{{वीर योद्धा राजाराम सिनसिनवार , शहादत 4 जुलाई 1688 }}
{{ वीर योद्धा राजाराम सिनसिनवार, शहादत 4 जुलाई 1688 }}
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बात उस वक्त की है जब हमारा देश मुंगलों के धर्म परिवर्तन के विभत्स दौर से गुजर रहा था , औरंगजेब की कट्टरता के आगे मानवता सिर झुकाए विवसता पूर्वक खड़ी थी अर्ची,ऐसे में :
वीर शिरोमणि “गौकुला” के शहीद होने के ठीक 15 साल बाद “राजाराम सिनसिनवार” ने भारतीय धर्म क्रांति का झण्डा अपने हाथों में उठाया।
राजाराम जाट का जन्म सिनसिनी राजस्थान के एक जाट परिवार ( क्षत्रिय वीर )भज्जा सिहं के घर में हुआ था !
राजाराम ने क्रांति का झंडा उठाते ही धर्म की रक्षा के लिए मुंगलों के विरूद्ध ब्रज के क्रांतिकारियों को एक करना शुरू किया ।
इन्होंने धर्म वीर “सरदार रामकी चाहर” (राम चेहरा सोघरिया) सोघरिया को भी अपने साथ लिया और औरंगजेब की धर्म विरोधी नीति के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया।
राजाराम के गांव के पास ही “अउ गढी थी” जिसका सरदार लालबेग खान था, जो स्त्रियों पर बुरी नजर रखता था। एक बार उसने कुए से एक स्त्री को उठा लिया तो यर खबर राजाराम के पास पहुंची राजाराम हिन्दू सतीत्व की रक्षा के लिए “अउ गढी पर आक्रमण कर दिया।”
इस तरह उस स्त्री और अउ गढ़ी को उन्होंने मुगलो से स्वतंत्र करवाया, उसके बाद वो ब्रज क्षेत्र की ओर बढ़े।
और वहां उन्होंने कूटनीति से “जाटौली थून” की 575 गांवो की जमीदारी सम्भाली और अपनी क्रांति एवम धर्मसेना को मजबूत किया।
इस तरह कुन्तल, आगरा, फतेहपुर सीकरी,एवम धौलपुर के जाट सरदारों को भी अपने साथ कर लिए, सबको एकता के सूत्र में पिरोया।
सैनिको को गुरिल्ला युद्ध, एवम शाही सेना से लड़ने के लिए प्रशिक्षित किया।
एक बार जब आगरा के समीप के गांवों में फसल खराब होने के कारण भारतीयों ने औरंगजेब को लगान देने से मना कर दिया तो
औरंगजेब ने “मीर अब्दुल्लाह दी असालत खां को जायजा लेने को भेजा । तो ग्रामीणों ने उसको धूल चटा दी और “मुअल्लत खां” को पकड़कर राजाराम के पास ले गए।
तो राजाराम ने उसकी परेड करवाई और उसे सैनिक न समझकर असहाय कहकर छोड़ दिया।
जब यह समाचार औरंगजेब के पास पहुंचा तो उसने “मुअल्लत खां ” को जहर की पुड़िया भेजी दरबार में औरंगजेब के हाथों मरने की अपेक्षा मुअल्लत खां जहर खा कर आत्म हत्या कर लिया।
राजाराम की अध्यक्षता में जाटों ने मुगलों को सबक सिखाने के लिए आगरा पर हमला कर दिया। आस-पास का सारा प्रदेश उनके अधिकार में हो गया।
और आगरे जिले से मुगल-शासन का अन्त कर दिया गया ।
सारी सड़कें बन्द हो गई। मुगल-हाकिम क्रूर “शफीखां” को किले में घेर लिया और सिकन्दरे पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध के कुछ ही दिन पश्चात् धौलपुर के करीब “अगरखां तूरानी को जाकर घेर लिया ।
अंजाम स्वरूप अगरखां और उसका दामाद इस लड़ाई में मार दिए गए !
इसी तरह कट्टर इस्लामिक “महावत खां मीर इब्राहिम हैदराबादी” पर भी उन्होंने आक्रमण किया और वीरों ने तलवारों से तोपो का मुकाबला किया इसमे 400 हिन्दू वीर जाट शहीद हुए और 250 मुगल सैनिक मारे गए।
मई सन् 1686 ई.में “सफदरजंग” ने राजाराम का मुकाबला किया, किन्तु उसे बीच युद्ध से भागना पड़ा एवम अपने पुत्र “आजमखां ” को उसने मुकाबले के लिए भेजा।
“आजमखां ” के आने से पहले ही राजाराम ने सिकन्दरे पर आक्रमण कर दिया, शाइस्ताखां जो कि आगरे का सूबेदार था,
उसके आने से पहले ही राजाराम ने मार्च अप्रैल 1688 में सिकन्दरा के मकबरे पर आक्रमण कर दिया और 400 मुगल सैनिको को काट दिया। सिकन्दरा का रक्षक मीर अहमद पहले ही राजाराम से अपनी जान बचाकर भाग गया था। वह सामने ही नही आया !
युद्ध बाद राजराम ने मकबरे में तोड़ -फोड़ की। वो अकबर के राजपूतों से रोटी -बेटी वाली नीति के चलते बहन - बेटियां दिए जाने की परम्परा से नाराज थे।
इसलिए उसने अकबर एवं जहांगीर की कब्र को अपने हाथों से उखाड़ा और उनकी अस्थियां निकालकर अग्नि में स्वाहा कर दिया ! इस घटना की सत्यता को प्रमाणित करते हुए कुछ पंक्तिया हम सब नीचे देख सकते हैं यथा :
“ढाई मसती बसती करी,
खोद कब्र करी खड्ड !!
अकबर अरु जहांगीर के
गाढ़े कढ़ी हड्ड !!
इस घटना से औरंगजेब बहुत नाराज हुआ !
उस समय औरंगजेब दक्षिण में मराठों से लड़ने में व्यस्त था, इसलिए उसने तेजी से ब्रज क्षेत्र के सूबेदारों को बदलना के लिए भेजा किया साथ ही उसके बेहद वफादार महमूद शाह हुसैन को “राजाराम के विद्रोह को कुचलने का आदेश दिया” सिनसिनी गढ़ी पर मुंगल सेना ने हमला किया पर “ राजाराम ” की धार युद्धनीति कामयाब रही।
इसके बाद राजाराम एक महीने तक इस सेना से लगातार लड़ता रहा।
इसी बीच चौहानो और बादशाह की फ़ौज के बीच बीजल गांव में भी जमीनी परगने को लेकर युद्ध शुरू हो गया। महमूद शाह हुसैन की तरफ मेव मुगल थे।
चौहानो ने “राजाराम”से सहायता मांगी राजाराम अपनी सेना लेकर पहुंच गए।
“चौहान और राजाराम साथ मिलकर वीरता से लड़े।
राजाराम ने मुगलो की टुकड़ी पर घेरा डाला और उस पर पूरी ताकत से टूट पड़े युद्ध चरम पर था कि तभी : धोखे से किसी मुगल सैनिक ने पीछे से वार कर दिया इस वार से राजाराम शहीद हो गए !! जिस दिन राजाराम की युद्धभूमि में शहादत हुई वह दिन था 4 जुलाई 1688 का।
इस युद्ध में मुगलों की विजय हुई। उसके बाद राजाराम का सिर काटकर दरबार मे पेश किया गया !!
वीर शहीद तुम्हें मेराअनन्त-अनन्त प्रणाम !!
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कलम से :
भारद्वाज अर्चिता
09919353106
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