कवि/गीतकार नीरज जी !

“ जा तो रहे हो कुशल चितेरे पर जल्दी ही लौटना ”
      04 जनवरी 1925 से 19 जुलाई 2018
कवि /गीतकार नीरज का निधन एक सुन्दर युग का अंत,
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नही रहे हमारे बीच कोमल गीतों के दरवेश पद्यम भूषण सम्मान से सम्मानित युवावों के सुकुमार मन कवि/ गीतकार गोपाल दास नीरज जी !
दैनिक जागरण की 10 साल की नौकरी में मुझे कई बार शुअवसर मिला श्रध्देय नीरज जी के दर्शन और आशिरवचन पाने का !
स्थान होता था गोरखपुर शहर का रैम्पस स्कूल और आयोजन होता था कवि सम्मेलन एवम मुशायरे का, दो से तीन दिन चलने वाले इस आयोजन में देश भर से कवि शिरकत करते थे पर इस आयोजन के शलाका पुरूष कविवर नीरज जी ही होते थे थे !
इस मंच पर आंखो देखा और प्रत्यक्ष रुप से जाना भी मैने की दद्दू बीड़ी बड़े मनोयोग से पीते थे !
इत्तेफाक देखिए रैम्पस स्कूल के संस्थापक, कवि सम्मेलन के आयोजकन, एवम नीरज जी के परम “फैन ” प्रेम चंद श्रीवास्तव का भी पिछले वर्ष 2017 में निधन हो गया !
एक संस्मरण बचपन का याद आ रहा है, हमारे बचपन के दिनों में अक्सर शाम को अम्मा रेडियो चलाती थी और एक गाना लगभग रोज हमारे कानों से टकराकर हृदय में उतरने लगता था यथा :

“जलाओ दीये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए ।
नई ज्योति के धर नये पंख झिलमिल,
उड़े मर्त्य मिट्टी गगन-स्वर्ग छू ले,
लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी,
निशा की गली में तिमिर राह भूले,
खुले मुक्ति का वह किरण-द्वार जगमग,
उषा जा न पाए, निशा आ ना पाए।
जलाओ दीये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।
सृजन है अधूरा अगर विश्व भर में,
कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी,
मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी,
कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी,
चलेगा सदा नाश का खेल यों ही,
भले ही दिवाली यहाँ रोज आए।
जलाओ दीये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए ।
मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ़ जग में,
नहीं मिट सका है धरा का अँधेरा,
उतर क्यों न आएँ नखत सब नयन के,
नहीं कर सकेंगे हृदय में उजारा,
कटेगे तभी यह अँधेरे घिरे अब
स्वयं धर मनुज दीप का रूप आए।
जलाओ दीये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।
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हम बच्चों को यह गाना पूरी तरह  कण्ठस्थ हो गया था, मां बताती थीं यह गाना, यह गीत उनके प्रिय रचनाकार गोपाल दास नीरज जी ने लिखा हैं !
आलम यह है कि दद्दू की यह रचना आज भी अर्ची को  कण्ठस्थ है !
आईए आज श्रध्देय नीरज जी को उन्ही की इस सुन्दर कालजयी रचना से हम सब अपनी अश्रूपुरित श्रध्दांजलि उन्हे अर्पित करें !
ऊं शांति !

कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
19/07/2018

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