##2 लाख पलायित कश्मीरी पण्डित#40 लाख घुसपैठी बांग्लादेशी#सत्ता लोभी भारतीय नेता# राजनीति#देशद्रोह# भारतीय संविधान## ============

##2 लाख पलायित कश्मीरी पण्डित#40 लाख घुसपैठी बांग्लादेशी#सत्ता लोभी भारतीय नेता# राजनीति# देशद्रोह#भारतीय संविधान##
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दो-चार दिन से मेरे खोजी दिमाग में एक द्वंद चल रहा है अर्ची ! यथा :
“जो देश अपने ही नागरिकों को उनके पूर्वजों के तय भूभाग में रहने की व्यवस्था कराने में 28 साल से असफल है !
जिस देश के 2 लाख नागरिक अपने ही देश के अपने एक निश्चित भूभाग से डरकर पलायन कर गए हों ! 
जिस देश के स्थाई नागरिक आतंकवाद और कत्लेआमे से हारकर अपने ही देश की राजधानी लगायत अन्य प्रदेशों मे शरणार्थी का जीवन यापन करने पर विवश हों !
मैं जानना चाहती हूं क्या वह देश वि-देशी शरणार्थियों को नागरिता देने हेतु अपने द्वार खोल सकने की स्थिति में है ?????
अपनी कलम के माध्यम से मैं आज शांति एवम मानवता के पक्षधर विश्व समुदाय के तमाम देशों से पूछना चाहती हूं ! पूछना चाहती हूं तमाम राजनैतिक पार्टियों से क्या ऐसा देश किसी अन्य देश के पलायित शरणार्थियों को अपने देश मे शरण देने, अपने देश की नागरिकता प्रदान करने के लिए, सक्षम है जिसके अपने देश के नागरिक खाना बदोस का जीवन जी रहे हैं ???
1990 से जिनके अपने ही देश के  नागरिक अपना घर - बार छोडकर दर - दर भटक रहे हों ! ऐसी स्थिति में क्या वह देश , उस देश के राजनेता , उस देश का संविधान ,
एक बित्ता जमीन भी किसी बाहरी देश के शरणार्थियों को खैरात के रूप में उपलब्ध करा सकने की स्थिति में है ?????????
क्या कभी किसी नेता ने यह जानने की गरज समझा कि :
कश्मीर घाटी के निवासी काश्मीरी पण्डितों या काश्मीरी ब्राह्मणों के साथ क्या हो रहा है लगभग 3 दसक से इस देश में ???
वह दो लाख परिवार जो सभी ब्राह्मण थे, सदियों से कश्मीर में रह रह रहे थे जिन्होने पाकिस्तानी पठानों का अपने उपर होता क्रूर कत्लेआम देखा था ! जिन्होने 1990 का विभत्स मंजर देखा, वह कश्मीरी पंडित कहां गए  ??????
1990 में पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद के कारण से जिन्हें घाटी छोड़नी पड़ी थी या जिन्हें जबरन  उनके घर से निकाल दिया गया क्या उनके हक के लिए आवाज उठाना गैरकानूनी है इस देश में ???????

क्या कभी “पनुन” कश्मीरी पंडितों का संगठन इस देश में कहीं किसी तरह की अराजकता में लिप्त रहा, देश को नुकसान पहुंचे जिस कदम से क्या कभी पनून ने ऐसा कोई कदम उठाया ????
पनून ने क्या कभी अपने साथ हुए विभत्स अत्याचारों के विरूद्ध गृह युद्ध की धमकी दिया ...?????
इन 28 सालों की त्रासदी के बाद भी क्या कभी पनून का दर्द समझा गया उन्हे हमदर्दी , सहानुभूति , अथवा साबासी पाते देखा गया भारतीय राजनेताओं द्वारा ???
