आस्था, विश्वास, पूजा, प्रेम, एवम तीज ब्रत !
त्याग-तपस्या करने का, व्रत रखने का, पूजा करने का मतलब होता है अर्ची : किसी एक व्यक्ति विशेष,किसी एक ईष्ट विशेष के प्रति नि:स्वार्थ रूप से अनुराग, विश्वास, आस्था, एवं श्रद्धा के सुंदर भाव का एक साथ हमारे अंतरमन में उतपन्न हो जाना ! मेरी नजर में उपरोक्त भाव जिस किसी के लिए भी हमारे हृदय में बिना किसी डर, भय, संसय, स्वार्थ, खेद, छोभ , लज्जा, एवं आत्मग्लानि के उमडे वह व्यक्ति अथवा वह ईष्ट ही हमारी पूजा का, हमारे ब्रत का सच्चा अधिकारी होता है !
और उपरोक्त के अनुरूप आपके, हमारे बीच अटूट आस्था स्थापित करने का, हमारे ब्रत, हमारी पूजा के योग्य बनाने का, काम एक मात्र “प्रेम” करता है ! किन्तु..दैहिक,भौतिक, अथवा मांसल “प्रेम” नही बल्कि इन तीन से उपर उठा भावना के धरातल पर करूणा का सामराज्य बनाए खड़ा सात्विक, नि:स्वार्थ प्रेम,!
ऐसा प्रेम जिसके “खोने” में भी “पाने” की अनुभूति हो, जिसकी दूरी में भी नजदीकी हो, जिसके वियोग में भी संयोग हो, जिसके दान में भी प्राप्ति हो,जिसके मृत्यु में भी जीवन हो,जिसके विध्वंस में भी सृजन हो निर्माण हो ! हां यही वाला प्रेम तो अर्ची जो किसी एक को तुम्हारा नायक, तुम्हारा ईष्ट, तुम्हारा भगवान बना देता है !
वही भगवान जिसको पूजने के लिए, जिसपर न्योछावर होने के लिए तीज ब्रत का प्रावधान है हमारे हिंदू समाज में,! लगभग 28 घंटे तक बिना अन्न का एक भी दाना ग्रहण किए, बिना जल के एक भी बूंद का पान किए अपने ईष्ट के,अपने नायक के,दीर्घायु जीवन,सुख-शांति समृद्धि, उन्नति,हंसी-खुशी,के लिए लड़कियां,महिलाएं,पूर्ण आस्था के साथ व्रत-पूजा करतीं हैं, त्याग तपस्या करतीं हैं !!
12/09/2018 को निर्जला तीज व्रत के अवसर पर देश की आधी आबादी को ढेरों शुभकामनाए !
==================================
कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
12/09/2018
Comments
Post a Comment