( 65 साल का साथ अटल आडवाणी )
अंतिम यात्रा पर निकले अटल, भीड़ के बीच अकेले गुमसुम आडवाणी-
65 सालों के साथ का मतलब समझते हैं आप? भारतीयों की औसत आयु (68.8 साल) से बस 3 साल कुछ महीने कम। अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी का साथ इतना ही था लेकिन यहीं तक था। आम तौर पर लोग जितना जिंदा रहते हैं, इन दोनों राजनेताओं ने उतना वक्त साथ बिताया। इतने साल दोस्ती निभाई। एक साथ सड़क की धूल फांकी और सत्ता के शिखर को भी साथ चूमा। पर दुनिया की सारी जोड़ियां आखिरकार टूटती ही हैं, क्योंकि कविता में तो काल के कपाल पर लिखा मिटाया जा सकता है पर असल जिंदगी में मृत्यु ही अंतिम सत्य होती है। 6 दशकों का यह साथ अब खत्म हो गया और वाजपेयी की श्रद्धांजलि सभा में भीड़ में तन्हा बैठे आडवाणी की यह तस्वीर उनके दुख की सारी कहानी कह रही है।
बताते हैं कि इन मुलाकातों के दौरान आडवाणी घंटों अटल के सामने बैठे रहते थे। अपनी बात सुनाते रहते थे। अटल को बोलने में दिक्कत थी पर आडवाणी को कोई परेशानी नहीं होती होगी क्योंकि 65 सालों के साथ में तो आदमी एक दूसरे के मौन का मतलब भी समझने लगता होगा शायद। पर आज आडवाणी के पास न तो अटल हैं और न उनकी खामोशी।
शब्द होंगे भी कहां से? 65 सालों में न जाने कितने करोड़ शब्द दोनों ने एक दूसरे से कहे होंगे। साथ जब छूटता है तो भाषाएं मौन हो ही जाती हैं। अटल बिहारी वाजपेयी की मौत आडवाणी के लिए निजी क्षति है। पिछले कई सालों से जब अटल अपनी बीमारी की वजह से सार्वजनिक जीवन से बाहर हो गए तो उनके घर जाकर लगातार मिलने वालों में दो ही नाम प्रमुख थे। ये दो नाम थे आडवाणी और राजनाथ।
1952 में पहली बार अटल और आडवाणी मिले थे। यह मुलाकात ट्रेन में हुई थी। अटल जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ राजस्थान के कोटा से गुजर रहे थे। आडवाणी कोटा में संघ के प्रचारक थे। ट्रेन में मुखर्जी ने आडवाणी की मुलाकात अटल से करवाई थी। इसके बाद दोनों ने 6 दशकों से अधिक समय तक जिंदगी की रेल का सफर साथ पूरा किया। आज आडवाणी का वह साथी उनका साथ छोड़ गया है। अब जिंदगी की रेल में आगे का सफर बीजेपी के लौह पुरुष को अकेले पूरा करना है। आपको क्या लगता है, आडवाणी क्या सोच रहे हैं? --साभार नवभारत टाइम्स
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