तापसी पन्नू अपनी इस फिल्म से आखिर संदेश क्या देना चाहती हैं ?? ऐसी अराजक फिल्मों पर रोक क्यों नही लगाया जाता हमारे देश में ??

यह बहुत आज़माया हुआ, परखा हुआ हथियार है । एक मुल्क मज़हब के नाम पर ले लिया, दूसरे को बर्बाद करने की भावनात्मक चाल चली जा रही है । क्या पाकिस्तान और बांग्लादेश में रहने वाले और मुट्ठी भर बचे हुए हिन्दू भी इस तरह की फिल्म बना रहे हैं ? ऐसी चालें भावुक हिन्दुओं को फौरन बरगलाती हैं । मूर्ख हिन्दू फ़ौरन.सदियों के साहचर्य का गायन करने लगते हैं । यहां तक कि भारतीय सभ्यता के सबसे मर्मान्तक प्रहार,विभाजन तक को भुला बैठते हैं ।

यह भी भूल जाते हैं कि पाकिस्तान के पंद्रह प्रतिशत हिन्दू लगभग समाप्ति के कगार पर हैं । बांग्लादेश के तीस फीसदी पांच फीसदी से भी कम हो चुके हैं । खतरे की तलवार उनकी गर्दन पर लटक रही है । भारत में साढ़े तीन करोड़ मुसलमान थे, अब बीस करोड़  हैं । कश्मीर घाटी हिन्दूविहीन कर दी गई । तब कौन सी फ़िल्म बनी मुल्क ! केरल और बंगाल में हिन्दुओं की दुर्दशा हो रही है । कौन सी फ़िल्म बन रही है मुल्क ?  तीन करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठिए इस देश में पल रहे हैं । अपराध में दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति कर रहे । ममता बानो छाती पीट रही है । यह कैसे देशघातियों का मुल्क है भाई ?

क्या चाहते हैं हिन्दू ? तापसी पन्नू एक सिख है फिर भी ! दूसरे हिन्दुओं की आत्मा ने इस फिल्म को स्वीकार कैसे किया ? माफ़ करना । इसे प्रोफेशनलिज्म से जोड़कर भाषण न देना । यह पतन है । अपने ही बंधु बांधवों के साथ हुए अकल्पनीय अत्याचार को भुला देने की कायरता है । यह मानवता तो नहीं । पर, स्वार्थपरता अवश्य है ।

क्या सिनेमा वालों का कोई ज़मीर नहीं होता ? क्या इस देश और विश्व सभ्यता के सबसे सहिष्णु हिन्दुओं से उन्हें कोई मोह नहीं है ? उसके प्रति कोई दायित्व.नहीं ? हिन्दुओं को लगातार कटघरे में खड़ा करने वाला मीडिया, सिनेमा उसके विद्रोह को हवा दे रहा है । आक्रोश को पनपा रहा है । यह सब बंद कर दो ।

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“ सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय । सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय ।” भावार्थ :- यदि सारी धरती को कागज़ मान लिया जाए , सारे जंगल - वनों की लकड़ी की कलम बना ली जाए तथा सातों समुद्र स्याही हो जाएँ तो भी हमारे द्वारा कभी हमारे गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते है ।हमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है अर्ची, गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है । इस जगत मे बहुत कम ऐसे गुरू हुए है जिनको उनकी अपनी सफलता के साथ साथ ही उनके अपने शिष्य की सफलता से पहचान मिली हो ऐसे ही भाग्यशाली गुरू रहे है “रमाकान्त आचरेकर” जिन्हे पूरी दुनिया सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट कोच “ क्रिकेट गुरू ” के रूप मे जानती है और इसी रूप मे ही सदैव याद भी रखना चाहती है ! ईश्वर के साम्राज्य मे पहुँचने पर आज गुरू आचरेकर का स्वागत नाराण ने निश्चित तौर पर यही कह कर किया होगा “ क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के गुरू रमाकान्त आचरेकर जी आईए आपका स्वागत है !!” दिवंगत आचरेकर जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !! ================================ Bhardwaj@rchita 03/01/2019

माँ सीता के द्वारा माँ पार्वती स्तुति अयोध्याकाण्ड जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।। जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।। नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।। भव भव विभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।। [दोहा] पतिदेवता सुतीय महुँ, मातु प्रथम तव रेख। महिमा अमित न सकहिं कहि, सहस सारदा सेष।।235।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायिनी पुरारि पिआरी।। देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।। मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबहिं कें।। कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।। बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।। सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।। सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।। नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।। [छंद] मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु, सहज सुंदर साँवरो। करुना निधान सुजान सीलु, सनेहु जानत रावरो।। एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय, सहित हियँ हरषीं अली। तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि, मुदित मन मंदिर चली।। [सोरठा] जानि गौरि अनुकूल सिय, हिय हरषु न जाइ कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे।।

गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः गुरु ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता) के समान हैं. गुरु विष्णु (संरक्षक) के समान हैं. गुरु प्रभु महेश्वर (विनाशक) के समान हैं. सच्चा गुरु, आँखों के समक्ष सर्वोच्च ब्रह्म है अपने उस एकमात्र सच्चे गुरु को मैं नमन करती हूँ, कोटि-कोटि प्रणाम करती हूं !! साभार : भारद्वाज अर्चिता