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बात आगे बढे इससे पहले आईए जान समझ ले कश्मीरी “ पंडितों का पलायन ” किस बला का नाम है इस देश में अर्ची ???? :
भारत के विभाजन के तुरंत बाद ही कश्मीर पर पाकिस्तान ने कबाइलियों के साथ मिलकर आक्रमण कर दिया और बेरहमी से कई दिनों तक कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार किए गए, इस अत्याचार की मुख्य वजह भारत के प्रधानमंत्री पंडित नेहरू की तरफ से सेना को आदेश देने में बहुत देर कर देना था। इस देरी के कारण जहां पकिस्तान ने कश्मीर के एक तिहाई भू-भाग पर कब्जा कर लिया, वहीं उसने कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम कर उसे पंडित विहीन कर दिया। अगर मेरी कलम ठीक दिशा में है तो अर्ची 24 अक्टूबर 1947 की बात है, पाकिस्तान ने पठान जातियों को कश्मीर पर आक्रमण के लिए उकसाया, भड़काया और समर्थन दिया था।
तब तत्कालीन महाराजा “जम्मू कश्मीर हरि सिंह” ने भारत से मदद का आग्रह किया। नेशनल कांफ्रेंस जो कश्मीर सबसे बड़ा लोकप्रिय संगठन था उस समय जिसके अध्यक्ष शेख अब्दुल्ला थे, ने भी भारत से रक्षा की अपील की थी । पहले अलगाववादी संगठनों ने कश्मीरी पंडितों पर केंद्र सरकार के खिलाफ विद्रोह करने के लिए दबाव बनाया था, लेकिन जब बात बनती न दिखी एवम  पंडितों ने ऐसा करने से इनकार कर दिया तो उनका कत्लेआम किया जाने लगा।
4 जनवरी 1990 को कश्मीर का यह मंजर देखकर कश्मीर से 1.5 लाख याने-के-एक लाख से उपर और दो लाख के बीच कश्मीरी पंडित कश्मीर से पलायन कर गए। 1947 से ही गुलाम कश्मीर में कश्मीर और भारत के खिलाफ आतंकवाद का प्रशिक्षण आरम्भ हुआ । इस आतंकवाद के चलते जो कश्मीरी पंडित गुलाम कश्मीर से भागकर भारतीय कश्मीर में आए थे उन्हें इधर के कश्मीर से भी भागना पड़ा और आज वे इस दयनीय स्थिति में हैं कि : दिल्ली या भारत के अन्य प्रदेशों में शरणार्थियों का जीवन जी रहे हैं। क्या कभी दिल्ली की सत्ता पर काबिज हस्ती ने समझा इनका दर्द ?? 
क्या किसी पक्ष विपक्ष को इनकी हालत पर तरस आया ??
घाटी से पलायन करने वाले कश्मीरी पंडित जम्मू और देश के विभिन्न इलाकों में क्यों रहते है ? अथवां कब तक और रहेंगे ?? 28 साल से क्यों किसी नेता ने केन्द्र सरकार से यह सवाल नही किया ??
