{मुझको तो मेरी “मां” जैसी लगती है मेरी मातृभाषा }
मुझको तो मेरी “मां” जैसी लगती है मेरी मातृभाषा हिंदी
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आज हिंदी दिवस के शुभ अवसर पर सभी भारतीय नागरिकों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।
हिंदी भाषा में लेखन पाठन करने वाली एक कलमकार की हैसियत से मैंने सदैव महसूस किया है अर्ची कि :
विविधता में एकता पर आधारित हमारी महान भारतीय संस्कृति विभिन्न भाषाओं और बोलियों के एक सुन्दर बगीचे की तरह है, जिसमें प्रत्येक भाषा और प्रत्येक बोली का अपना एक अलग ही महत्व है, सभी भाषाओं और बोलियों का अपना एक अलग ही समृद्ध इतिहास और गौरवशाली साहित्य है। फिर भी इन सबके बीच वैज्ञानिक स्तर के मानक पर हर प्रकार से समृद्ध एवम स्वस्थ्य जिस भाषा को माना गया,भारतीय संविधान भी जिसके पक्ष में अपनी पूर्ण सहमति देता है वह भाषा है हमारी हिंदी भाषा !
देश में व्यापक रूप से साहित्य विधा से लेकर संविधान तक अपना आदर्श स्थान रखने वाली राष्ट्र भाषा हिन्दी वास्तव में हमारे राष्ट्रीय एकता की प्रतीक भाषा है :
अंग्रेजी के फ्लो में बह निकलने वाले हिंदुस्तानियों से एक बात कहनी है आज मुझे :
“राष्ट्रभाषा का अपमान ! हमारे राष्ट्र, हमारे संविधान एवम हमारी मां का अपमान है ” बेहतर हो कि: हम हिंदी में रचे, हिंदी में बसे, हिंदी में बोले,क्योंकि :
“हिंदी है हम वतन है हिंदोस्ता हमारा !”
साहित्य मूर्धन्य बाबू भारतेंदु हरिश्चंद्र जी ने 1885 याने के आजादी से बहुत पहले यह भविष्यवाणी कर दिया था अर्ची :
“निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा ज्ञान के मिटे न हिय को सूल”
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कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
9919353106
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