{{ हरि-कर-राजत माखन रोटी }} ====================
{{{ हरि-कर-राजत माखन रोटी }}}
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भारतीय धर्म एवम संस्कृति के इतिहास में कृष्ण का व्यक्तित्व एक अद्भुत विलक्षण कर्मयोगी का है ! कुछ लोग उन्हें ऐतिहासिक पुरूष भी मानते हैं ! ऋग्वेद में कृष्ण का उल्लेख आंगिरस के रूप में किया गया है, जिसके माध्यम से वह एक ऋषि सिद्ध होते हैं ! इस तथ्य को भी यहां स्वीकार किया गया है कि : छांदोग्य उपनिषद में वर्णित देवकी पुत्र कृष्ण भी यही हैं !
महाभारत के आरम्भ मे इन्हें ही पाण्डवों का सखा, मध्य के अंश में एक कुशल राजनीतिज्ञ तथा अंतिम अंश में उन्हें ही विष्णु के अवतार के रूप मे चित्रित किया गया है ! किंतु उत्तरकालीन पुराणों में उनके बाल जीवन, गोप जीवन, रासलीला, गोपी प्रेम, राधा के साथ प्रेम,एवम महारास सम्बंधी क्रिणाओं का जो चित्रण किया गया है उसमें एक अद्भूद आकर्षण है और वह आकर्षण हमें कृष्ण की तरफ बरबस खींच लेता है !
इस पृथ्वी पर निराकार का साकार रूप है देवकीनंदन श्री कृष्ण का अवतार ! इसी साकार रूप पर मर मिटने वाले अंधे भक्त कवि बाबा सूर दास ने सूरसागर में उद्धव गोपी संवाद करवाकर निर्गुण व सगुण की विजय कराते हुए निर्गुण की लुटिया पूरी तरह डूबो दिया है ! कहां जा सकता है श्रीकृष्ण का अवतार निराकार कोक साकार की परिधि में बांधनेधन की कल्याणकारी चेस्टा है !
हाथ में माखन रोटी लिए , कुछ मुख पर पोते कुछ हाथ में लपटाए, कमर में छुद्र घंटियों वाली करधनी , पांव में पैजनी, मस्तक पर तिलक, सिर पर बेनी, मोर मुकुट अधराधर कुंडल,साथ में जादुई मुस्कान संग मोती सी चमचमाती दंतुलियां, अहा वारे जाऊं मै तो अपने इष्ट के इस मनोहारी रूप पर अर्ची ! वह कौन भाग्यहीन कंगाल होगा जो इस बाल रूप के खजाने को बिसरा कर निर्गुण स्वरूप के नाम की खाली झोली अपने कंधे पर लादेगा ?? देवकी नंदन ने अगर कंस जैसे पापी का नाश किया है तो महाभारत के समय में अर्जुन का सारथी बन कर पाप का अंत भी करवाया है ! कृष्ण ने कर्म को प्रधानता देते हुए मित्र, पुत्र, सखा, एवम पथ प्रदर्शक, का दायित्व भी कुशलता पूर्वक निभायाय है ! यशोदा मैया को मातृत्व के चरम सुख का भोग कराया है जिस सुख को पाने भोगने की हर मां की इच्छा होती है, चेष्टा होती है, जैसे :
चरन गहे अंगूठा मुख ले गेलत
नन्दन घरनि गावति, हलरावति
पालना पर हरि खेलत !!”
भोर होने पर अपने बाल गोपाल को जगातेत हुए मईया यशोदा कहत कहती हैं,
जागिए गोपाल लाल आनंद निधि नन्दाल
जशुमति कहें बार-बार भोर भयो प्यारे !!
कृष्ण जन्माष्टमी पर कृष्ण के बाल रूप का वर्णन तब तक अंधूरार है अर्ची जब तक उनके बालपन की चतुरता का बखान न किया जाए,इनका चतुर नटखट रुप ही है जिसने अखिल ब्रह्मांड को आज तक शगुण के मोंह पास में बांध रखा है ! वही रूप जिस पर असंख्य गोपियां अनुरक्त थी, रूप चेस्टा में सदैव तृषित थी, यथा :
काकी भूख गई मन लाडू सो देखहु चित चेत
सूर श्याम तजि को भूस फटकै मधुप तिहारे हेत् !!
कृष्ण की बात करें हम और मथुरा वृतांत पर चर्चा न करे यह तो बेईमानी होगी अर्ची ! श्री कृष्ण का ब्रज से मथुरा जाना बाल क्रीड़ा से हटकर कर्म के क्षेत्र में प्रथम पदार्पण है ! एक ऐसा पदार्पण जहा त्याग की पराकाष्ठा पर पहुपहंच कर प्रेम मौन हो जाता है और कर्म के लिए राह तैयार करता है ! किंतु इस कर्म क्षेत्र में पदार्पण के बाद भी कृष्ण अपने हृदय से प्रेम को भुला नही पाते यथा :
उधौ मोहि ब्रज बिसरत नाही
हंस सुता की सुंदर नगरी, अरू कुंजन की छांही !!
श्री कृष्ण का व्यक्तित्व ऐतिहासिक है, सुंदर है, सर्वग्राह्य है, साथ ही एक कर्मयोगी का व्यकतित्व है, ! मैया यशोदा की तरह ही हम साहित्य प्रेमियों को कृष्ण का बाल स्वरूप ही सर्वाधिक प्रिय लगता है, मेरे जैसा प्रत्येक साहित्य प्रेमी अपने बाल गोपाल श्री कृष्ण के जिस रूप पर बलिहारी है वह रूप है :
“हरि कर राजत माखन रोटी !!”
कृष्ण जन्माष्टमी की आप सभी को ढेरों शुभकाभकमना सहित बधाई !!
जय श्री कृष्ण !!
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कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
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