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उपरोक्त सारी बातें बेईमानी साबित हो जाएंगी अर्ची अगर रोहिंग्या और विदेशी शरणार्थियों पर मेहरबान दलों का ध्यान :  भारतीय संविधान के “भाग दो” एवम अनुच्छेद 5, से अनुच्छेद 11 तक न ले जाया जाए ! यथा :
भारत में एकल नागरिकता की व्यवस्था की गई है। नागरिकता के सम्बन्ध में भारतीय संविधान के भाग-2 तथा अनुच्छेद 5-11 में प्रावधान किया गया है। इन अनुच्छेदों में केवल यह प्रावधान किया गया है कि भारत का नागरिक कौन है और किसे भारत का नागरिक माना जाए। इसके अतिरिक्त अनुच्छेद 11 द्वारा संसद को भविष्य में नागरिकता के सम्बन्ध में क़ानून बनाने का अधिकार प्रदान किया गया है। इस अधिकार का प्रयोग करके संसद ने नागरिकता के सम्बन्ध में अधिनियम, 1955 बनाया है। जिसमें अब तक कई बार संशोधन किया जा चुका है। भारतीय संविधान में प्रावधान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 5 से 9 तक में नागरिकता के सम्बन्ध में निम्नलिखित प्रावधान किये गए हैं– संविधान के प्रारम्भ पर नागरिकता अनुच्छेद 5 के अनुसार भारतीय संविधान के प्रारम्भ पर जिस व्यक्ति का भारत में अधिवास हो और जो भारत के राज्य क्षेत्र में जन्मा था, या जिसके माता-पिता में से कोई भारत में जन्मा था, या जो संविधान के प्रारम्भ के ठीक पहले कम से कम पाँच वर्ष तक मामूली तौर से भारत में निवासी रहा है, वह भारत का नागरिक होगा। इस स्थिति में व्यक्ति के माता-पिता की राष्ट्रीयता का कोई महत्त्व नहीं है। भारतीय नागरिकता पाकिस्तान से भारत आने वाले व्यक्ति को भारतीय नागरिक माना जाएगा (अनुच्छेद 6), यदि– वह या उसके माता-पिता में से कोई उसके पितामह या पितामही अथवा मातामह या मातामही में से कोई भारत में जन्मा था। वह 19 जुलाई, 1948 से पहले भारत में चला आया था तथा इस तिथि से भारत का निवासी रहा है। वह 19 जुलाई, 1948 के पश्चात् भारत में आया है, तो भारत सरकार द्वारा नागरिक के रूप में पंजीकृत कर लिया गया है। ऐसे व्यक्ति को भारतीय नागरिक के रूप में पंजीकृत नहीं किया जाएगा, जो भारत में अपने निवास की अवधि के छह माह के अंतर्गत नागरिक के रूप में पंजीकृत किये जाने का आवेदन करता है, अर्थात् नागरिक के रूप में केवल उसी व्यक्ति को पंजीकृत किया जाएगा, जो कि भारत में अपने निवास की अवधि के 6 माह पश्चात् पंजीकरण के लिए आवेदन करता है। पाकिस्तान को आव्रजन करने वालों नागरिकता संविधान का अनुच्छेद 7 यह उपबन्ध करता है कि अनुच्छेद 5 या 6 में किसी बात के होते हुए भी जो व्यक्ति 1 मार्च, 1947 के पश्चात् भारत से पाकिस्तान का आव्रजन कर गया है वह भारत का नागरिक नहीं समझा जाएगा। किन्तु यह नियम उस व्यक्ति पर लागू नहीं होगा जो पाकिस्तान को आव्रजन करने के पश्चात् किसी अनुज्ञा के अधीन भारत लौट आया है। प्रत्येक ऐसा व्यक्ति अनुच्छेद 9 के खण्ड (ख) के प्रयोजनाओं के लिए 19 जुलाई, 1948 के पश्चात् भारत क्षेत्र में आव्रजन करने वाला समझा जाएगा और यदि वह अनुच्छेद 6 के अधीन दी गई सभी शर्तों को पूरा करता है, जो 1948 के बाद पाकिस्तान से भारत आने वाले प्रवासियों के लिए आवश्यक है, तो वह भारत का नागरिक बनने का हकदार है। भारत के बाहर भारतीय