अमर शहीद सरदार उधम सिंह की पुण्यतिथि 31 जुलाई पर विशेष चर्चा !!

अमर शहीद सरदार उधम सिंह की
पुण्यतिथि 31 जुलाई पर विशेष चर्चा !
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मित्रों क्या आपको पता है कि आज शहीद उधम सिंह की  पुण्य तिथि है। इसमे आश्चर्य की कोई बात नहीं अगर नहीं पता है तो ! जब कहीं इस बारे में बात ही नहीं होती तो कहाँ से पता चलेगा ! आज शायद अखबार वालों ने भी एक पैरा में इस खबर को निपटा दिया हो वो भी बिल्कुल अंदर के पृष्टों पर। टीवी न्यूज चैनेल वालों की तो बात ही छोड़िए। न देश ने, ना ही किसी राजनीतिक दल ने आज उनको याद किया, पता है क्यों ! क्योंकि वो आज बिकते नहीं, आज की तारीख में गांधी बिकते हैं केवल गांधी ! सरदार उधम सिंह एवम अन्य क्रान्तिकारी शहीदों ने देश को आजाद थोड़े ही कराया था वो तो बस यूं ही सिरफिरे थे  !
अभी कुछ दिन पहले चली बाबा रामदेव के शहीदों के सम्मान वाले वकतव्य पर बहस काफी चर्चा मे रही ! हमारे देश में भी और हमारे चिट्ठाजगत में भी खूब चर्चा रही इसपर ! मै पूछती हूं आखिर क्या गलत बोले थे बाबा रामदेव ??????
मै पूछती हूं इस देश ने एवम यहां के राजनीतिक दलों ने उधम सिंह को क्यों याद न किया ! क्या केवल इस लिए क्योंकि वे कांग्रेस आदि दल से न थे ??? 
कौन कहता है अर्ची यह शहीद महान था इसने देश के खातिर कुर्बानी दी ???? सब झूठ है कुर्बानी तो बस उन्होंने दी जिनके नाम के पीछे गांधी या नेहरु लगा था। क्या बाघा जतिन को कोई जानता है आज !आखिर क्यों नही जानता जबकि : यह तो गांधी के आने से बहुत पहले ही भारत के अंग्रेज विरोधी सबसे प्रसिद्ध नेता थे ??????
आज किसी बच्चे को मालूम है लाला हरदयाल सिंह कौन थे ?? वीर सावरकर क्यों हाशिए पर ला दिए गए ??
नही पता किसी को नही पता ! क्योंकि ! उनका कसूर मात्र इतना था कि वे कट्टर राष्ट्रवादी थे,केवल कट्टर राष्ट्रवादी और उनपर आजादी के बाद कट्टर हिंदूवादी आतंकवादी का ठप्पा लगा दिया गया था ! और केवल इसी बेजा मिथ्या गुनाह के कारण उनका सब बलिदान भूला दिया गया अर्ची ??
जिन्होने देश की आजादी के लिए अपनी कुर्बानियों से इतिहास में एक स्वर्ण युग लिख दिया आजादी के बाद  भारत में उनके ही अस्तित्व को नेस्तानाबूद करके केवल एक व्यक्ति ने उनके क्रान्तिकारीय होने पर ही सवाल उठा दिया ! यह सब अजानक कैसे हो गया ? क्यों हो गया ??यह सोचने का विषय है ! आजादी से पहले कांग्रेस ने इन सब शहीदों का विरोध किया उन्हें आतंकवादी कहा, इतना ही नही आजादी के बाद तो इन देशभक्तों को इस देश की आबो-हवा से बेदखल ही कर दिया गया !
नेताजी को अपने रास्ते से हटवाना और आजादी के बाद एक योजना के तहत नई पीढ़ी को उनके बारे में न पढ़ाया जाना, न बताया जाना, एक ऐसा प्रबंध किया गया जिससे नई पीढ़ी को केवल यह पता हो कि देश को आजाद कराया सिर्फ गांधी और नेहरू ने! क्योंकि ये लोग कांग्रेस से जुडे थे और इनके नाम पर हमेशा हमें वोट मिलता रहे। आज फैशन चलन में है गांधीवाद का, गांधीगिरी का, भगवान को गाली दो लेकिन गांधी को भगवान का दर्जा दे दो ! कोई आलोचना न करो।
अब आप सब कहेंगे कि इसमें गांधी का क्या कसूर है, ??
है कसूर ! पर उसपर चर्चा कभी बाद में अलग से करुंगी !  हमें बचपन से जो पढ़ाया जाता रहा है, बताया जाता रहा है हमारे पढायी के स्लेबस में क्या वह ही पूर्ण सत्य है ??? 
गौर करें गांधी जी ने अफ्रीका से आने के बाद अंग्रेजों की कभी एक भी लाठी नही खाई ! और इन शहीदों ने क्या तप किया ??क्यों वे गांधी और गांधीभक्तों से भिन्न थे ??  जानने-समझने की गरज से अगर कुछ जानना है तो कभी उन क्रान्तिकारियों की जीवनियाँ पढ़ो !
