मेरे भीतर लाखों,करोडों,भावना, संवेदना का संचार एवम Sunset ( सूर्य का अस्त होना )
बचपन से आज की तारीख तक मुझे सन सेट देखना बहुत पसंद रहा है, शायद आगे भी रहेगा, निश्चितरूप से रहेगा ! बचपन में ( 8 साल की उम्र में ) दादी के मजबूत सुरक्षा घेरे से निकल कर घर के पीछे कुछ दूरी पर, ऊंचे टीले पर बने काली चौरा पहुंच जाती थी सूरज डूबने याने-के गोधुलि बेला में ! और घंटों दक्षिण -पश्चिम दिशा के कोने पर अस्ताचल आग के गोले को धीरे-धीरे कुआनों नदी के पानी पर लालिमा बिखेरते नीचे.....और... नीचे, उतरते , फिर निश्तेज होते कहीं खोते जादू बनते-बनते अचानक छुपकर पूरी रात तक के लिए मुझे धोखे में डालकर चले जाने तक मैं अपलक उसे देखती रहती ! जब तक आग का वह गोला जादू बनकर कहीं छुप जाता था, दादी भी डण्डा लेकर काली चौरा पहुंच जातीं थी अपने वही रटे रटाए शब्द बुदबुदाते हुए : “ दुनिया उगता सूरज देखती है यह कुलक्षिणी रोज घंटा भर डूबता सूरज देखती है, जितना बुदबुदाती उतना ही रोती जाने क्या लिखा है इसकी किस्मत में !
आज दादी तो नही हैं ना ही गोधुलि बेला में काली चौरा वाले टीले पर मेरा जाना ही हो पाता है, पर अभी भी जहां हूं वहां आज भी सन सेट देखना मेरा Passion मेरा जूनून है !
और लोग आज भी मेरे इस शौक़ को देख - सुनकर अपनी दबी जुबान से कुछ बुदबुदा देते हैं अर्ची !!
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