उत्पत्ति वाले व्यक्ति की नागरिकता अनुच्छेद 8 भारत में जन्मे किन्तु विदेश में रहने वाले कुछ व्यक्तियों को कुछ शर्तों को पूरा करने पर नागरिकता का अधिकार प्रदान करता है। इसके अंतर्गत पाकिस्तान जाने वाले लोग सम्मिलित नहीं हैं। अनुच्छेद 8 के अनुसार कोई भी व्यक्ति या उसके माता-पिता में से कोई जो भारत सरकार अधिनियम 1935 में परिभाषित भारत के बाहर किसी देश में रह रहा है, यदि वह निम्नलिखित शर्तें पूरी कर ले तो वह भारत का नागरिक समझा जाएगा– वह भारत का नागरिक के रूप में पंजीकृत कर लिया गया हो। वह पंजीकरण भारत के राजनयिक या कौंशलर प्रतिनिधि, जहाँ वह उस समय निवास कर रहा हो, द्वारा किया गया हो। उस आशय का आवेदन पत्र उपर्युक्त राजनयिक अथवा कौंशलर प्रतिनिधि जहाँ वह उस समय निवास कर रहा हो, द्वारा किया गया हो। यह आवेदन संविधान लागू होने के पहले या बाद में किया गया हो। आवेदन पत्र डोमिनियन सरकार द्वारा या भारत सरकार द्वारा विहित प्रपत्र पर और रीति से किया गया हो। विदेशी नागरिकता अर्जित करने पर भारत की नागरिकता की समाप्ति अनुच्छेद 9 यह उपबन्धित करता है कि यदि कोई व्यक्ति अपनी इच्छा से किसी विदेशी राज्य की नागरिकता अर्जित कर लेता है तो उसकी भारत की नागरिकता समाप्त हो जाएगी और वह अनुच्छेद 5, 6 या 8 के आधार पर नागरिकता के अधिकार का दावा नहीं कर सकता। यह प्रावधान केवल उन लोगों के सम्बन्ध में है, जिन्होंने संविधान प्रारम्भ होने के पहले स्वेच्छा से किसी विदेशी राज्य की नागरिकता प्राप्त कर ली थी। संविधान लागू होने के बाद नागरिकता के सम्बन्ध में पूर्ण व्यवस्था नागरिकता अधिनियम द्वारा निर्धारित की जाती है।
आईए यह भी बताते चलें भारतीय नागरिकता का अर्जन  संसद द्वारा निर्मित नागरिकता अधिनियम 1955 के अधीन भारतीय नागरिकता का अर्जन निम्न प्रकार से किया जाता है- जन्म द्वारा नागरिकता 26 जनवरी, 1950 के बाद तथा नागरिकता संशोधन अधिनियम, 1986 के पूर्व भारत में जन्म लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति को भारत की नागरिकता प्राप्त होगी, लेकिन नागरिकता संशोधन अधिनियम के प्रवर्तन के बाद भारत के राज्यक्षेत्र में जन्म लेने वाला कोई व्यक्ति तब भारत का नागरिक होगा, जब उसके माता-पिता में से कोई भारत का नागरिक हो। देशीयकरण द्वारा नागरिकता की प्राप्ति कोई भी विदेशी व्यक्ति जो वयस्क हो चुका है और प्रथम अनुसूची में वर्णित देशों का नागरिक नहीं है, भारत सरकार से निर्धारित प्रपत्र पर देशीयकरण के लिए आवेदन पत्र दे सकता है। कुछ निर्धारित शर्तों के आधार पर केन्द्रीय सरकार द्वारा संतुष्ट होने के पश्चात् आवेदन कर्ता को देशीकरण का प्रमाणपत्र दिया जा सकता है। इस रीति से नागरिकता प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित शर्तों को पूरा करना आवश्यक है– वह किसी ऐसे देश का नागरिक न हो जहाँ भारतीय देशीकरण द्वारा नागरिक बनने से रोक दिये जाते हों। उसने अपने देश की नागरिकता का परित्याग कर दिया हो, और केन्द्रीय सरकार को इस बात की सूचना दे दी हो। वह देशीयकरण के लिए आवेदन करने की तिथि से पहले 12 वर्ष तक या तो भारत में रहा हो या भारत सरकार की सेवा में रहा हो, इस सम्बन्ध में केन्द्रीय