “आज” में जीना सिखा दिया ==================================

यह एक बेलौस हंसती तस्वीर जिसने मुझे स्थिपा देने से 
          रोक कर “आज” में जीना सिखा दिया
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भारत तुम्हारी इस बेलौस हंसी पर तो कुबेर का सारा साम्राज्य न्योछावर करतीं हूं मैं !
यह हंसी बयान करतीं है वह सच्चाई जिसे दिल्ली स्थित
लाल किले के प्राचीर से कभी भी नही देखा गया !
खेत खलिहान के बीच खुले आसमान तले केवल आज में जीने वाले सच्चे भारत की सच्ची हंसी है यह इसमें कही कोई मिलावट अथवा बनावट नही है अर्ची !
यह हंसी जो कंकरीट के अमीर बियाबान सभ्य जंगलों में रहने वाले बोनसाई प्रजाति की अमीरी को शायद कभी भी नसीब नहीं हो सकती !
कल तक मैं भारद्वाज अर्चिता अपने 11 वर्ष 6 माह की अखबारी नौकरी के चलते काम के दबाव एवम थकान का उलाहना देकर खुद को कोसते हुए आंसू बहा रही थी, 24 घंटे के लिए यह सोच लिया था मैने कि : इस दुनिया में मुझसे परेशान कोई दूसरा नही, अपने कर्तापन पर इतना अहंकार हो चला था मुझे की कल रात अपनी नौकरी से स्थिपा देने का विचार तक कर लिया, इतना ही नही कल रात मैने अपना स्थिपा “resignation” भी  कम्पोज कर रखा था, सोचा था आज सुबह ऑफिस पहुंच कर सबको अपने “resignation” की mail forward कर दूंगी !
मेरे स्थिपा देने के पीछे की वजह केवल इतनी सी थी कि : 14 दिन से मेरी तबीयत खराब है पर काम की अधिकता के चलते ऑफिस से लम्बी मेडिकल लीव “medical leave” “चिकित्सा के लिए छुट्टी” नही मिल पा रही थी ! छुट्टी न मिलने की वजह से मुझपर नाकारात्मक्ता हावी हो गयी और मैं यह आंकलन करने लगी की इस नौकरी से मुझे हासिल क्या हुआ ? अपनी नौकरी से अपना हासिल तलाशने के चक्कर में मैं भविष्य की आने वाली सदियों में खुद को ढूंढने लगी और अपने वर्तमान, अपने आज में जीना भूल गयी ! पर आभार मेरे पथ प्रदर्शक, मेरे बड़े भाई, मेरे आदरणीय, मेरे बिग बी, अखबार की दुनिया में पारखी एवम दूरदर्शी व्यक्तित्व के धनी कलम के सिपाही श्री सुधीर मिश्रा जी ( NBT Lucknow ) का जिन्होंने आज अपनी फेसबुक वाल पर यह तस्वीर अपडेट किया और मुझ भारद्वाज अर्चिता को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि : कर्तापन का अहंकार त्याग कर आज में जीना सीखो जिंदगी आसान हो जाएगी तुम्हारी,एवम तुम्हारे सोचने समझने,जीने का नजरिया साकारात्मक हो जाएगा क्योंकि अर्ची तुम्हारे सामने यह जो तस्वीर है ना यह 60 प्रतिशत भारत का प्रतिनिधित्व करती है, वह भारत जो हाड़ तोड़ मेहनत करने के बाद, लाख अभाव के साथ, बिना किसी बैकअप एवं वैशाखी के सहारे, हजारों हजार दर्द की टीस पर भी बेलौस हंसता है अपने अमीर दिल की अंदर बाहर की समानान्तर वाली हंसी !
इसी हंसी के चलते तो देश की आजादी के बाद से आज तक इस 60 प्रतिशत का अपना अस्तित्व कायम हैं केवल वर्तमान में जीने के लिए !
इस तस्वीर के बाद आज मैने स्थिपा देने का अपना मन बदल दिया, आज अपना सारा दर्द भूल गयी मैं इस तस्वीर में उभरी बहुमूल्य हंसी को देखकर, साथ ही वर्तमान में जीकर बेलौस हंसने का मंत्र समझ में आ गया मुझे !
thanks Big-B आपकी इस तस्वीर ने मेरा हृदय परिवर्तन कर दिया, नाकारात्मक्ता से उबार लिया मुझे !!
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कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
24/09/2018

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