लेकिन क्यों पढोगे ? पढ़ कर भी कौन सा इनको याद करोगे ? कौन सा कोई मुन्ना भाई उन्हें अपनी गांधीगिरी मे उतारेगा ?
हमारे देश में मुन्नाभाई जिस पर ड्र्ग्स, अवैध हथियार तथा लोगों के कत्ल में शामिल होने के आरोप हैं वह भी गांधीगिरि कर रहा है, एक फिल्म उसके उपर बना कर उसको देशद्रोह के पापों से भी बरी किया जा सकता है ! लेकिन उधम सिंह,भगत सिंह जैसे 35 हजार से ज्यादे देश पर मर मिटने वाले क्रान्तिकारियों की देश भक्ति पर प्रश्नचिह्न लगा दिया गया लाईफ टाइम के लिए ! 
किए जाओ भाई गांधीगिरी किए जाओ क्योंकि उधम सिंह बनना बहुत दूरूह है !! अपनी राष्ट्र माता के अपमान का बदला 7 समुन्दर पार जाकर लेना बहुत दूरूह है !
हाय भारत तुम्हारा घोर दुर्भाग्य कहूं इसे कि चंद लोगों का घोर स्वार्थ जिसके चलते किसी को आज यह भी याद नही रहा कि :
“क्रांतिवीर उधम सिंह का जन्म पंजाब-प्रांत के ग्राम सुनाम (जनपद – संगरुर) में 26 दिसंबर 1899 को हुआ था। इनके पिता का नाम टहल सिंह था। वर्ष 1919 का जलियांवाला बाग का जघन्य नरसंहार उन्होंने अपनी आँखों से देखा था। उन्होंने देखा था कि कुछ ही क्षणों में जलियांवाला बाग खून में नहा गया और असहाय निहत्थे लोगों पर अंग्रेजी शासन का बर्बर अत्याचार और लाशों का अंबार। उन्होंने इसी दिन इस नरसंहार के नायक जनरल डायर से बदला लेने की प्रतिज्ञा की थी। प्रतिशोध की आग में जलते हुए यह "नर-पुंगव" दक्षिण-अफ्रीका तथा अमरीका होते हुए वर्ष 1923 में इंग्लैंड पहुँचा।
वर्ष 1927 में भगतसिंह के बुलाने पर उन्हें भारत आना पड़ा। 1933 में वह पुनः लंदन पहुँचे। तब तक जनरल डायर मर चुका था, किंतु उसके अपराध पर मोहर लगाने वाला सर माइकल-ओ-डायर तथा लॉर्ड जेटलैंड अभी जीवित थे।
13 मार्च 1940 को उन्हें अपने हृदय की धधकती आग को शांत करने का मौका मिला। उस दिन लंदन की एक गोष्ठी में दोनों अपराधी उपस्थित थे। उधमसिंह धीरे-धीरे चुपके से जाकर मंच से कुछ दूरी पर बैठ गए। सर माइकल-ओ-डायर जैसे ही भारत के विरुद्ध उत्तेजक भाषण देने के पश्चात मुड़े, उधमसिंह ने उस पर गोली दाग दी। वह वहीं ढेर हो गया। लॉर्ड जेटलैंड भी बुरी तरह घायल हो गया। सभा में भगदड़ मच गई पर उधमसिंह भागे नहीं। वह दृढ़ता से खड़े रहे और सीना तानकर कहा “माइकल को मैंने मारा है।” मुकदमा चलने पर अदालत में अपना बयान देते हुए उन्होंने सपष्ट कहा था – “यह काम मैंने किया माइकल असली अपराधी था। उसके साथ ऐसा ही किया जाना चाहिए था। वह मेरे देश की आत्मा को कुचल देना चाहता था। मैंने उसे कुचल दिया।
पूरे 21 साल तक मैं बदले की आग में जलता रहा।
मुझे खुशी है कि मैंने यह काम पूरा किया। मैं अपने देश के लिए मर रहा हूँ। मेरा इससे बड़ा और क्या सम्मान हो सकता है कि मैं मातृभूमि के लिए मरुँ।”
इस प्रकार उस मृत्युंजयी बलिदानी ने मातृभूमि के चरणों में हँसते-हँसते अपने प्राणों की भेंट चढ़ा दिया था अर्ची ।सरदार उधम सिंह को देश से खारिज करने हेतु स्वार्थी लोगों ने चाहे लाख प्रयास कर लिया,पूर्व में रची गई उनकी साजिशें इस देश में कभी भी कामयाब नही हो सकती जब तक इस देश में एक भी अर्चिता पाठक जिवित है अमर क्रान्तिकारी उधम सिंह के बलिदान एवम वीरता को अपनी कलम से शब्दबद्ध करके देश के सामने, दुनिया के सामने रखने के लिए !
सरदार उधम सिंह का बलिदान हमें सदैव देशभक्ति व राष्ट्रीय एकता की भावना की प्रेरणा देता रहेगा !!
कोटि-कोटि प्रणाम् , शतशत नमन शेरे हिन्द !
कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
31/07/2018
09919353106

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