1940 में प्रथम बार बड़े भाई की शादी में “सहबाला” बनकर हमारे गोरखपुर आए थे किशोर वय अटल जी !! =========================

1940 में प्रथम बार बड़े भाई की शादी में “सहबाला”        बनकर हमारे गोरखपुर आए थे किशोर वय अटल जी !!
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मेरे गृहनगर, मेरे जन्म स्थान, मेरे अपने शहर “गोरखपुर ” उत्तर प्रदेश से श्रद्धेय अटल बिहारी बाजपेयी जी का बहुत नाजुक रिश्ता रहा है, प्रथम बार उनका आगमन गोरखपुर में राजनीतिक हस्ती के रूप में नहीं हुआ था अर्ची !
प्रथम बार तो वह “सहबाला” बनकर गोरखपुर आए थे !

अटल बिहारी बाजपेई के बड़े भाई प्रेम बिहारी बाजपेई की शादी हमारे गोरखपुर में हुई थी !
अटल जी के अनेक राजनीतिक दौरे की यादें अपने भीतर  समेटे बैठा है  गोरखपुर शहर ! जबसे मैने होश संभाला है  यही पाया है कि : गोरखपुर की आबो हवा में भगवा,एवम अटल केवल इन्ही दोनों की महक व्यापी है,! किन्तु चर्चा जब अटल जी की हो तो गोरखपुर उनको उनके प्रथम पारिवारिक आगमन से ही सर्व प्रथम याद करेगा ! शायद मै भी ऐसा ही करूंगी ! नही करूंगी तो शायद यह मेरी गुस्ताखी होगी !
मेरे गोरखपुर शहर के जिस मुहल्ले में  प्रथम बार उनका आगमन हुआ वह भाग्यशाली मुहल्ला रहा है “अलीनगर” !
“अलीनगर” के “माली टोले” का “कृष्णा सदन” उस नाजुक नाते की गवाही आज भी देता है जो पहली - पहली बार बना था अटल जी के साथ और ताउम्र बना रहा !
कृष्णा सदन नाम का वह घर आज भी अटलजी के बालपन एवम किशोर वय की कहानी सुनाते नहीं थकता है । दरअसल, अटल बिहारी बाजपेई के बड़े भाई प्रेम बिहारी बाजपेई की शादी मेरे गोरखपुर शहर के स्वर्गीय मथुरा प्रसाद दीक्षित की बेटी रामेश्वरी उर्फ बिट्टन से वर्ष 1940 में हुई थी। तब किशोर वय अटल इस घर में  सहबाला बनकर आए थे।
मथुरा प्रसाद दीक्षित के दो पुत्र कैलाश नारायण दीक्षित व सूर्यनारायण दीक्षित उनसे उम्र में थोडे़ छोटे थे पर अटल जी से उनकी खूब पटती थी। अटल जी की मां जब तक जीवित थीं तब तक वह ग्वालियर छुट्टियां बीताते थे, लेकिन उनके निधन के बाद वे गोरखपुर आने लगे। यहां दीक्षित बंधुओं की मां फूलमती उनका खास ख्याल रखती थीं। यहां सभी लोग अटलजी के शौक से वाकिफ थे। अटल जी को मीठा बहुत पसंद था ! मीठे में भी खीर से अनुराग बहुत ज्यादे था घर मे सबको पता था कि : बालक अटल को खीर खीर बेहद पसंद है इसलिए खीर जरूर रखी जाती थी उनके खाने में  !!
गोरखपुर से अपने नाजुक रिश्ते का जिक्र स्वयम श्रद्धेय ने 1995/1996 के अपने एक राजनीतिक चुनावी दौरे के मध्य भाषण देते हुए गोरखपुर में किया था !
मेरी उम्र उस वक्त यही कोई 12 वर्ष रही होगी मेरे पिता जोकि भाजपा के साथ गहरे तक जुड़े रहे ने जब प्रचार से वापस आकर इस बात की चर्चा घर पर हम सबके साथ साझा किया तो मैं और छोटा भाई जिद करके पापा के साथ वह घर देखने गए थे !
उस घर मे आदरणीय के पांव कभी पड़े थे यह जानने के बाद वह घर हमारे लिए किसी मंदिर से कम नही रहा !
आज गोरखपुर से बाहर हूं फिर मन मुझको खींचता हुआ चला गया पुरानी यादों की तरफ सोचा साझा करू अपने पाठकों के साथ इसे  !
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कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
09919353106

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“ सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय । सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय ।” भावार्थ :- यदि सारी धरती को कागज़ मान लिया जाए , सारे जंगल - वनों की लकड़ी की कलम बना ली जाए तथा सातों समुद्र स्याही हो जाएँ तो भी हमारे द्वारा कभी हमारे गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते है ।हमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है अर्ची, गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है । इस जगत मे बहुत कम ऐसे गुरू हुए है जिनको उनकी अपनी सफलता के साथ साथ ही उनके अपने शिष्य की सफलता से पहचान मिली हो ऐसे ही भाग्यशाली गुरू रहे है “रमाकान्त आचरेकर” जिन्हे पूरी दुनिया सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट कोच “ क्रिकेट गुरू ” के रूप मे जानती है और इसी रूप मे ही सदैव याद भी रखना चाहती है ! ईश्वर के साम्राज्य मे पहुँचने पर आज गुरू आचरेकर का स्वागत नाराण ने निश्चित तौर पर यही कह कर किया होगा “ क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के गुरू रमाकान्त आचरेकर जी आईए आपका स्वागत है !!” दिवंगत आचरेकर जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !! ================================ Bhardwaj@rchita 03/01/2019

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