सरकार यदि उचित समझे तो उस अवधि को घटा सकती है। उक्त 12 वर्ष के पहले को कुल 7 वर्षों में से कम से कम 4 वर्ष तक उसने भारत में निवास किया हो या भारत सरकार की नौकरी में रहा हो, वह एक अच्छे चरित्र का व्यक्ति हो। वह राज्यनिष्ठा की शपथ ग्रहण करे। उसे भारतीय संविधान द्वारा मान्य भाषा का सम्यक ज्ञान हो। देशीयकरण के प्रमाणपत्र की प्राप्ति के उपरान्त उसका भारत में निवास करने या भारत सरकार की नौकरी करने का इरादा हो। वंश परम्परा के द्वारा नागरिकता भारत के बाहर अन्य देश में 26 जनवरी, 1950 के पश्चात् जन्म लेने वाला व्यक्ति भारत का नागरिक माना जाएगा, यदि उसके जन्म के समय उसके माता-पिता में से कोई भारत का नागरिक हो। माता की नागरिकता के आधार पर विदेश में जन्म लेने वाले व्यक्ति को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान नागरिकता संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा किया गया है।
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अब मैं ! जवाब चाहती हूं अपने पाठकों और अपने देश के नागरिकों का :
क्या ! लोकतंत्रात्मक व्यवस्था में विश्वास करने वाले एक देश में !  किसी व्यक्ति विशेष, समूह विशेष, जाति विशेष, धर्म विशेष, भाषा विशेष द्वारा भारतीय संविधान मे वर्णित भाग 2 एवम अनुच्छेद 5 लगायत अनुच्छेद 11 तक की अवहेलना करना एवम संसद के काम में बाधा उत्पन्न करना, नागरिता के सम्बंध में होने वाले संसोधन पर ! देश मे अशांति फैलाना, वाह्य शक्तियों को देश के गोपनिय एवम बेहद निजी मुद्दों मे शामिल करना देश द्रोह नही है ???
बाद इसके :
इस देश की एक आम नागरिक होने, लोकतंत्रात्मक व्यवस्था में पूर्ण विस्वास रखने एवम भारतीय संविधान को अक्षरसह अंगीकार करने की हैसियत से मैं आज पूछना चाहती हूं उन तमाम भारतीय राजनैतिक दलों से जो 40 लाख विदेशी शरणार्थियों के बचाव में झण्डा उठाए, उनकी नागरिकता बहाली के लिए आज देश को गृह युद्ध की धमकी दे रहे हैं : महोदय कहां थे आप जब 1990 मे भारत के स्थाई नागरिक 2 लाख कश्मीरी पंडितों को उनके घर से बेघर किया गया ?
कहां थे आप जब आपके अपने देश के नागरिक, आपके अपने सगे कश्मीरी पंडितों का सरेआम कत्लेआम हुआ ?
कहां थे आप जब कश्मीरी पंडितों के निर्दोश लहू से लाल चौक पर लहू-लुहान हुआ था भारतीय तिरंगा ???
हरे,नीले,भूरे, पीले, काले, झण्डाबरदारों कहां हो आप  सब के सब आज ! जब कश्मीरी पंडितों को आपकी  सबसे ज्यादे जरूरत है ??
क्यों भूल गए हो ! आखिर वह भी तो अपने गृह नगर लौटना चाहते हैं अपने पुरखों की मांटी में पुन: बसना चाहते हैं !! कहां हो आप ? क्या किया है आपने अपने 2 लाख कश्मीरी भाईयों के लिए जो अापके अपने ही देश में शरणार्थी बने घूंम रहे हैं ....???
मत सेकों सत्ता की आग पर अपने हाथ झण्डाबरदारों,  अभी तो आजादी आए मात्र 70 साल ही पूरे हुए हैं और आप सबके सब इतने भूखे,इतने लालची,इतने स्वार्थी,की कुर्शी के लिए देश बेचने तक को तैयार हो ??
सनद रहे मेरा और आपका यह “राष्ट्र” जब जिंदा रहेगा तभी आपकी सत्ता जिंदा रहेगी !!

कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
03/08/2018
09919353106

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